Haryana Uniform Scam : हरियाणा के शिक्षा विभाग में एक बार फिर 10 साल पुराना जिन्न बाहर आ गया है। 700 करोड़ रुपये के कथित स्टेशनरी और वर्दी घोटाले में अब सीबीआई ने जांच तेज कर दी है। यह घोटाला 2014 से 2016 के बीच का बताया जा रहा है। सीबीआई ने अब शिक्षा विभाग के अधिकारियों को मेल भेजकर और स्कूलों से सीधा रिकॉर्ड तलब कर लिया है, जिससे पूरे विभाग में हड़कंप मच गया है।
यह पूरा मामला गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को मिलने वाली मुफ्त वर्दी और स्टेशनरी की खरीद से जुड़ा है। आरोप हैं कि अधिकारियों और स्कूल प्रभारियों ने मिलकर छात्रों की संख्या को कागजों में कई गुना बढ़ाकर दिखाया और 700 करोड़ रुपये के सरकारी बजट में बड़ा घपला किया।
700 करोड़ का ‘महाघोटाला’, CBI ने तेज की जांच
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने इस 700 करोड़ रुपये के ‘महाघोटाले’ की जांच को अब तेज कर दिया है। सीबीआई ने जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO) और ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों (BEO) के दफ्तरों को ईमेल भेजकर सख्त निर्देश दिए हैं। जांच एजेंसी ने स्कूलों से 2014-15 और 2015-16 के सत्र का पूरा रिकॉर्ड पेश करने को कहा है।
इस मामले में 12 नवंबर को सीबीआई कोर्ट ने विभाग के डायरेक्टर को भी तलब किया था और खरीद प्रक्रिया से जुड़े सभी दस्तावेज और छात्रों की संख्या का पूरा रिकॉर्ड पेश करने का आदेश दिया था। नोटिस मिलते ही शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों ने आनन-फानन में सभी BEO दफ्तरों को फोन करके तुरंत स्कूलों से रिकॉर्ड मंगवाने के निर्देश जारी किए। यह कार्रवाई इतनी तेजी से हुई कि कई स्कूल इंचार्ज, जो छुट्टी के कारण घर जा चुके थे, उन्हें भी वापस बुलाकर रिकॉर्ड तैयार करने को कहा गया।
कैसे हुआ यह पूरा घोटाला?
यह घोटाला करने का तरीका बेहद शातिराना था। सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को मुफ्त किताबें, स्टेशनरी और स्कूल यूनिफॉर्म मुहैया कराती है। इसके लिए राज्य स्तर पर एक अलग बजट रखा जाता है और छात्रों की संख्या के आधार पर ही बजट जिलों और फिर स्कूलों तक पहुंचाया जाता है।
आरोपों के मुताबिक, इस घोटाले में स्कूल स्तर से लेकर उच्च अधिकारियों तक की मिलीभगत थी। स्कूलों ने अपने यहां पढ़ने वाले गरीब छात्रों की संख्या को कागजों में फर्जी तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया। वीडियो रिपोर्ट के अनुसार, उदाहरण के तौर पर अगर किसी स्कूल में 500 गरीब छात्र थे, तो उनकी संख्या 1500 या 2000 तक दिखाई गई।
कागजों में ‘फर्जी छात्र’, असली खजाने की लूट
इन फर्जी छात्रों के नाम पर सरकार से करोड़ों रुपये का बजट लिया गया। बढ़ी हुई संख्या के आधार पर ही स्टेशनरी और वर्दियों की खरीद की गई। यानी, जो छात्र कभी स्कूल में थे ही नहीं, उनके नाम पर वर्दियां और किताबें खरीदी गईं और पैसा सरकारी खजाने से निकाल लिया गया।
जब बाद में शिकायतों के आधार पर स्कूलों के असली छात्र रजिस्टरों का मिलान किए गए बजट से किया गया, तो यह पूरा घपला उजागर हुआ। यह सामने आया कि कागजों में दिखाए गए छात्रों की संख्या और स्कूल में असल में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में जमीन-आसमान का फर्क था।
2014-15 और 2015-16 के रिकॉर्ड खंगाल रही CBI
सीबीआई का पूरा फोकस अकादमिक सत्र 2014-15 और 2015-16 पर है। इन्हीं दो सालों के दौरान यह 700 करोड़ रुपये का बजट खर्च किया गया था। जांच एजेंसी अब हर स्कूल से उस दौरान के छात्र रजिस्ट्रेशन रजिस्टर मांग रही है। वह यह मिलान कर रही है कि किस स्कूल में असल में कितने छात्र थे, कितनों को योजना का लाभ मिला और स्कूल ने कितने छात्रों के लिए बजट क्लेम किया था।
उदाहरण के तौर पर, हरियाणा के नांगल चौधरी ब्लॉक के सभी प्राइमरी और हाई स्कूलों का रिकॉर्ड खंगाला जा रहा है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कागजों में कितनी गड़बड़ी की गई।
विधानसभा में भी गूंजा था मुद्दा
यह मामला इतना बड़ा था कि 2014-16 के दौरान यह हरियाणा विधानसभा में भी जोर-शोर से गूंजा था। विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा था, जिसके बाद इस पूरी खरीद प्रक्रिया की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला किया गया था। लेकिन, हैरानी की बात है कि यह जांच 10 साल तक ठंडे बस्ते में पड़ी रही।
10 साल की देरी पर उठे सवाल
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल जांच में हुई 10 साल की देरी पर उठ रहा है। 2014-15 में जब यह घोटाला हुआ, तब भी राज्य में भाजपा की सरकार थी और आज 2025 में भी भाजपा की ही सरकार है। ऐसे में सवाल उठता है कि सीबीआई जैसी एजेंसी को जांच तेज करने में 10 साल क्यों लग गए?
