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IndiGo Crisis जानबूझकर किया गया? ₹1 लाख करोड़ का सबसे बड़ा खेल, Shocking Reality!

1000 उड़ानें रद्द, 3-4 लाख करोड़ का कारोबारी नुकसान और एक कंपनी का एकाधिकार... जानिए कैसे एक प्राइवेट प्लेयर के आगे नतमस्तक हो गया पूरा सिस्टम।

The News Air by The News Air
शुक्रवार, 5 दिसम्बर 2025
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IndiGo Crisis
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Indian Aviation Sector Crisis : पिछले 48 घंटों में भारत का आसमान थम गया। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन IndiGo की 1000 से ज्यादा उड़ानें रद्द हो गईं और एयरपोर्ट पर हजारों यात्री बेबस नज़र आए। कोई शादी में नहीं पहुंच पाया, कोई अपने माता-पिता की अंतिम यात्रा के लिए हरिद्वार नहीं जा सका और किसी की नौकरी का इंटरव्यू छूट गया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सब कुछ सिर्फ एक “सिस्टम फेल” था या यह उस बड़े खेल का हिस्सा है जहां सरकार ने खुद को हर जिम्मेदारी से मुक्त कर लिया है?


₹1.5 लाख करोड़ का बाज़ार, जो 5 साल में होगा ₹3 लाख करोड़

भारत का एविएशन सेक्टर इस वक्त तकरीबन ₹1.5 लाख करोड़ यानी लगभग $17 बिलियन का है और अगले 5 वर्षों में यह बढ़कर ₹3 लाख करोड़ यानी $28-29 बिलियन हो जाएगा। यानी यह बाज़ार लगभग दोगुना होने वाला है और यह पूरा बाज़ार निजी हाथों में है। खुले आसमान में उड़ते हुए जहाज जो लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते हैं, लेकिन उस पर अगर ब्रेक लग जाए तो क्या यह सिर्फ सिस्टम की खामी है या यह देश जुगाड़ से चलाया जा रहा है इसका प्रतीक है?


IndiGo का साम्राज्य: देश के आसमान पर 65-70% कब्ज़ा

IndiGo के पास इस वक्त 417 एयरक्राफ्ट हैं और 5500 पायलट हैं जिसका मतलब है प्रति एयरक्राफ्ट सिर्फ 13 पायलट। तुलना करें तो एयर इंडिया के पास 187 एयरक्राफ्ट हैं और 3500 पायलट यानी प्रति एयरक्राफ्ट 19 पायलट। IndiGo का सालाना रेवेन्यू लगभग ₹84,000 करोड़ है, शुद्ध मुनाफा ₹7,258 करोड़ है और कुल एसेट्स ₹1,15,000 करोड़ से ज्यादा के हैं। इसके अलावा 37,000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं और 94 घरेलू व 43 अंतरराष्ट्रीय मिलाकर कुल 137 डेस्टिनेशन पर रोज़ाना 2700 उड़ानें भरी जाती हैं।

भारत के आसमान पर लगभग 65 से 70% के बीच IndiGo की ही हिस्सेदारी है। सीधे शब्दों में कहें तो अगर IndiGo बैठ जाए, तो देश के भीतर उड़ान बैठ जाएगी और यही बीते दो दिनों में हुआ भी।


जनवरी में नियम बनाए, जून में हादसा हुआ

जनवरी 2024 में सरकार ने नए नियम लागू किए जिन्हें FDTL (Flight Duty Time Limitation) कहते हैं। इन नियमों के तहत पायलटों को सात दिनों की ड्यूटी के बाद 48 घंटे की अनिवार्य छुट्टी देनी थी जबकि पहले यह सिर्फ 36 घंटे थी। यह नियम अंतरराष्ट्रीय मापदंडों को देखते हुए बनाए गए थे क्योंकि दुनिया के बड़े-बड़े एयरलाइंस जो भारत में आते हैं उनके लिए भी यही नियम लागू होते हैं।

