नई दिल्ली, 21 जुलाई (The News Air)
कैंसर एक ऐसी लाइलाज बीमारी है, जिसकी वजह से भारत ने कई रत्नों को खोया है। भारत में पिछले चार साल में कैंसर रोगियों की संख्या में लगभग 10 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है। नैशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम रिपोर्ट 2020 के अनुसार, इस वक़्त देश में कैंसर के 13.9 लाख मामले हैं। दवाइयों के अलावा इसके उपचार में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी प्रमुख है। इसके उपचार में भारतीय वैज्ञानिकों को एक और सफलता मिली है। भारत में डॉक्टरों को जल्द ही कैंसर के मरीज़ के पेट के ऊपरी हिस्से या ब्रेस्ट एरिया में रेडिएशन में मदद करने के लिए फेफड़ों की गति की नक़ल की सुविधा मिल जाएगी।
बनाया ऐसा उपकरण जो करेगा मानव फेफड़ों की नक़ल- भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने एक नया और सस्ता 3डी रोबोटिक मोशन फैंटम बनाया है, जो सांस लेने के दौरान एक मनुष्य के फेफड़े जैसी गति पैदा कर सकता है। फैंटम एक ऐसे प्लेटफॉर्म का हिस्सा है, जो न सिर्फ़ एक मरीज़ के श्वास लेने के दौरान मानव फेफड़े जैसी गति पैदा करता है, बल्कि रेडिएशन का एक गतिशील लक्ष्य पर सही प्रकार से केंद्रित उपयोग हो रहा है या नहीं, यह भी जांच सकता है।
कैंसर ट्यूमर पर केंद्रित रेडिएशन की डोज़ देने में सांस की गति होती है बाधा- पेट के ऊपरी हिस्से या ब्रेस्ट से जुड़े कैंसर ट्यूमर पर केंद्रित रेडिएशन की डोज़ देने में सांस की गति एक बाधा होती है। इस गति से कैंसर के उपचार के दौरान रेडिएशन में ट्यूमर से ज़्यादा बड़े क्षेत्र पर असर पड़ता है, जिससे ट्यूमर के आसपास के ऊतक प्रभावित होते हैं। किसी भी मरीज़ के फेफड़ों की गति पर नज़र रखकर मरीज़ के लिए केंद्रित रेडिएशन को उसके मुताबिक़ घटाया या बढ़ाया जा सकता है जिसके बाद रेडियेशन देने से वह न्यूनतम मात्रा के साथ भी प्रभावी हो सकता है। एक मानव पर ऐसा करने से पहले, एक रोबोट फैंटम पर इसकी जांच किए जाने की ज़रूरत है।
कैसे करता है काम- फैंटम को इंसान की जगह सीटी स्कैनर के अंदर बेड पर रखा जाता है और यह उपचार के दौरान रेडिएशन के समय मानव फेफड़े की तरह गति करता है। इसकी वजह से रेडियोथेरेपी के दौरान, मरीज़ और कर्मचारियों पर न्यूनतम असर के साथ निरंतर उन्नत 4डी रेडिएशन थेरेपी उपचारों की उच्च गुणवत्ता वाली छवियां प्राप्त होती हैं। एक मानव पर लक्षित रेडिएशन से पहले, फैंटम के साथ सिर्फ़ ट्यूमर पर इसके होने वाले प्रभाव की जांच की जाती है।
उपचार के दौरान डोज़ के प्रभाव की होती है जांच- आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर आशीष दत्ता ने संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस (एसपीजीआईएमएस), लखनऊ के प्रोफेसर के. जे. मारिया दास के साथ मिलकर रेडिएशन थेरेपी में श्वसन संबंधी गतिशील प्रबंधन तकनीकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रोग्राम करने योग्य रोबोटिक मोशन प्लेटफॉर्म विकसित किया है। उपचार के दौरान डोज़ के प्रभाव की जांच की जाती है। शोधकर्ता एक फैंटम पर प्रणाली की जांच की प्रक्रिया का काम कर रहे हैं। इसके पूरा होने के बाद, वे मानव पर इसकी जांच करेंगे।
फैंटम में लगे डिटेक्टर्स बताते हैं, कहां किया गया रेडिएशन- फैंटम का बड़ा भाग एक गतिशील प्लेटफॉर्म है, जिस पर कोई भी डोसिमिट्रिक या तस्वीर की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाली डिवाइस लगाई जा सकती है और प्लेटफॉर्म तीन स्वतंत्र स्टेपर मोटर प्रणालियों के इस्तेमाल से 3डी ट्यूमर मोशन की नक़ल कर सकता है। यह प्लेटफॉर्म एक बेडपर रखा जाता है, जहां मरीज़ रेडिएशन थेरेपी के दौरान लेटता है। एक फैंटम जैसे ही फेफड़ों की गति की नक़ल करता है, वैसे ही रेडिएशन मशीन से रेडिएशन को गतिशील ट्यूमर पर केंद्रित करने के लिए एक गतिशील या गेटिंग विंडो का इस्तेमाल किया जाता है। फैंटम में लगे डिटेक्टर्स से यह पता लगाने में मदद मिलती है कि ट्यूमर पर रेडिएशन कहां किया गया है।
पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को ज़्यादा प्रभावित करता है कैंसर- कैंसर के कुल मामलों को देखें तो यह पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को ज़्यादा प्रभावित करता है। आगे भी यही ट्रेंड बरक़रार रहने का अनुमान है। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नैशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (NCDIR) की ओर से जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2020 में कैंसर प्रभावित पुरुषों की संख्या 6.8 लाख जबकि महिलाओं की संख्या 7.1 लाख थी। रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक पुरुषों में कैंसर के 7.6 लाख मामले तथा महिलाओं में 8.1 लाख मामले हो सकते हैं। इसके साथ ही 2025 तक कैंसर का सबसे आम रूप ब्रेस्ट कैंसर (2.4 लाख) के होने का अनुमान है। इसके अलावा फेफड़ों के कैंसर के 1.1 लाख मामले तथा मुंह के कैंसर के 90 हज़ार मामले सामने आ सकते हैं।
मेड इन इंडिया पहल के तहत बनी सस्ती तकनीक- इस प्रकार के रोबोटिक फैंटम के निर्माण का काम भारत में पहली बार हुआ है और बाज़ार में उपलब्ध अन्य आयातित उत्पादों की तुलना में यह ज़्यादा किफ़ायती है, क्योंकि फेफड़ों की विभिन्न प्रकार की गति पैदा करने के लिए इस प्रोग्राम को लागू किया जा सकता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के उन्नत तकनीक निर्माण कार्यक्रम की सहायता से विकसित और ‘मेक इन इंडिया’ पहल के साथ जुड़ी यह तकनीक वर्तमान में एसजीपीजीआईएमएस, लखनऊ में अंतिम दौर के परीक्षण से गुज़र रही है। इनोवेटर इस उत्पाद के व्यवसायीकरण की कोशिश कर रहे हैं, जिसे विदेशी मॉडल के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकता है। विदेशी मॉडल ख़ासा महंगा होने के साथ ही इसके सॉफ्टवेयर पर नियंत्रण भी हासिल नहीं होता है। ऐसे में यह तकनीक भारत के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है।