चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अध्यादेश से रद्द नहीं कर सकती सरकार…

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चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अध्यादेश से रद्द नहीं कर सकती सरकार...
चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अध्यादेश से रद्द नहीं कर सकती सरकार...

नई दिल्ली 15 फरवरी (The News Air) : इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये संविधान की ओर से दिए गए सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के राइट्स का उल्लंघन करती है। सर्वोच्च अदालत के फैसले का कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने स्वागत किया है। वहीं इस फैसले पर वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने बड़ा दावा किया है। इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू उन्होंने कहा कि सरकार एक अध्यादेश के साथ चुनावी बॉन्ड के फैसले को रद्द नहीं कर सकती। कोई भी कानून सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द नहीं कर सकता।

कपिल सिब्बल ही चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से मुख्य वकील थे और अपना तर्क रख रहे थे। उन्होंने इस योजना को रद्द करने वाले फैसले से जुड़े अहम पहलुओं की जानकारी दी। वरिष्ठ वकील ने बताया कैसे उन्हें लगता है कि कैसे इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम एक बड़ा घोटाला है। उन्होंने कहा कि कोर्ट का ये फैसला ऐतिहासिक है। यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा को बहाल करने का प्रयास करता है, जो संविधान की मूल संरचना है। यह चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता लाने की कोशिश करता है।

इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कपिल सिब्बल से जब पूछा गया कि फैसले के महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं? : कपिल सिब्बल ने कहा कि पहली बात यह कि उन्होंने माना अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना का अधिकार लोकतंत्र के लिए मौलिक है। केएस पुट्टास्वामी और अन्य फैसलों पर भरोसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि सत्ता में राजनीतिक दल को किसने कितना पैसा दिया। जब आप इन बॉन्ड्स के माध्यम से इस तरह पैसों का योगदान कर रहे हैं। जाहिर है, ये योगदान बहुत बड़ा है और इसमें बदले की भावना का एक तत्व हो सकता है। ऐसे में नागरिक को कम से कम उस जानकारी को प्राप्त करने का अधिकार है। एक तरह से, यह अनुच्छेद 19(1)(ए) में अंतर्निहित अवधारणा को आगे बढ़ा रहा है।

क्या आपको आशंका है कि सरकार इस फैसले के खिलाफ कोई कदम उठाएगी? : कपिल सिब्बल ने कहा कि वे ऐसा नहीं कर सकते। एक अध्यादेश किसी फैसले को रद्द नहीं कर सकता। कोई भी कानून किसी फैसले को रद्द नहीं कर सकता। वे नई फंडिंग व्यवस्था स्थापित करने के लिए अध्यादेश ला सकते हैं। लेकिन ये नहीं। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको लगता है सरकार ऐसा करेगी? सिब्बल ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं लगता, हालांकि, इसका पता 13 मार्च तक ही लग सकेगा। तब तक आदर्श आचार संहिता लग जाएगी।

क्या आपको लगता है कि विपक्षी दलों को अब इसे अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए? : सिब्बल ने कहा कि इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाना चाहिए। यह विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों का एक साथ मिलकर इस आधार पर चुनाव लड़ने का एक बड़ा अवसर है। कपिल सिब्बल ने कहा कि सच तो यह है कि इस फैसले से सबसे ज्यादा आंच बीजेपी को झेलनी पड़ेगी क्योंकि यह उनकी योजना है। यह विपक्ष की योजना नहीं है। वे इस योजना का उपयोग कर रहे थे, जिसे अब असंवैधानिक करार दिया गया है। जब उनसे पूछा गया कि कम से कम तीन क्षेत्रीय दलों – बीजेडी, डीएमके और टीएमसी को उनकी लगभग सारी फंडिंग चुनावी बांड के माध्यम से मिली है, योजना खत्म होने से उन पर भी भारी असर पड़ेगा। इस पर सिब्बल ने कहा कि क्यों नहीं? अगर बीजेपी को झटका लगा है तो दूसरों को भी झटका लगना चाहिए।

इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर SC के फैसले पर जमकर बोले सिब्बल : कपिल सिब्बल ने बताया कि कैसे ये संशोधन राजनीतिक दल और दानदाताओं को इनकम टैक्स से बचाव कर रहे थे। राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से मिले पैसों का खुलासा करने से भी बचाया। सियासी पार्टियों को इसका खुलासा नहीं करने की अनुमति दी। तीसरा यह कि फंडिंग की कोई सीमा नहीं थी। पिछले कानून के तहत, यह पिछले तीन वर्षों के लिए किसी कंपनी के औसत मुनाफे का केवल 10 फीसदी था जिसे संबंधित व्यक्तियों या राजनीतिक दलों से संबंधित संस्थाओं के माध्यम से वित्तीय मदद किया जा सकता था। वह सीमा हटा दी गई थी जिससे आप जितना चाहें उतना योगदान कर सकें और घाटे में चल रही कंपनी भी चुनावी बांड योजना के तहत (फंडिंग) जारी रख सके। यहां तक कि जो कंपनियां भारत के बाहर स्थापित की गई थीं, उनकी भारतीय सहायक कंपनियां भी योगदान दे सकती थीं। इसलिए, उन सभी संशोधनों को अनुच्छेद 14 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया गया।

क्यों ऐतिहासिक है सुप्रीम कोर्ट फैसला, सिब्बल ने बताया : कपिल सिब्बल ने कहा कि ये पारदर्शिता को लेकर अहम दिन है, सूचना के अधिकार के लिए एक महान दिन है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक बड़ा दिन है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट को यह भी एहसास हुआ कि इस इलेक्टोरल बांड योजना का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। यह व्हाइट मनी है, इसका इस्तेमाल ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है। यह केवल एक राजनीतिक दल के पास जाता है ताकि वे इस धन का उपयोग अपने किसी भी खर्च के लिए कर सकें, जिसमें सरकारें गिराना भी शामिल है।

इसलिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को SC ने किया रद्द : सिब्बल ने कहा कि याद रखें, वे अपने विधायकों को एक शहर से दूसरे शहर ले जाते थे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी सुरक्षा हो। ये पैसा कहां से आ रहा? यह इन बॉन्ड्स से आया है। और चुनावों के दौरान, अगर आपने विज्ञापनों के लिए सभी साइटों के लिए भुगतान किया है, अगर आपने हेलीकॉप्टर किराए पर लिए, सभी फ्लाइट किराए पर लिए, तो वह पैसा कहां से आया? इन बॉन्ड्स से। इसलिए, ये चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता था। वास्तव में, यह एक ऐसी योजना का प्रतिनिधित्व करता है जिसके माध्यम से दानकर्ता, बड़े उद्योगपति, सत्ता में राजनीतिक दल के साथ जुड़ सकते हैं।

कपिल सिब्बल ने इस दौरान कहा कि यह योजना अपने आप में एक घोटाला है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया है। अब यह घोटाला किस हद तक बदले की भावना के आधार पर किया गया, यह अगला कदम है, लेकिन इसकी जांच होनी जरूरी है। वे जांच नहीं करेंगे क्योंकि आप जानते हैं कि उनके निर्देशन में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) हैं। हमें यह करना ही होगा।

विपक्षी दलों पर फैसले का कितना असर, ये बोले सिब्बल : जब सिब्बल से सवाल किया गया कि जब बीजेपी को चुनावी बांड के माध्यम से योगदान का बड़ा हिस्सा मिला है तो वहीं विपक्षी दलों को भी मिला होगा। उन पर भी इसका असर पड़ेगा? इस पर वरिष्ठ वकील ने कहा कि हां वो भी जरूर प्रभावित होंगे। हालांकि, इससे कम से कम वो जानकारी तो सामने आएगी। हमने यह भी स्पष्ट किया कि इनमें से कुछ बड़े उद्योगपति सभी राजनीतिक दलों को फंडिंग करते हैं।

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