जलवायु संकट के लिए भारत जिम्मेदार नहीं, उसे पश्चिम की गलतियां नहीं दोहरानी चाहिए- राष्ट्रमंडल महासचि

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नई दिल्ली, 31 जुलाई (The News Air): राष्ट्रमंडल महासचिव पैट्रीशिया स्कॉटलैंड ने कहा कि भारत जलवायु संकट के लिए ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार नहीं है, लेकिन उसे अपने विकास के दौरान पश्चिमी देशों की 19वीं सदी की प्रदूषणकारी प्रथाओं का अनुकरण नहीं करना चाहिए।

स्कॉटलैंड ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि भारत के पास 2.7 अरब लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्रमंडल नामक 56 देशों के समूह के भीतर विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी साझा करके एक न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन का नेतृत्व करने का अवसर है।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक नये, स्वच्छ और सुरक्षित विकास मॉडल का उदाहरण पेश कर सकता है, जो ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए आशा की किरण के रूप में काम कर सकता है। ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।

राष्ट्रमंडल महासचिव ने कहा, ‘‘भारत एक विकासशील देश है, जो इस (जलवायु) संकट को पैदा करने के लिए ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार नहीं है। इसलिए, भारत की स्थिति ‘ग्लोबल साउथ’ के कई देशों के समान है और यह बिल्कुल सच है।’’

उन्होंने कहा कि इस संकट का जिम्मेदार न होने के बावजूद भारत भीषण गर्मी, बाढ़ और प्रचंड मानसून सहित गंभीर जलवायु परिणामों का सामना कर रहा है और उसे कार्रवाई करनी चाहिए। स्कॉटलैंड ने कहा, ‘‘भारत के कुछ शहरों में गर्मी का स्तर देखिए, बाढ़ और मानसून को देखिए। हमारे लोग जूझ रहे हैं। इसलिए हम सभी की एक जिम्मेदारी है।’’

राष्ट्रमंडल महासचिव ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि भारत को पश्चिम के विकास मॉडल का अनुकरण नहीं करना चाहिए, जो विफल रहा और जलवायु संकट का कारण बना। उन्होंने कहा, ‘‘भारत को उसका अनुकरण क्यों करना चाहिए, जो दूसरों ने पहले किया है… (और) असफल रहे? मुझे बहुत निराशा होगी अगर भारत 18वीं और 19वीं सदी के समाधानों पर लौट रहा है और दूसरों ने जो किया है, उसे दोहरा रहा है।’’

स्कॉटलैंड ने कहा, ‘‘ऐसा कहना हमारे लिए सही नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने (पश्चिम ने) एक दुःस्वप्न रचा है, जिससे हम अब पीड़ित हैं और मर रहे हैं…। मुझे लगता है कि हम उनसे बेहतर हैं।’’ वर्ष 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में, देशों ने जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता जताई थी।

वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की तेजी से बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी की सतह का तापमान पहले ही लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है। स्कॉटलैंड ने कहा, ‘‘भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नये शहरों के निर्माण के मामले में कुछ असाधारण कार्य किए हैं। क्या होगा यदि भारत इस बात का उदाहरण बन सके कि आप एक चक्रीय अर्थव्यवस्था का उपयोग करके विकास का एक पुनर्योजी मॉडल कैसे बनाते हैं, जो वास्तव में काम करता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे निराशा होगी यदि यह आशा कम हो जाएगी कि भारत ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए है। मुझे बहुत दुख होगा, क्योंकि भारत जानता है कि वह कई नवीन दृष्टिकोणों के साथ विकास में क्रांति ले आया है, जिसका अन्य लोग अनुसरण कर रहे हैं।’’

वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की अपनी नवीन राष्ट्रीय जलवायु योजना के तहत भारत का लक्ष्य 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता की हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत तक बढ़ाना है। वर्तमान में, भारत की कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता 446 गीगावाट है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 195 गीगावाट है।

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