जून के महीने में एक बड़ा हादसा हो गया जब अहमदाबाद से उड़ान भरकर लंदन जा रहा एक विमान क्रैश हो गया और 171 यात्रियों की मौत हो गई। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय नियम कायदों पर भारत ने और ध्यान देना शुरू कर दिया और तय किया कि नियमों का पालन तो करना ही चाहिए।


10 महीने बीते, नियम लागू नहीं हुए

नियम जनवरी में बने लेकिन 10 महीने बाद भी लागू नहीं हो पाए। एयरलाइंस ने कहा कि हमारे पास इतने पायलट नहीं हैं तो सरकार ने कहा ठीक है, 10 फरवरी 2025 तक का वक्त और ले लो। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जब हंगामा हुआ तो DGCA (Directorate General of Civil Aviation) ने अपने नए नियम वापस ले लिए।

48 घंटे की छुट्टी का नियम फिर से 36 घंटे पर आ गया और पुराना रोस्टर फिर से लागू हो गया। यानी वो रोस्टर जिसके बारे में पहले यह कहा जा रहा था कि पायलट अगर इतना काम करेगा तो यात्रियों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है, वही रोस्टर अब फिर से चलेगा।

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अंतरराष्ट्रीय उड़ानें चलीं, घरेलू ठप रहीं — क्यों?

सबसे अजीब बात यह है कि IndiGo की 43 अंतरराष्ट्रीय डेस्टिनेशन पर उड़ानें सामान्य रहीं और कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन 94 घरेलू डेस्टिनेशन पर अफरातफरी मच गई और 1000 से ज्यादा फ्लाइट्स रद्द कर दी गईं। अंतरराष्ट्रीय तौर पर परिस्थितियां अनुकूल रखी गईं जबकि देश के भीतर के यात्री परेशान होते रहे।

क्या यह जानबूझकर था? क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इमेज बचाने के लिए घरेलू यात्रियों की बलि दी गई? क्या देश के भीतर के हालात सरकार की सहमति के साथ हैं क्योंकि पता है कि कोई भी मुश्किल नहीं होगी? ये सवाल अब उठ रहे हैं और इनका जवाब कोई नहीं दे रहा।


DGCA में 113 पद खाली — देखने वाला ही नहीं है

जो विभाग इन नियमों को लागू करवाता है यानी DGCA, वहां लगभग 113 पद खाली पड़े हैं। रेगुलेशन और इंफॉर्मेशन के डिप्टी डायरेक्टर के 7 पद खाली हैं, पायलट्स की फ्लाइंग और ट्रेनिंग कैपेसिटी देखने वाले 4 डायरेक्टर पद खाली हैं, एयरवर्थीनेस में डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर और असिस्टेंट डायरेक्टर के तकरीबन 55 पद खाली पड़े हुए हैं और ऑपरेशंस में 13 पद खाली हैं।

सरकार के भीतर बेचैनी है इसलिए अक्टूबर में भर्ती का नोटिफिकेशन निकाला गया और आवेदन की आखिरी तारीख 18 दिसंबर है। यानी परीक्षा, इंटरव्यू और नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया होते-होते 2026 आ जाएगा। 10 फरवरी तक की राहत रियायत दे दी गई है लेकिन उससे पहले अधिकारी भी नहीं हैं कि देख पाएं और समझ पाएं, फिर भी नियम कायदे बना दिए गए।


एयरपोर्ट से लेकर आसमान तक – सब निजी हाथों में

अहमदाबाद एयरपोर्ट, लखनऊ एयरपोर्ट, जयपुर एयरपोर्ट, बेंगलुरु एयरपोर्ट, गुवाहाटी एयरपोर्ट, तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट और नवी मुंबई का आने वाला एयरपोर्ट यह सब अडानी के हिस्से में हैं। एयरलाइंस प्राइवेट है, एयरपोर्ट प्राइवेट है और सरकार का काम सिर्फ लाइसेंस देना रह गया है।

