Fertility Crisis in India : भारत (India) में बढ़ती Fertility Crisis अब एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक मुद्दा बन गई है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund – UNFPA) की हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार, युवा भारतीय अब पारंपरिक सोच ‘हम दो, हमारे दो’ से पीछे हटते नज़र आ रहे हैं।
मंगलवार को जारी की गई विश्व आबादी की स्थिति 2025 रिपोर्ट (‘The State of World Population – SWOP 2025’) में बताया गया है कि भारत (India) सहित 14 देशों के 14,000 लोगों पर हुए ऑनलाइन सर्वे में यह बात सामने आई कि भारत में प्रजनन स्वतंत्रता (Reproductive Freedom) सबसे बड़ी बाधा आर्थिक सीमाएं (Financial Constraints) हैं। भारत से सर्वे में शामिल 1,048 लोगों में से 38 प्रतिशत ने बताया कि आर्थिक समस्याएं उन्हें मनचाहा परिवार शुरू करने से रोकती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नौकरी की असुरक्षा (Job Insecurity – 21%), सीमित आवास (Limited Housing – 22%) और बच्चे की देखभाल की सुविधाओं की कमी (Lack of Reliable Childcare – 18%) युवाओं को माता-पिता बनने से रोक रही है। इसके साथ ही सामान्य स्वास्थ्य समस्याएं (Poor Health – 15%), बांझपन (Infertility – 13%) और गर्भावस्था सेवाओं की सीमित उपलब्धता (Limited Access to Maternity Care – 14%) भी अहम बाधाएं बन रही हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change), राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता (Political and Social Instability) जैसे कारण भी युवाओं को संतान पैदा करने से हतोत्साहित कर रहे हैं। 19 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि उन पर अपने जीवनसाथी या परिवार की ओर से कम बच्चे पैदा करने का दबाव भी होता है।
UNFPA ने यह भी रेखांकित किया कि महिलाओं को अब भी प्रजनन संबंधी फैसले लेने की पूरी स्वतंत्रता नहीं है। भारत के कुछ राज्यों जैसे बिहार (Bihar), झारखंड (Jharkhand) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में प्रजनन दर उच्च है, जबकि दिल्ली (Delhi), केरल (Kerala) और तमिलनाडु (Tamil Nadu) जैसे राज्यों में यह दर प्रतिस्थापन स्तर (Replacement Level) से भी नीचे है। प्रतिस्थापन दर वह न्यूनतम दर है जो जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए आवश्यक होती है।
UNFPA इंडिया की प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार (Andrea M. Wojnar) के अनुसार, “भारत ने 1970 के दशक में प्रति महिला औसतन 5 बच्चों से लेकर अब 2 बच्चों तक की यात्रा तय की है, जो एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन जब तक हर व्यक्ति को प्रजनन निर्णय लेने की आज़ादी और संसाधन नहीं मिलते, तब तक असली जनसांख्यिकीय लाभ नहीं मिल सकता।”
रिपोर्ट यह स्पष्ट संकेत देती है कि आने वाले वर्षों में भारत की जनसंख्या स्थिर होने की ओर बढ़ रही है और यदि सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को दूर नहीं किया गया, तो देश को जनसंख्या संतुलन बनाए रखने में गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।