PM Modi Government Schemes : 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में मोदी सरकार ने बीते 11 सालों में 225 से ज्यादा लाभार्थी योजनाएं चलाई हैं और हर योजना के साथ लाखों करोड़ रुपए का बजट भी जुड़ा है। लेकिन जब सरकार की अपनी वेबसाइट पर दर्ज आंकड़ों को खंगाला जाए और देश के आर्थिक हालात से मिलान किया जाए तो एक अजीब तस्वीर उभरती है जो सोचने पर मजबूर कर देती है।
सवाल सीधा है – या तो सरकार का डाटा फर्जी है, या फर्जी डाटा के जरिए लाखों करोड़ों की लूट हो रही है, या फिर सरकार सिर्फ दिखावे के लिए इन योजनाओं को चला रही है।
जनधन योजना का हाल – 57 करोड़ खाते, 15 करोड़ बंद
सरकार का दावा है कि जनधन योजना के तहत इस देश में 57 करोड़ 11 लाख खाते खुल चुके हैं और इन खातों में कुल 7,433 करोड़ रुपए जमा हैं। अगर इस रकम को खातों की संख्या से भाग दें तो औसतन हर खाते में 4,798 रुपए 33 पैसे होने चाहिए।
लेकिन सच कुछ और ही है। खुद सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि लगभग 26% से ज्यादा खाते बंद करने पड़े क्योंकि उनमें 500 रुपए भी नहीं थे। RBI के आंकड़ों के मुताबिक 15 करोड़ 9 लाख खाते बंद करने पड़े क्योंकि इनमें कोई लेनदेन ही नहीं हो रहा था।
जनधन का मकसद था कि हर गरीब बैंक की दहलीज तक पहुंचे, कोई न्यूनतम बैलेंस रखने की जरूरत न पड़े, जमा राशि पर ब्याज मिले, 1 लाख का दुर्घटना बीमा मिले, 30,000 का जीवन बीमा हो और सरकारी योजनाओं का पैसा सीधे खाते में पहुंचे। लेकिन 57 करोड़ में से 15 करोड़ खाते बंद हो गए।
मनरेगा की कहानी – 28 करोड़ ने मांगा काम, मिला किसे?
मनरेगा इस देश की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है जो रोजगार की कमी को दूर करने के लिए कांग्रेस के समय शुरू हुई थी। आज की तारीख में लगभग 28 करोड़ लोग मनरेगा के तहत काम मांगने के लिए दरवाजा खटखटाते हैं।
सरकार के अपने आंकड़े कहते हैं कि 12 करोड़ 17 लाख एक्टिव वर्कर हैं और इस वित्तीय वर्ष में यानी अप्रैल के बाद 25 करोड़ 71 लाख बैंक ट्रांसफर हुए हैं। अगर इसका औसत निकालें तो हर खाते में सिर्फ 21 रुपए गए हैं।
दूसरा आंकड़ा देखें तो 4 करोड़ 65 लाख घरों को फायदा हुआ और व्यक्तिगत तौर पर 1 करोड़ 9 लाख मजदूरों को। दोनों को जोड़ें तो 5 करोड़ 74 लाख काम कर रहे थे जिनके खाते में औसतन 47 रुपए गए।
उत्तर प्रदेश में हालात – जॉब कार्ड है, काम नहीं
उत्तर प्रदेश में मनरेगा से जुड़े एक्टिव वर्कर की संख्या सबसे ज्यादा है – 1 करोड़ 18 लाख। कुल वर्कर 2 करोड़ 38 लाख हैं। जॉब कार्ड 98 लाख लोगों को दिया गया है।
लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार ने खुद स्वीकार किया कि सिर्फ 77,353 लोगों को ही 100 दिन का काम दे पाती है। 2 करोड़ से ज्यादा वर्कर में से सिर्फ 77 हजार को पूरा काम मिलता है।