इस देश में अंबानी अडानी का नाम राजनीतिक गलियारों में ही नहीं बल्कि पार्लियामेंट के भीतर, चुनावी रैलियों में और लोगों की बातचीत में तमाम जगहों पर उभरता है कि देखिए सब कुछ उनके हवाले कर दिया गया और जब कुछ गड़बड़ हो जाए तो नियम बदल देना यही सरकार की नई नीति बन गई है।


विजय माल्या से IndiGo तक – कहानी वही है

याद कीजिए विजय माल्या और उनकी किंगफिशर एयरलाइंस को। उन्हें राज्यसभा पहुंचाया गया, कभी कांग्रेस ने तो कभी BJP ने और JDS तो हमेशा से साथ थी। तत्कालीन एविएशन मिनिस्टर प्रफुल्ल पटेल ने उन्हें एविएशन पार्लियामेंट्री कमेटी का स्थायी सदस्य बना दिया और किंगफिशर देश के हर प्रमुख रूट पर उड़ने लगा।

आज IndiGo भी कमोबेश उसी स्थिति में है जहां सब कुछ उसके हवाले है। एयर इंडिया अपने पांव पर खड़ा नहीं हो पा रहा है और शायद इसीलिए उसके पास जो हिस्सा आता है वो हिस्सा अभी तत्काल में बहुत कम है। एविएशन मिनिस्ट्री’ (Aviation Ministry) (नागरिक उड्डयन मंत्रालय) जिसके पास रहती है उसकी कमाई बहुत ज्यादा होती है और हर चुनाव में बढ़ती हुई नेटवर्थ इसी का सबूत है।


सिविल एविएशन मिनिस्टर BJP के नहीं – तो जिम्मेदारी किसकी?

इस वक्त सिविल एविएशन मिनिस्टर राम मोहन नायडू हैं जो BJP के नहीं बल्कि चंद्रबाबू नायडू की TDP पार्टी से हैं और NDA गठबंधन का हिस्सा हैं। तो BJP कह सकती है कि हमें तो अपने गठबंधन का साथ देना है और यह मंत्रालय TDP को दे दिया है, वो समझे। लेकिन बात इससे बनेगी नहीं क्योंकि सवाल यह है कि नियम बनाने, लाइसेंस देने और निगरानी की जिम्मेदारी तो सरकार की ही है।

एक नियम बनाया गया एक ऐसे मार्केट के लिए जिसका मुनाफा हजारों करोड़ में होता है और जिसका नेटवर्थ लाखों करोड़ का है। उस क्षेत्र में नए प्लेयर्स लाने की सोच है, वहां से और पैसे उगाने की सोच है, लेकिन नियमों का पालन होना चाहिए इस दिशा में सरकार देखती है या नहीं, यह सवाल अब खुलकर सामने आ गया है।


आम आदमी का गुस्सा – एयरपोर्ट पर नज़ारा

एयरपोर्ट पर लोग चिल्ला रहे थे और एक महिला कह रही थी कि मेरी बेटी के ब्लड आ रहा है, पैड चाहिए दे दो, लेकिन जवाब मिला कि हम ऐसे नहीं कर सकते। जिनको सामने खड़ा कर दिया गया है वो क्या कहें, क्यों कहें, किस रूप में कहें, वो प्राणी के तौर पर वहां खड़े हुए हैं और उनके गले में एक IndiGo का बैच लटक रहा है।

कोई शादी में नहीं पहुंच पाया, कोई अपने माता-पिता की अंतिम यात्रा के लिए हरिद्वार नहीं जा सका और किसी का जॉब इंटरव्यू छूट गया। रोज़ाना 2 करोड़ से ज्यादा लोग इन उड़ानों पर निर्भर हैं जिनमें लगभग 4% विदेशी नागरिक भी होते हैं। लोगों का गुस्सा IndiGo पर है लेकिन असली जिम्मेदारी किसकी है यह कोई नहीं पूछ रहा।