इस लंबी देरी का एक बड़ा नतीजा यह भी है कि उस समय के कई अधिकारी और स्कूल स्टाफ रिटायर हो चुके होंगे। ऐसे में उन तक पहुंचना और उनसे रिकॉर्ड हासिल करना सीबीआई के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
जांच की आंच कहां तक जाएगी?
वीडियो रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि यह घपला सिर्फ स्कूल टीचर या क्लर्क के स्तर पर नहीं हो सकता। यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या सिर्फ टीचरों और क्लर्कों ने मिलकर 700 करोड़ रुपये का इतना बड़ा घोटाला कर दिया?
आशंका जताई जा रही है कि इस घोटाले के तार ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO), जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) से लेकर विभाग के आला अधिकारियों और यहां तक कि उस समय के राजनीतिक आकाओं तक भी जुड़े हो सकते हैं। सीबीआई अब इसी पूरी चेन का पर्दाफाश करने में जुटी है कि खरीद के आदेश किसने दिए और किसके कहने पर फर्जी छात्रों की संख्या को मंजूरी दी गई।
‘गरीबों के हक पर डाका’
यह घोटाला सिर्फ सरकारी पैसे की लूट नहीं है, बल्कि यह उन लाखों गरीब बच्चों के हक पर डाका है, जो सरकारी मदद के सहारे अपनी पढ़ाई पूरी करने का सपना देखते हैं। वीडियो में एंकर ने इस बात पर रोष जताया कि जिन अधिकारियों की तनख्वाह लाखों में है, उन्होंने उन बच्चों की वर्दी और किताबों का पैसा खा लिया, जिनके घरों में दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से बनती है।
यह घोटाला शिक्षा व्यवस्था में फैले गहरे भ्रष्टाचार को उजागर करता है, जहां जरूरतमंदों के लिए बनी योजनाएं ही लूट का सबसे आसान जरिया बन जाती हैं।
‘जानें पूरा मामला’
यह पूरा मामला हरियाणा सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) छात्रों को दी जाने वाली मुफ्त स्टेशनरी, किताबें और स्कूल यूनिफॉर्म से जुड़ा है। सरकार हर साल इन छात्रों के लिए करोड़ों का बजट जारी करती है। आरोप है कि साल 2014-15 और 2015-16 के दौरान, शिक्षा विभाग के अधिकारियों और स्कूल प्रभारियों ने मिलीभगत कर फर्जी छात्र संख्या दिखाई। जिन स्कूलों में 500 छात्र थे, वहां 1500 दिखाकर, उनके नाम पर 700 करोड़ रुपये का बजट हड़प लिया गया। यह मामला हरियाणा विधानसभा में भी उठा, जिसके बाद जांच सीबीआई को सौंपी गई। अब 10 साल बाद सीबीआई ने जांच तेज करते हुए सभी स्कूलों और शिक्षा अधिकारियों से 2014-16 का पूरा रिकॉर्ड तलब किया है।
मुख्य बातें (Key Points):
- हरियाणा में 2014-16 के बीच 700 करोड़ रुपये का स्कूल यूनिफॉर्म और स्टेशनरी घोटाला हुआ।
- घोटाला करने के लिए स्कूलों में गरीब छात्रों की संख्या कागजों पर कई गुना बढ़ाकर दिखाई गई।
- सीबीआई ने 10 साल बाद जांच तेज कर दी है और सभी स्कूलों से पुराना रिकॉर्ड मांगा है।
- इस मामले में स्कूल स्टाफ से लेकर BEO, DEO और बड़े अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका है।






