Bihar Caste Census: पटना उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य सरकार द्वारा बिहार में जाति जनगणना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। बिहार में जातीय जनगणना 2 चरणों में होनी है। नीतीश सरकार के जातीय जनगणना कराने के फैसले के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में छह याचिकाएं दायर की गईं। जाति गणना को लेकर राज्य सरकार की ओर से पटना हाईकोर्ट में कहा गया कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए हर कोई अपनी जाति बताने को उत्सुक रहता है।
50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है –SC
नगर निगम और पंचायत चुनाव में पिछड़ी जातियों को आरक्षण नहीं मिलने का हवाला देते हुए सरकार ने कहा कि OBCको 20 फीसदी, SCको 16 फीसदी और STको एक फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। फिर भी SCके फैसले के मुताबिक 50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है। राज्य सरकार नगर निकाय और पंचायत चुनाव में 13 फीसदी ज्यादा आरक्षण दे सकती है। सरकार ने कोर्ट में दलील दी थी कि जाति गणना इसलिए भी जरूरी है।
मामले में कोर्ट ने 25 दिन बाद सुनाया फैसला
HCने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब 25 दिन बाद इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाया है। जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों से सुनवाई की। पटना हाई कोर्ट में सुनवाई के अंतिम दिन भी राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया था कि यह सर्वेक्षण है। इसका मकसद आम नागरिकों के बारे में सामाजिक अध्ययन के लिए आंकड़े जुटाना है। इसका उपयोग आम लोगों के कल्याण और हितों के लिए किया जाएगा।
‘सर्वेक्षण राज्य का अधिकार‘
महाधिवक्ता पीके शाही ने अदालत को बताया था कि शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश या नौकरी के लिए आवेदन या फिर नियुक्ति के समय भी जाति संबंधी जानकारी दी जाती है। शाही ने तर्क दिया कि जातियाँ समाज का हिस्सा हैं। हर धर्म में अलग-अलग जातियां होती हैं। इस सर्वे के दौरान किसी को भी किसी भी प्रकार की जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है।
यह एक स्वैच्छिक सर्वेक्षण जनगणना है, जिसका लगभग 80 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है। उन्होंने कहा कि इस तरह का सर्वे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। सर्वे से किसी की निजता का उल्लंघन नहीं हो रहा है। पीके शाही ने कोर्ट को बताया कि बहुत सारी जानकारी पहले से ही सार्वजनिक है।