IPS Suicide Case : हरियाणा के सीनियर आईपीएस अधिकारी वाई. पूर्ण कुमार की खुदकुशी के हाई-प्रोफाइल मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चंडीगढ़ पुलिस द्वारा गठित की गई 14-सदस्यीय एसआईटी (SIT) की जांच में अब तक न तो कोई लापरवाही और न ही कोई देरी सामने आई है, इसलिए फिलहाल इस केस को सीबीआई को सौंपने की कोई जरूरत नहीं है।
यह फैसला उस समय आया है जब इस पूरे मामले को लेकर हरियाणा में जबरदस्त सियासत हो रही है और इसे जातिगत भेदभाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
‘जांच में न देरी, न लापरवाही’
चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बैरी की बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया। बेंच ने कहा कि जब तक जांच में कोई ठोस कमी, पक्षपात या किसी बाहरी व राजनीतिक दबाव के सबूत सामने नहीं आते, तब तक जांच को किसी स्वतंत्र एजेंसी (सीबीआई) को नहीं सौंपा जा सकता।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि मौजूदा जांच एजेंसी (चंडीगढ़ पुलिस SIT) पर भरोसा न करने का कोई ठोस कारण याचिकाकर्ता द्वारा नहीं दिया गया है।
‘सिर्फ प्रचार के लिए डाली गई PIL’
मामले की सुनवाई के दौरान चंडीगढ़ प्रशासन ने भी कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखा। प्रशासन ने बताया कि इस मामले में 9 अक्टूबर को FIR दर्ज की गई थी, लेकिन लुधियाना के रहने वाले याचिकाकर्ता नवनीत कुमार ने महज चार दिन बाद 13 अक्टूबर को ही हाईकोर्ट में PIL दाखिल कर दी।
प्रशासन ने दलील दी कि यह याचिका सिर्फ “महज प्रचार” के लिए डाली गई लगती है।
प्रशासन ने कोर्ट को यह भी बताया कि याचिकाकर्ता ने न तो जांच में किसी पक्षपात का कोई ठोस सबूत दिया और न ही किसी राजनीतिक दबाव का कोई आरोप लगाया, जिसके आधार पर जांच को ट्रांसफर किया जाए।
याचिकाकर्ता नहीं दे सका संतोषजनक जवाब
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता से पूछा कि ऐसे कौन से विशेष हालात हैं, जिनके चलते यह जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए?
कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई ऐसे कारण हैं या सुप्रीम कोर्ट का कोई ऐसा फैसला है, जिसके आधार पर यह मांग की जा रही है?
याचिकाकर्ता इस संबंध में कोर्ट को कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दे सका, जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस जनहित याचिका को सिरे से खारिज कर दिया।
14 मेंबरों की SIT कर रही जांच
चंडीगढ़ प्रशासन ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि जांच को लेकर वे पूरी तरह गंभीर हैं। इस मामले की जांच के लिए एक 14-सदस्यीय एसआईटी का गठन किया गया है, जिसकी निगरानी आईजी रैंक के अधिकारी कर रहे हैं।
इस हाई-प्रोफाइल टीम में तीन आईपीएस अधिकारी और तीन डीएसपी रैंक के अफसर शामिल हैं।
प्रशासन ने बताया कि मामले में अब तक 22 गवाहों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं, सीसीटीवी फुटेज जब्त कर ली गई है और 21 इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा जा चुका है।
क्या परिवार ने नहीं की CBI जांच की मांग?
इस मामले में एक दिलचस्प बात यह है कि सीबीआई जांच की मांग वाली यह याचिका एक तीसरे पक्ष (नवनीत कुमार) द्वारा दाखिल की गई थी, जिसका पीड़ित परिवार से कोई सीधा संबंध नहीं है।
अगर यह मांग खुद आईपीएस वाई. पूर्ण कुमार के परिवार द्वारा की जाती, तो शायद कोर्ट इस पर ज्यादा गंभीरता से विचार कर सकता था।
यह भी बताया जा रहा है कि पीड़ित परिवार ने चंडीगढ़ पुलिस और हरियाणा सरकार के जांच के भरोसे पर संतुष्टि जाहिर की है।
क्यों गरमाया था यह पूरा मामला?
