चंडीगढ़ (The News Air) चंडीगढ़ के सेक्टर 16 के गवर्नमेंट मल्टी-स्पेशलिटी हॉस्पिटल (GMSH) में मनो चिकित्सकों की कमी के चलते चंडीगढ़ समेत आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले मनोरोगियों को इलाज में काफी दिक्कत हो रही है। जानकारी के मुताबिक सेक्टर 16 हॉस्पिटल के अंतर्गत आते बाकी तीन सिविल हॉस्पिटल्स में भी कोई मनो चिकित्सक नहीं है।
ऐसे में शहर भर में अनेकों मनोरोगियों का अच्छे से इलाज नहीं हो पा रहा है। GMSH-16 में सिर्फ 2 ही मनो चिकित्सक हैं। इस हॉस्पिटल में रोजाना लगभग 150 मनोरोगी आते हैं। वहीं कई मरीज टेली-कंसलटेशन के जरिए भी इलाज ले रहे हैं। हालांकि इन सभी मरीजों को हॉस्पिटल में समय पर उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है।
मनोरोगियों की मानसिक स्थिति को समझने और टेस्ट आदि में काफी वक्त लगता है। ऐसे में कई मरीज इलाज के अभाव में ही लौट जाते हैं। एक मरीज की परेशानी और मानसिक दिक्कत को अच्छे से समझना पड़ता है। ऐसे में सिर्फ 2 मनो चिकित्सकों द्वारा इतने मरीजों को देख पाना काफी मुश्किल हो रहा है। ऐसे मनोरोगी इलाज के अभाव में तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर खुद के लिए और कई बार समाज के लिए भी खतरा बन जाते हैं। यह आत्महत्या जैसा कदम भी उठा सकते हैं।
कई प्रयासों के बावजूद नहीं मिल रहे मनो चिकित्सक
UT हेल्थ विभाग नियमित मनो चिकित्सकों की भर्ती के लिए प्रयास कर रहा है मगर कई बार विज्ञापन जारी करने के बावजूद अभी तक यह पद नहीं भरे जा सके हैं। प्रशासन को विज्ञापन जारी करने के बावजूद रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है। कई डॉक्टर्स इंटरव्यू के लिए आते हैं मगर वह ड्यूटी जॉइन नहीं करते। वहीं कई प्राइवेट सेक्टर्स का रुख कर लेते हैं।
4 मनो चिकित्सक होने चाहिए
जानकारी के मुताबिक, मनो वैज्ञानिक काफी कम हैं और कई प्रकार की बिहेवियरल थैरेपी जानने वाले प्राइवेट सेक्टर्स में जा रहे हैं। चंडीगढ़ की डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेज डॉ. सुमन सिंह का कहना है कि सेक्टर 16 हॉस्पिटल में 4 मनो चिकित्सक और तीनों सिविल हॉस्पिटल्स में 1-1 मनो चिकित्सक होना चाहिए।
40 मिनट तक का वक्त लग जाता है
जानकारी के मुताबिक एक मरीज को अच्छे से देखने में लगभग 40 मिनट तक का समय लग जाता है। उसकी मानसिक स्थिति और सेहत से जुड़ी पुरानी जानकारी जुटाने में भी वक्त लगता है। वहीं हर मरीज की मानसिक बीमारी अगल प्रकार की होती है। इसमें बायोपोलर डिसार्डर, पोस्ट-ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसार्डर, सिजोफ्रेनिया और डिप्रेशन शामिल हैं। इन सबके अलग-अलग लक्षण मरीज में दिखते हैं। जिसमें पैनिक अटैक, आत्महत्या का विचार आना, सुनने और देख पाने में भ्रम पैदा होना, अवसाद और चिंता शामिल हैं।
टेस्ट भी करने पड़ते हैं
मरीज की स्थिति को अच्छे से समझने के लिए मनो चिकित्सकों को साइकोलोजिकल टेस्ट भी करने पड़ते हैं। इससे मरीज की मानसिक स्थिति की पूरी तस्वीर सामने आती है। हालांकि पर्याप्त स्टाफ और मनो चिकित्सकों के बिना मरीज को इस प्रकार की पूरा इलाज नहीं मिल पाता। कई मरीज उनका क्यू में नंबर न आने पर वापस भी लौट जाते हैं। बता दें कि सभी मरीज प्राइवेट क्लीनिक्स में डॉक्टर की मोटी फीस नहीं भर पाते। ऐसे में कई मरीज इलाज के अभाव में जी रहे हैं।
कोविड काल में बढ़ी थी संख्या
बता दें कि कोविड काल के बाद मनोरोगों से जुझ रहे मरीजों की संख्या में इजाफा भी हुआ था। लोग लगभग 2 साल कोविड में घरों में रहे और कई का बिजनेस तक बंद हो गया था। ऐसे में कई लोगों में मनोरोगों की दिक्कत पैदा हो गई थी। इनमें टूट जाना, निराशा, आत्महत्या के विचार पैदा होना, चिंता, तनावग्रस्त होना आदि शामिल थे।






