वाराणसी (Varanasi), 25 जनवरी (The News Air): लिव-इन रिलेशनशिप (Live-In Relationship) पर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि यह संबंध समाज में सामाजिक स्वीकृति नहीं रखते, फिर भी युवा पीढ़ी इनमें तेजी से आकर्षित हो रही है। कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि समाज को नैतिक मूल्यों (Moral Values) को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव (Justice Nalin Kumar Srivastava) ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की। यह मामला वाराणसी (Varanasi) के आरोपी आकाश केसरी (Akash Kesari) का है, जिस पर महिला से शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाने, गर्भपात करवाने और जातिगत गालियां देने जैसे गंभीर आरोप लगे थे।
लिव-इन रिलेशनशिप पर कोर्ट का नजरिया
कोर्ट ने कहा, “लिव-इन रिलेशनशिप समाज में नैतिक मूल्यों को कमजोर कर सकते हैं। युवा इन रिश्तों को इसलिए अपनाते हैं क्योंकि इनमें जिम्मेदारी से बचना आसान होता है। लेकिन ऐसे संबंधों की बढ़ती प्रवृत्ति पर नियंत्रण जरूरी है।”
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि बदलते समाज में नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों पर ध्यान देना अनिवार्य है।
केस का विवरण और कोर्ट की जमानत मंजूरी
आकाश केसरी पर आरोप था कि उसने एक महिला से शादी का वादा करके छह साल तक लिव-इन रिलेशनशिप में रखा। महिला ने आरोप लगाया कि उसने शारीरिक संबंध बनाए और बाद में शादी से इनकार कर दिया।
महिला ने यह भी दावा किया कि आरोपी ने जबरन उसका गर्भपात (Abortion) करवाया और उसे जातिगत गालियां दीं।
वाराणसी के एससी/एसटी कोर्ट (SC/ST Court) ने 6 अगस्त 2024 को आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद आरोपी ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए अपील की।
आरोपी के वकील ने दलील दी कि दोनों के बीच संबंध आपसी सहमति (Mutual Consent) से थे और महिला के आरोप झूठे हैं।
हाईकोर्ट ने यह देखते हुए जमानत दी कि दोनों के बीच लिव-इन रिलेशन सहमति से था। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज में नैतिकता बनाए रखना बेहद जरूरी है।
युवाओं में बढ़ता लिव-इन रिलेशन का क्रेज
कोर्ट ने युवाओं के लिव-इन रिलेशनशिप की ओर बढ़ते रुझान पर सवाल उठाया।
- लिव-इन रिलेशनशिप क्यों आकर्षित करते हैं?
- कम जिम्मेदारी: इन रिश्तों में पारंपरिक विवाह जैसी सामाजिक जिम्मेदारियां नहीं होतीं।
- आधुनिक जीवनशैली: स्वतंत्रता और कैजुअल रिलेशनशिप का प्रभाव।
- कानूनी सहारा: सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों ने लिव-इन रिलेशन को कानूनी संरक्षण दिया है।
हालांकि, कोर्ट ने इस पर चिंता जताई कि ऐसे संबंध पारिवारिक मूल्यों और समाजिक ढांचे को कमजोर कर सकते हैं।
लिव-इन और नैतिक मूल्यों पर समाज को सोचने की जरूरत
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि समाज को नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए जागरूक होना चाहिए।
“समाज में एक ऐसा ढांचा होना चाहिए, जो नैतिकता और पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने में मदद करे।”
कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि माता-पिता, स्कूल और समाज मिलकर युवाओं को पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के महत्व को सिखाएं।
क्या कहते हैं आंकड़े?
- भारत में लिव-इन रिलेशनशिप के मामले पिछले एक दशक में 40% बढ़े हैं।
- शहरी क्षेत्रों में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिव-इन रिलेशन को कानूनी मान्यता दी थी।
लिव-इन रिलेशनशिप आज के समाज का एक उभरता हुआ ट्रेंड है, लेकिन इसके बढ़ते प्रभाव पर नियंत्रण जरूरी है। हाईकोर्ट का यह बयान हमें सोचने पर मजबूर करता है कि समाज में नैतिक मूल्यों को बचाए रखने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।