यह मामला सिर्फ एक खुदकुशी का नहीं है, बल्कि इसने हरियाणा की सियासत में भूचाल ला दिया था। 2001 बैच के आईपीएस अधिकारी वाई. पूर्ण कुमार, जो एडीजीपी बनने वाले थे, ने 7 अक्टूबर को चंडीगढ़ स्थित अपने सरकारी आवास पर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी।
उन्होंने एक सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसमें उन्होंने हरियाणा के तत्कालीन डीजीपी शत्रुजीत कपूर और रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजरानिया समेत कई बड़े आईपीएस और आईएएस अफसरों पर गंभीर आरोप लगाए थे।
पूर्ण कुमार ने इन अधिकारियों पर जातिगत भेदभाव करने और उन्हें जलील करने का आरोप लगाया था, जिसके कारण उन्हें यह कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा।
जातिगत सियासत का बना अखाड़ा
क्योंकि वाई. पूर्ण कुमार एससी समुदाय से आते थे, इसलिए इस मुद्दे ने तुरंत जातिगत सियासत का रूप ले लिया।
यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया और सभी विपक्षी दल, जिनमें कांग्रेस, बसपा, आम आदमी पार्टी और अकाली दल शामिल थे, सरकार पर हमलावर हो गए। यहां तक कि राहुल गांधी भी पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे थे।
विपक्षी पार्टियों ने इसे मुद्दा बनाने की कोशिश की कि हरियाणा की बीजेपी सरकार में दलित अधिकारी सुरक्षित नहीं हैं और उनके साथ हीन भावना से व्यवहार किया जाता है।
थानेदार बनाम IPS का पेंच
इस मामले में एक और पेंच तब फंसा, जब रोहतक के एक थानेदार ने भी इस घटना के बाद खुदकुशी कर ली।
उस थानेदार ने आरोप लगाया था कि आईपीएस पूर्ण कुमार एक “करप्ट और बेईमान” अफसर थे और ईमानदार लोगों को बदनाम करने के लिए जाति का सहारा लेते थे।
इसके बाद यह पूरा मामला ‘दलित बनाम जाट’ या ‘बाबा साहेब बनाम शहीद भगत सिंह’ की विचारधारा का अखाड़ा बन गया था, जिसने सरकार के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी थी।
अब आगे क्या?
हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई जांच की मांग ठुकराए जाने के बाद अब गेंद वापस चंडीगढ़ पुलिस की एसआईटी के पाले में है। एसआईटी पर जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच पूरी करने का दबाव है।
वहीं, हरियाणा सरकार पर भी दोनों मृतक अधिकारियों (आईपीएस पूर्ण कुमार और थानेदार) के परिवारों को संतुष्ट करने की चुनौती है।
कानूनी तौर पर, खुदकुशी करने वाले सरकारी कर्मचारी के परिवार को पेंशन या नौकरी जैसे लाभ नहीं मिलते हैं।
लेकिन, मामले की संवेदनशीलता और राजनीतिक दखल को देखते हुए, यह देखना होगा कि सरकार नियमों से हटकर दोनों परिवारों के लिए क्या कदम उठाती है।
‘जानें पूरा मामला’
हरियाणा कैडर के सीनियर आईपीएस अधिकारी वाई. पूर्ण कुमार ने 7 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ में खुदकुशी कर ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में हरियाणा के डीजीपी समेत कई बड़े अफसरों पर जातिगत भेदभाव और प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए थे। इस मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया था। एक एनजीओ ने हाईकोर्ट में सीबीआई जांच की मांग के लिए पीआईएल दायर की थी, जिसे अब कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
- हरियाणा IPS वाई. पूर्ण कुमार खुदकुशी मामले में CBI जांच की मांग वाली PIL खारिज हो गई है।
- पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ पुलिस की 14-सदस्यीय SIT की जांच पर भरोसा जताया है।
- कोर्ट ने कहा कि जांच में न कोई देरी हुई है, न ही कोई लापरवाही बरती गई है।
- याचिकाकर्ता जांच में पक्षपात या राजनीतिक दबाव का कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका।






