नई दिल्ली 16 फरवरी (The News Air): सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिए ऐतिहासिक फैसले में राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिए शुरू चुनावी बॉण्ड योजना रद्द कर दी। अदालत ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ राइट टु इन्फर्मेशन का भी उल्लंघन करता है। आइए जानते हैं क्या है चुनावी बॉण्ड और कैसे राजनीतिक दलों तक इसके जरिए चंदा मिलता था।
- चुनावी बॉण्ड योजना क्या है?
चुनावी बॉण्ड योजना कॉरपोरेशन और व्यक्तियों को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) से चुनावी बॉण्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से चंदा देने की अनुमति देती है। केवल SBI के पास चुनावी बॉण्ड खरीदने वालों की डिटेल मौजूद है। - बॉण्ड को कितने दिनों में भुनाया जाना जरूरी था?
योजना के अनुसार बॉण्ड के जारी होने के 15 दिनों के भीतर भुनाया जाना जरूरी था। ऐसा नहीं करने पर बॉण्ड से मिला पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर दिया जाता था। वैसे रजिस्टर्ड राजनीतिक दल जिन्हें हाल के लोकसभा या राज्य विधानसभा चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत मिला हो वे बॉण्ड के जरिए चंदा ले सकते थे। - योजना लाने का मकसद क्या था?
पहली बार इसकी व्यवस्था वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017-2018 के बजट में की थी। इसे लाने के पीछे का मकसद राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाना था। बॉण्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिनों तक खरीदा जा सकता था। यह वक्त केंद्र सरकार ने तय किया था। - बॉण्ड के जरिए कितना चंदा दिया जा सकता था?
इस स्कीम के जरिए भारतीय नागरिकों और घरेलू कंपनियों को बॉण्ड के जरिए दान करने की अनुमति थी। वे एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये के गुणांक में अपनी पसंद की पार्टी को चंदा दे सकते थे। - किसे मिला सबसे ज्यादा चंदा?
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, BJP को 2018 और 2022 के बीच खरीदे गए सभी चुनावी बॉण्ड में से आधे से अधिक मिले। राजनीतिक दलों के अनुसार, BJP को कुल 9,208 करोड़ में से ₹ 5,270 करोड़ मिले, जो कुल चुनावी बॉण्ड का 57 प्रतिशत है। कांग्रेस ₹964 करोड़ या 10 प्रतिशत चंदा हासि करके दूसरे स्थान पर रही। - विदेशों में क्या है चंदा लेने का नियम?
यूनाइटेड किंगडम (UK), ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में अगर राजनीतिक दलों को चंदा एक निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो चंदा देने वालों को खुद को कॉम्पिटेंट अथॉरिटी के पास रजिस्टर्ड कराना पड़ता है। UK में कोई भी किसी राजनीतिक दल, व्यक्ति या अन्य संगठन को दान दे सकता है। दान की जाने वाली राशि की कोई सीमा नहीं है। अमेरिका में कैंपेन फाइनैंस लॉ उम्मीदवारों या राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को रेगुलेट करता है।
चुनावों में स्टेट फंडिंग को लेकर तैयार नहीं पार्टियां : चुनावी बॉण्ड को लेकर तमाम राजनीतिक दल जो दावे करें, लेकिन चुनावों में फंडिंग को लेकर किसी भी राजनीतिक दल ने कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई। चुनाव आयोग ने कई मौकों पर इस मामले में प्रस्ताव भी पेश किए। पिछले दो दशक से चुनाव आयोग की चुनाव सुधार से जुड़े रिफॉर्म के प्रस्ताव में सबसे अहम रहा है स्टेट फंडिंग का मामला। वर्षों से सभी राजनीतिक दल चुनाव सुधार के प्रस्ताव पर सहमत नहीं रहे हैं। खुद BJP उनमें तमाम प्रस्ताव का विरोध कर रही है। लॉ कमिशन और चुनाव आयोग की ओर से चुनाव लड़ने के लिए स्टेट फंडिंग के प्रस्ताव को तो देश के दो सबसे बड़े दल कांग्रेस और बीजेपी पहले ही खारिज कर चुके हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी की ओर से इस मामले में बहस करने का संकेत जरूर दिया। उन्होंने इसके लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने की शर्त भी जोड़ दी है जो फिलहाल कम से कम दस सालों तक संभव नहीं दिखता है।