Health Insurance Claim Regulation India को लेकर केंद्र सरकार अब एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। देश में लगातार बढ़ रहे बेहिसाब मेडिकल बिल्स (Medical Bills) और हेल्थ इंश्योरेंस (Health Insurance) से जुड़े खर्चों पर लगाम लगाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार मौजूदा क्लेम पोर्टल्स (Claim Portals) को वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) के अधीन लाने की योजना पर काम कर रही है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि यह फैसला मरीजों को अनावश्यक आर्थिक बोझ से बचाने के लिए लिया जा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार चाहती है कि भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) अब स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं (Hospitals) की भी निगरानी करे। इस कदम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अस्पताल बीमाधारकों से अत्यधिक शुल्क वसूल न करें। AON की ग्लोबल मेडिकल ट्रेंड रेट्स रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में भारत में स्वास्थ्य सेवा की लागत में 13% वृद्धि का अनुमान है, जो वैश्विक औसत 10% से अधिक है।
सरकार और IRDAI के विश्लेषण में सामने आया है कि अस्पताल विशेष रूप से उच्च बीमा कवर वाले मरीजों से अधिक शुल्क वसूलते हैं। इसके चलते बीमा कंपनियां भी प्रीमियम दरें बढ़ा रही हैं, जिससे आम नागरिकों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार, इस अनियंत्रित खर्च की वजह से कई लोग अपनी हेल्थ पॉलिसी का नवीनीकरण नहीं कर पा रहे हैं। 2024-25 में हेल्थ बीमा प्रीमियम आय में वृद्धि दर घटकर 9% रह गई है, जो पिछले वर्ष 20% थी।
इस संकट से निपटने के लिए राष्ट्रीय हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (National Health Claim Exchange) की निगरानी को मजबूत किया जा रहा है। यह एक्सचेंज बीमा कंपनियों, अस्पतालों और मरीजों के बीच एक डिजिटल कड़ी का कार्य करता है और वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (National Health Authority) के अधीन है। यह प्राधिकरण IRDAI के साथ मिलकर इस प्रणाली को आगे बढ़ा रहा है।
सूत्रों का मानना है कि यदि इस क्लेम एक्सचेंज को वित्त मंत्रालय के अधीन लाया जाता है, तो इससे इलाज की दरों पर सामूहिक सौदेबाजी शक्ति (Collective Bargaining Power) बढ़ेगी और बीमा कंपनियां मरीजों के हित में नीतियां तय कर सकेंगी। इससे क्लेम पास होने की प्रक्रिया भी अधिक पारदर्शी और नियंत्रित होगी।
बहरहाल, भारत सरकार का यह कदम यदि लागू होता है तो यह देश में मेडिकल सेक्टर में पारदर्शिता और मरीजों की वित्तीय सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है। इस कदम से न सिर्फ बीमा कंपनियों की जवाबदेही तय होगी बल्कि अस्पतालों की मनमानी पर भी लगाम लगेगी।