₹500 करोड़ का सीधा नुकसान, ₹3-4 लाख करोड़ का अप्रत्यक्ष

एविएशन सेक्टर को इन दो दिनों में लगभग ₹500 करोड़ का सीधा नुकसान हुआ लेकिन जो बिज़नेस क्लास यात्री प्रभावित हुए उनके कारोबार पर जो असर पड़ा वो ₹3-4 लाख करोड़ तक आंका जा रहा है। दुबई जाने वाले, सिंगापुर जाने वाले, इंडोनेशिया जाने वाले सब फंसे क्योंकि उन्हें घरेलू फ्लाइट पकड़कर इंटरनेशनल फ्लाइट लेनी थी।

सिर्फ बिजनेस ही नहीं, हर व्यक्ति के साथ कुछ न कुछ जुड़ा था। कोई कह रहा था कि मैं तो शादी में जा रहा था, कोई कह रहा था मैं अपने माता-पिता की अर्थी को हरिद्वार ले जाकर प्रवाहित करने जा रहा था और कोई कह रहा था बड़े मुश्किल हालात में नौकरी का कॉल आया था जो अब नहीं दे पाएंगे।


दूसरी एयरलाइंस ने मौके का फायदा उठाया

जैसे ही IndiGo की फ्लाइट्स कम हुईं, बाकी एयरलाइंस ने अपने टिकट के दाम बढ़ा दिए और मजबूरी का पूरा फायदा उठाया गया। यही प्राइवेट सेक्टर की पहली प्रायोरिटी है पैसा और मुनाफा। जनता की सुविधा प्राइवेट सेक्टर की पहली जरूरत नहीं होती है, उसी आधार पर उसका धंधा बनता और खड़ा होता है।


आने वाला समय और भी महंगा होगा

10 साल पहले न्यूनतम फ्लाइट टिकट ढाई हज़ार रुपये थी जो इन 10 सालों में बढ़ते-बढ़ते लगभग ₹4,500 तक पहुंच गई है और उसके नीचे की फ्लाइट आपको नहीं मिलेगी। 2026 तक यह न्यूनतम रेखा ₹5,000 पहुंच जाएगी। एयरपोर्ट शुल्क बढ़ेंगे, फ्लाइट के ऊपर सेस लगाएगा, फ्यूल का सेस पहले से लगा हुआ है और धीरे-धीरे प्राइवेट कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाती रहेंगी।

इसके बाद जो परिस्थिति और भयानक होने वाली है उसमें एयरपोर्ट का पैसा बढ़ेगा और नए टैक्स आते रहेंगे। जो एविएशन सेक्टर का एवरेज मुनाफा है वह तकरीबन 10 से 12,000 करोड़ का शुद्ध मुनाफा हर साल का है और इसको 2030 तक कम से कम 25,000 करोड़ तक ले जाना है।


सरकार का टारगेट: ₹16 लाख करोड़ प्राइवेटाइजेशन

सरकार का लक्ष्य है कि अगले 5 सालों में प्राइवेटाइजेशन और मोनेटाइजेशन के ज़रिए ₹16 लाख करोड़ कमाना है और इसमें एविएशन सेक्टर भी शामिल है। रेलवे प्लेटफॉर्म निजी हाथों में सौंपे जा चुके हैं, कई ट्रैक्स दिए जा चुके हैं और कुछ ट्रेनें भी प्राइवेट हाथों में चलाने के लिए दी जा चुकी हैं।

आज तो जहाज थमा है लेकिन जरा कल्पना कीजिए कि पूरा डिफेंस सिस्टम अगर निजी हाथों में दे दिया जाए और उसका अपना मुनाफा, उसके अपने नियम कायदे, उन नियम कायदों के तहत देश की सुरक्षा होगी। न्यूक्लियर सेक्टर में भी खुद प्रधानमंत्री ऐलान कर चुके हैं कि आने वाले वक्त में वह भी प्राइवेट हाथों में होगा।