बजट की हालत और भी खराब है। 2021-22 में UP के लिए बजट 3 करोड़ था, फिर 31-32 करोड़, फिर 34 करोड़, पिछले साल 26 करोड़ और इस बरस सिर्फ 20 करोड़। मजदूरों की तादाद बढ़ रही है लेकिन बजट घट रहा है।
बंगाल का हाल – बजट शून्य, सांसद संसद की चौखट पर
पश्चिम बंगाल में कुल 2 करोड़ 57 लाख वर्कर हैं। 1 करोड़ 36 लाख को जॉब कार्ड मिला है। लेकिन एक्टिव वर्कर सिर्फ 18 लाख 46 हजार हैं और इनके लिए भी बजट शून्य है।
आखिरी बजट कोविड के बाद 2021-22 में 2.7 करोड़ का दिया गया था। उसके बाद एक पैसा नहीं गया। यही वजह है कि दो दिन पहले बंगाल के सांसद संसद की चौखट पर खड़े होकर नारे लगा रहे थे – “52,000 करोड़ हमारा बकाया है, दीजिए। नरेंद्र मोदी जवाब दो।”
पूरे देश में बजट घटा, मजदूर बढ़े
पूरे देश की तस्वीर देखें तो मनरेगा का बजट जो एक वक्त 1 लाख करोड़ से ज्यादा था, घटते-घटते इस वर्ष 68,000 करोड़ पर आ गया है।
2020-21 में 7 करोड़ 55 लाख घरों को काम मिलता था, अब सिर्फ 4 करोड़ 70 लाख घरों को। व्यक्तिगत मजदूरों की बात करें तो उस समय 11 करोड़ से ज्यादा को काम मिलता था, आज यह घटकर 6 करोड़ पर आ गया है। पैसा है नहीं और मजदूर बढ़ते जा रहे हैं।
मोदी का बयान – 1 लाख करोड़ का मालिक कोई नहीं
दो दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी हिंदुस्तान टाइम्स के लीडरशिप प्रोग्राम में गए थे। वहां उन्होंने एक हैरान करने वाला बयान दिया कि देश के बैंकों में 78,000 करोड़ रुपए यूं ही पड़े हैं जिनका कोई दावेदार नहीं है।
इंश्योरेंस कंपनियों में 14,000 करोड़ पड़ा है। म्यूचुअल फंड में 3,000 करोड़ है। डिविडेंड के रूप में 9,000 करोड़ है। यानी 1 लाख करोड़ से ज्यादा पैसा पड़ा है और कोई दावा करने वाला नहीं।
मोदी ने कहा – “हम खोज रहे हैं। अरे भाई बताओ तुम्हारा तो पैसा नहीं था। तुम्हारे मां-बाप का तो नहीं था। कोई छोड़ के तो नहीं चला गया।”
मुद्रा योजना का कमाल – 33 लाख करोड़ बांटे
जनधन में खाते बंद हो रहे हैं, मनरेगा का बजट घट रहा है, लेकिन मुद्रा योजना में पैसा बंटते जा रहा है और वह भी तेजी से बढ़ रहा है।
सरकार के आंकड़े कहते हैं कि लगभग 53 करोड़ 30 लाख खातों में 33 लाख करोड़ से ज्यादा की रकम डाली गई है। हर साल 6 करोड़ खातों में लाखों करोड़ रुपए जाते हैं।
2024-25 में 5 करोड़ 46 लाख खातों में 5,41,000 करोड़ डाले गए। औसतन हर खाते में 99,231 रुपए गए। 2023-24 में 79,813 रुपए हर खाते में गए। 2022-23 में 72,999 रुपए, 2021-22 में 61,773 रुपए और 2020-21 में 61,447 रुपए हर खाते में गए।
सवाल यह है कि कौन हैं वे लोग जिनके खाते में हर साल 60,000 से लेकर 99,000 रुपए जा रहे हैं। अपने मोहल्ले या गांव में पता कीजिए – मुद्रा योजना मिला किसे?
किसान सम्मान निधि – किसान कम कैसे हो गए?
