CJI Surya Kant Free Speech सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) जस्टिस सूर्यकांत ने ‘बोलने की आज़ादी’ (Free Speech) को लेकर एक बड़ा और महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि बोलने की आज़ादी का अधिकार हमारे सबसे कीमती अधिकारों में से एक है, जिसे छीना नहीं जा सकता। हालांकि, उन्होंने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि आज़ादी के साथ एक बड़ी ‘जिम्मेदारी’ भी आती है, और हमें इस बात का ध्यान रखना होगा।
आजादी के साथ आती है जिम्मेदारी
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने पद को संभालते ही फ्री स्पीच को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि संविधान सिर्फ एक आज़ाद समाज की ही नहीं, बल्कि एक सम्मानजनक और मेलजोल वाले समाज की भी कल्पना करता है।
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नफरती भाषण पर रोक: उन्होंने कहा कि समाज में नफरती भाषण नहीं होना चाहिए, और तंज या तल्ख टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए।
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बैलेंस जरूरी: सीजीआई ने कहा कि जब हम यह भूल जाते हैं कि कर्तव्य अधिकारों का ज़रूरी हिस्सा है, तो हम उस संतुलन को बिगाड़ देते हैं जो लोकतंत्र को काम करने लायक बनाए रखता है। उन्होंने कहा कि ऐसा करके हम संविधान को बेकार बनाने का जोखिम उठा लेते हैं।
जजों को जांच वाले सवाल पूछने से नहीं रुकना चाहिए
सीजीआई से यह भी सवाल पूछा गया कि क्या सोशल मीडिया पर चुनिंदा रिपोर्टिंग्स के जरिए आलोचना होने से जजों को जांच वाले सवाल पूछने या केस करने वालों के कामों की आलोचना करने से रोका जा रहा है।
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जवाब: जस्टिस सूर्यकांत ने जवाब दिया कि ऐसी घटनाएं जो पिछले कुछ सालों में ज्यादा बढ़ी हैं, हमें अपनी बात कहने में ज्यादा सावधानी बरतने के लिए सावधान बनाती हैं।
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निडरता का संदेश: उन्होंने जोर देकर कहा कि इससे हमें न्याय दिलाने के लिए जरूरी जांच वाले सवाल पूछने से नहीं रुकना चाहिए। सीजीआई ने कहा कि मीडिया पर सोशल मीडिया का कोई दबाव नहीं होता है।
पूर्व CJI भी थे सहमत
यह बहस अभी की नहीं है, बल्कि बहुत लंबी और पुरानी है। जस्टिस सूर्यकांत से पहले के सीजीआई, जस्टिस बीआर गवई, भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखते रहे हैं।
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दायरे में आज़ादी: जस्टिस गवई ने कहा था कि बोलने की आज़ादी का अधिकार हमेशा संविधान में बताई गई सही पाबंदियों के तहत ही आता है।
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नियामक प्रणाली: उन्होंने यह भी कहा था कि मौजूदा सिस्टम में गाली-गलौज और नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ एक नियामक सिस्टम (रेगुलेटरी सिस्टम) होना चाहिए, और इस पर फैसला संसद को लेना है।
मुख्य बातें (Key Points)
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नए सीजीआई जस्टिस सूर्यकांत ने कहा है कि बोलने की आज़ादी के अधिकार के साथ जिम्मेदारी भी आती है, और समाज सम्मानजनक होना चाहिए।
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उन्होंने कहा कि नफरती भाषण, तंज और तल्ख टिप्पणियां नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये लोकतंत्र का संतुलन बिगाड़ते हैं।
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सीजीआई ने यह स्पष्ट किया कि आलोचना से डरकर जजों को न्याय दिलाने के लिए जरूरी जांच वाले सवाल पूछने से नहीं रुकना चाहिए।
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पूर्व सीजीआई जस्टिस बीआर गवई ने भी कहा था कि बोलने की आज़ादी हमेशा संविधान में बताई गई सही पाबंदियों के तहत आती है।