मार्केट स्टेट बनाम वेलफेयर स्टेट

अब सरकार वेलफेयर स्टेट नहीं चलाती बल्कि वो मार्केट स्टेट चलाती है। जिस प्राइवेट सेक्टर का जितना बड़ा योगदान होगा उसकी उतनी बड़ी हिस्सेदारी होगी। जमीन से लेकर आसमान तक, एयरपोर्ट से लेकर एयरक्राफ्ट तक, सब एक नेक्सस का हिस्सा है और अकाउंटेबिलिटी किसी की नहीं है।

सरकार ने खुद को बीच से हटा लिया है और लोगों का गुस्सा IndiGo पर है। IndiGo ने सहूलियत मांगी और DGCA की तरफ से एक रिलीज आ गई कि रियायत दे रहे हैं, राहत दे रहे हैं। यह सब कुछ जो बीते 48 घंटों में हुआ है ऐसा नहीं था कि पता नहीं था, बल्कि पता था फिर भी कोई कदम नहीं उठाया गया।


पान मसाला और सिगरेट के टैक्स से होगी राष्ट्रीय सुरक्षा

आज संसद में वित्त मंत्री ने जानकारी दी कि पान मसाला और सिगरेट पर टैक्स 28% से बढ़ाकर 40% कर दिया गया है और इसके अलावा सेस भी लगेगा। यह पैसा राष्ट्रीय सुरक्षा में लगेगा ताकि कारगिल जैसी स्थिति में बजट की कमी न हो। यानी पान मसाला खाने वाला और सिगरेट पीने वाला अब कह सकता है कि हमारे टैक्स से देश की सुरक्षा हो रही है।


‘जानें पूरा मामला’

भारत का एविएशन सेक्टर पूरी तरह निजी हाथों में है और IndiGo अकेले देश की 65-70% घरेलू उड़ानें संचालित करती है। जनवरी 2024 में DGCA ने नए FDTL नियम लागू किए जिनके तहत पायलटों को ज्यादा आराम देना था लेकिन एयरलाइंस के पास पर्याप्त पायलट नहीं थे। 10 महीने तक नियम लागू नहीं हुए और जब स्थिति बिगड़ी व हज़ारों उड़ानें रद्द हुईं तो DGCA ने अपने नियम ही वापस ले लिए। सरकार ने जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लिए और यह पूरा मामला उस बड़े सवाल को उठाता है कि जब सब कुछ प्राइवेट हाथों में है तो जवाबदेही किसकी है? देश का सिस्टम या तो जुगाड़ से चल रहा है या पॉलिटिकल इकोनमी के जरिए चल रहा है और परिस्थितियों ने देश चलाने की परिभाषा बदल दी है।


मुख्य बातें (Key Points)
  • IndiGo की 1000+ उड़ानें रद्द हुईं और देश की 65-70% घरेलू उड़ानों पर उसका कब्ज़ा है, इसलिए पूरा देश प्रभावित हुआ।
  • DGCA ने जनवरी 2024 के नए पायलट आराम नियम (48 घंटे) वापस लेकर पुराने (36 घंटे) नियम बहाल कर दिए।
  • DGCA में 113 पद खाली हैं जिसका मतलब नियम लागू करवाने वाला विभाग ही अधूरा है और देखने वाला कोई नहीं है।
  • ₹1.5 लाख करोड़ का एविएशन मार्केट 5 साल में ₹3 लाख करोड़ का होगा और यह सब प्राइवेट हाथों में है।
  • सरकार ने जिम्मेदारी से खुद को मुक्त कर लिया है, वो नियम बनाती है लेकिन पालन करवाना प्राइवेट सेक्टर पर छोड़ देती है।

 

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