नई दिल्ली (The News Air) ऑस्ट्रियाई पब्लिक ब्रॉडकास्टर ओआरएफ से बात करते हुए एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों से लेकर,भारत के पड़ोसी देशों के बीच संबंधों और रूस के साथ भारत के गहरे रिश्तों से जुड़े सवालों पर जवाब दिए। इंटरव्यू में बातचीत करते हुए विदेश मंत्री ने वर्तमान युद्ध और भारत की विदेश नीति को लेकर कई सारे सवालों का जवाब दिया।
दुनिया को आतंकवाद को लेकर चिंतित होना चाहिए
आतंकवाद पर एक सवाल का उत्तर देते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, “मुझे लगता है कि दुनिया को आतंकवाद को लेकर चिंतित होना चाहिए। दुनिया को इस बात को लेकर परेशान होना चाहिए कि आतंकवाद पनप रहा है और वह मुँह फेरे बैठी है। दुनिया को अक्सर ऐसा लगता है कि अगर ये मेरे घर में नहीं हो रहा है तो ये किसी दूसरे व्यक्ति की समस्या है। ऐसे में मुझे लगता है कि दुनिया को इस बात के प्रति चिंतित होना चाहिए कि वह कितनी ईमानदारी और मजबूती के साथ आतंकियों की चुनौती का सामना करती है।” विदेश मंत्री ने आगे कहा कि “एक राजनयिक होने का मतलब ये नहीं है कि आप सच नहीं बोल सकते। मैं इपिसेंटर (आतंक के केंद्र) से ज्यादा सख्त शब्दों का इस्तेमाल कर सकता था। हमारे साथ जो कुछ हो रहा है, उसके हिसाब से इपिसेंटर एक बेहद कूटनीतिक शब्द है।” इसके बाद विदेश मंत्री ने पिछले कुछ सालों में भारत पर हुए आतंकी हमलों का जिक्र किया। विदेश मंत्री ने भारतीय संसद,मुंबई शहर और होटलों के साथ-साथ विदेशी पर्यटकों को निशाना बनाए जाने के साथ ही हर रोज सीमा पार आतंकी गतिविधियों पर भी विस्तार से जानकारी दी। इसके बाद विदेश मंत्री ने ऑस्ट्रियाई पत्रकार से सवाल किया कि “जब शहरों में दिन दहाड़े आतंकी कैंप चल रहे हैं, वहाँ आतंकियों के रिक्रूटमेंट से लेकर आर्थिक मदद तक पहुंच रही है तो क्या वहाँ कि सरकारों को इसकी जानकारी नहीं होगी .. ?,,
भारत और रूस के बीच लंबा रिश्ता: विदेश मंत्री
रुस के साथ भारत के संबंधों पर पूछे गए सवाल पर विदेश मंत्री ने कहा, “हमारा रूस के साथ एक लंबा संबंध है। इस संबंध के इतिहास को देखना बहुत जरूरी है। ये संबंध उस दौर में बना था जब पश्चिमी लोकतांत्रिक देश सैन्य तानाशाही वाले देश को हथियारों से लैस कर रहे थे और भारत को अपनी सुरक्षा के लिए भी हथियार नहीं दे रहे थे। ऐसे में अगर हम सिद्धांतों की बात कर रहे हैं तो थोड़ा इतिहास के पन्ने पलटने चाहिए।”
वार्ता और कूटनीति से ही संघर्ष का समाधान
इंटरव्यू के दौरान विदेश मंत्री से पूछा गया कि क्या भारत एक ऐसे युद्ध में तटस्थ रह सकता है कि जिसमें युद्ध के लिए सिर्फ एक पक्ष जिम्मेदार हो। इस पर विदेश मंत्री ने कहा कि “बिल्कुल, ये संभव है। मैं ऐसे कई उदाहरण दे सकता हूँ जब देशों ने दूसरे देशों की संप्रभुता पर हमला किया। अगर मैं यूरोप से सवाल करूं कि ऐसे मौकों पर वे कहां खड़े थे तो मुझे डर है कि मुझे एक लंबी चुप्पी का सामना करना होगा…आखिरकार हम विदेश नीति के फैसले अपने दीर्घकालिक हितों और वैश्विक हितों के आधार पर करते हैं।” विदेश मंत्री ने कहा कि भारत कूटनीति के साथ मेज पर एक साथ आकर बातचीत के माध्यम से पूर्ण समाधान करने का पक्षधर है।
रूसी तेल के आयात पर सवाल
इस इंटरव्यू में भी विदेशमंत्री जयशंकर से यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से बढ़ते रूसी तेल आयात पर सवाल किया गया। इस सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि यूरोप ने भारत से छह गुना ज्यादा तेल आयात किया है। उन्होंने कहा, “यूरोप ने रूस से अपनी ऊर्जा आपूर्ति को धीमे-धीमे कम किया है। जब आप अपनी जनता, जिसकी प्रतिव्यक्ति आय 60 हजार यूरो है, को लेकर इतने संवेदनशील हैं तो हमारी जनता की प्रतिव्यक्ति आय दो हजार अमेरिकी डॉलर है। मुझे भी ऊर्जा की जरूरत है। मैं इस स्थिति में नहीं हूँ कि तेल के लिए भारी कीमत दे सकूं।” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यूरोपीय नेता जब अपनी जनता पर इस युद्ध का कम से कम असर पड़ने देना चाहते हैं तो उन्हें दूसरे देशों को भी ऐसा करने देना चाहिए। ये कहते हुए भी जयशंकर ने यूरोपीय नेताओं को निशाने पर लेते हुए कहा कि अगर बात सिद्धांत की थी तो रूसी तेल लेना युद्ध होते ही बंद कर देना चाहिए था। उन्होंने कहा, “अगर मसला सिद्धांत का है तो यूरोप ने 25 फरवरी को ही रूस ऊर्जा के आयात को बंद क्यों नहीं किया था।”
संयुक्त राष्ट्र में सुधार के मुद्दे पर विदेश मंत्री क्या बोले
संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लेकर विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, “आपके सामने एक ऐसी स्थिति होगी जब दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं होगा। ये संयुक्त राष्ट्र संघ के बारे में क्या बताता है? “इसके साथ ही उन्होंने कहा कि “आज जो लोग स्थायी सदस्यता का लाभ उठा रहे हैं, स्पष्ट रूप से वे सुधारों को लेकर जल्दबाजी में नहीं है। मुझे लगता है कि ये काफी लघु नजरिया है। विदेश मंत्री ने आगे कहा कि “ऐसे में मुझे लगता है कि सुधारों में थोड़ा व्यक्त लगेगा। लेकिन उम्मीद करता हूँ कि इसमें ज्यादा व्यक्त न लगे। विदेश मंत्री ने कहा कि मैं संयुक्त राष्ट्र के दूसरे सदस्य देशों की ओर से भी सुधार की मांग उठते देख रहा हूं। सिर्फ हम ही इस बारे में बात नहीं कर रहे हैं।” जयशंकर ने कहा, “इसमें पूरे अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों का स्थाई सदस्यों में कोई भागीदारी नहीं है और विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व भी काफी कम है। विदेश मंत्री ने सुधारों के अंतर को समझाते हुए कहा कि ये संस्था 1945 में बनाई गयी थी। और ये 2023 है।”