किसान सम्मान निधि में साल में तीन बार हर 4 महीने में 2,000 रुपए यानी साल में 6,000 रुपए मिलते हैं। बजट हर साल 75,000 करोड़ का है। सरकार ने इसमें कोई कोताही नहीं बरती।
लेकिन आंकड़ों में अजीब उतार-चढ़ाव है। 2018-19 में 3 करोड़ 16 लाख किसान थे। 2019-20 में यह बढ़कर 8 करोड़ 20 लाख हो गए। 2021 में 9 करोड़ 84 लाख। 2021-22 में 10 करोड़ 41 लाख।
लेकिन अचानक 2022-23 में किसान घटकर 8 करोड़ 57 लाख हो गए। 2023-24 में और कम होकर 8 करोड़ 12 लाख। फिर 2024-25 में झटके से बढ़कर 10 करोड़ पार कर गए।
सवाल है – कौन किसान है? कहां से आ रहे हैं? करोड़ों किसान कम कैसे हो जा रहे हैं? इसका जवाब कौन देगा?
राज्यवार किसान लाभार्थी
सबसे ज्यादा किसान लाभार्थी उत्तर प्रदेश में हैं – 2 करोड़ 25 लाख। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है 91 लाख के साथ। मध्य प्रदेश में 81 लाख, बिहार में 75 लाख, राजस्थान में 70 लाख और गुजरात में लगभग 50 लाख किसान लाभार्थी हैं।
पैसा जा कहां रहा है – समानांतर अर्थव्यवस्था का खेल?
जब सारी योजनाओं को जोड़ा जाए तो तस्वीर हैरान करने वाली है। जनधन में 57 करोड़ खाते, मुद्रा में 33 लाख करोड़, किसान सम्मान में हर साल 75,000 करोड़, मनरेगा में 68,000 करोड़। और इन सबके अलावा गरीब कल्याण योजना में 80 करोड़ लोग।
सरकार की साइट पर हर जगह करोड़ों रुपए दर्ज हैं, करोड़ों लोगों का जिक्र है, हर खाते में डायरेक्ट ट्रांसफर का दावा है। लेकिन जनता के पास यह पैसा कहां है?
इतनी बड़ी तादाद में एक समानांतर अर्थव्यवस्था भी है जिसके सिरे को पकड़ना मुश्किल है। कौन सी योजना किस उद्देश्य से बनाई गई, उसकी अगुवाई कौन कर रहा है, मंत्री, उनके करीबी, सांसद, सत्ताधारी पार्टी के लोग – ये सब इन योजनाओं में कैसे शामिल हैं और पैसे का बंटवारा कैसे होता है – यह सवाल अनुत्तरित है।
क्या है पूरी पृष्ठभूमि
मोदी सरकार ने 11 वर्षों में 225 से ज्यादा लाभार्थी योजनाएं चलाई हैं। दावा है कि देश की आधी से ज्यादा जनसंख्या इन योजनाओं से जुड़ी है। लेकिन जब सरकार के अपने आंकड़ों को परखा जाता है तो विरोधाभास सामने आते हैं। जनधन में खाते बंद हो रहे हैं, मनरेगा का बजट घट रहा है, लेकिन मुद्रा में पैसा बढ़ रहा है। किसानों की संख्या कभी बढ़ती है कभी घटती है। RBI कुछ कहता है, बैंक कुछ कहते हैं, योजनाएं कुछ कहती हैं और लाभार्थी कुछ और। इस देश की जनता बस चुप है।
मुख्य बातें (Key Points)
- जनधन के 57 करोड़ खातों में से 15 करोड़ बंद हो गए क्योंकि उनमें 500 रुपए भी नहीं थे
- मनरेगा का बजट 1 लाख करोड़ से घटकर 68,000 करोड़ हो गया जबकि मजदूरों की संख्या बढ़ रही है
- मुद्रा योजना में 53 करोड़ खातों में 33 लाख करोड़ डाले गए लेकिन सवाल है कि लाभार्थी कौन हैं
- बंगाल को मनरेगा का बजट शून्य है और 52,000 करोड़ बकाया है जिसके लिए सांसद संसद में धरने पर बैठे






