The News Air (चंडीगढ़)-करतारपुर कॉरिडोर बुधवार से फिर खुल गया। कोरोना महामारी के कारण यह 16 मार्च 2020 से यानी 20 महीने से बंद था। करतारपुर गुरुद्वारा बँटवारे के समय एक अंग्रेज़ वकील की ग़लती से पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था। अनदेखी और ज़ंग में हुए हमलों से यह जर्जर होता गया। लोग यहां मवेशी तक बांधने लगे थे, लेकिन 90 के दशक में पाकिस्तान सरकार ने इसकी मरम्मत का फ़ैसला किया। आइए इस गुरुद्वारे के इतिहास के बारे में जानें सब कुछ।
करतारपुर गुरुद्वारे का इतिहास
करतारपुर साहिब पाकिस्तान के नारो वाल ज़िले में रावी नदी के पास स्थित है। इसका इतिहास 500 साल से भी पुराना है। माना जाता है कि 1522 में सिखों के गुरु नानक देव ने इसकी स्थापना की थी। उन्होंने अपने जीवन के आखिरी साल यहीं बिताए थे।
रावी नदी के फ्लो को बॉर्डर मानने से यह पाकिस्तान में चला गया
लाहौर से करतारपुर साहिब की दूरी 120 किलोमीटर है। वहीं, पंजाब के गुरदासपुर इलाक़े में भारतीय सीमा से यह लगभग 7 किलोमीटर दूर है।लैरी कॉलिन्स और डॉमिनिक लैपियर की किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के मुताबिक़, अंग्रेज़ वकील रेडक्लिफ को बँटवारे का नक़्शा बनाने के लिए 2 महीने से भी कम का समय मिला था और उन्हें भारत की भौगोलिक स्थिति की कोई जानकारी नहीं थी। ऐसे में उन्होंने रावी नदी के नेचुरल फ्लो को ही बॉर्डर बना दिया। करतारपुर गुरुद्वारा रावी के दूसरी तरफ़ था, लिहाज़ा यह पाकिस्तान के हिस्से में चला गया।
भारत-पाकिस्तान की ज़ंग से गुरुद्वारे को काफ़ी नुक्सान हुआ
1965 और 71 की ज़ंग में इस गुरुद्वारे का काफ़ी नुक्सान हुआ। 90 के दशक तक तो इसकी इमारत बहुत ख़राब हो गई थी। लोग यहां मवेशी बांधने लगे थे। लोग इसका इतिहास तक भूल गए थे। जिन भारतीयों को इसकी अहमियत पता थी, उनमें से कुछ लोग ही यहां जाते थे। इन्हें भी वाघा बॉर्डर से ही जाना पड़ता था।
दोनों देशों की सरकारों की कोशिशों से बना था कॉरिडोर
1998 के बाद पाकिस्तान सरकार ने गुरुद्वारे पर ध्यान दिया और इसकी मरम्मत कराई। सालों तक काम चलता रहा। बाद में भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक और पाकिस्तान के करतारपुर में स्थित पवित्र गुरुद्वारे को जोड़ने के लिए कॉरिडोर बनाने का फ़ैसला किया। भारत में 26 नवंबर 2018 को और पाकिस्तान में 28 नवंबर 2018 को कॉरिडोर की नींव रखी गई। गुरुनानक देव जी के प्रकाशोत्सव पर 9 नवंबर 2019 को इसे जनता को समर्पित कर दिया गया था।