केंद्र सरकार का वित्तीय घाटा (Fiscal Deficit) मौजूदा वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों (अप्रैल-नवंबर 2022) में 9.78 लाख करोड़ रुपये रहा। यह पूरे साल के बजट अनुमान का करीब 58.9 फीसदी है। कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स (कैग) ने शुक्रवार 30 दिसंबर को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी। पिछले वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों में वित्तीय घाटा, बजट अनुमान का 46.2 फीसदी रहा था। सरकार ने 2022-23 के लिए वित्तीय घाटे को 16.61 लाख करोड़ रुपये यानी जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा है। बता दें कि वित्तीय घाटे को राजकोषीय घाटा भी कहा जाता है।
वित्त वर्ष 2023 के पहले आठ महीनों में सरकार की कमाई 14.64 लाख करोड़ रुपये रही, जो कुल बजट अनुमान का 64.1 फीसदी है। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह आंकड़ा का कुल बजट अनुमान का 69.8 फीसदी था।
इसके मुकाबले केंद्र सरकार का कुल खर्च वित्त वर्ष 2023 के पहले आठ महीनों में 24.42 लाख करोड़ रुपये रही, जो कुल बजट अनुमान का 61.9 फीसदी रहा। यह पिछले साल के इसी अवधि में रहे 59.6 फीसदी से अधिक है।
सरकार को अप्रैल-नवंबर के दौरान टैक्स कलेक्शन से 12.25 लाख करोड़ रुपये की आमदनी हुई, जो पूरे वित्त वर्ष के अनुमान का 63.3 फीसदी है। पिछले साल की इसी अवधि में यह आंकड़ा 73.5 फीसदी रहा था।
वहीं सरकार का कैपिटल एक्सपेंडिचर अप्रैल-नवंबर अवधि के दौरान 4.47 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पूरे वित्त वर्ष के अनुमान का 59.6 फीसदी है। पिछले साल की इसी अवधि में यह आंकड़ा 49.4 फीसदी रहा था।
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) क्या होता है?
यह सरकार के कुल खर्च और उधारी को छोड़ कुल कमाई के बीच का अंतर होता है। सरकार की कुल सालाना आमदनी के मुकाबले जब खर्च अधिक होता है तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। लेकिन इसमें कर्ज शामिल नहीं होता है। यानी सरकार की आमदनी में सरकार द्वारा लिया गया उधार शामिल नहीं किया जाता है। राजकोषीय GDP के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
राजकोषीय घाटा जितना अधिक होता है, सरकार पर कर्ज और ब्याज अदायगी का बोझ उतना ही बढ़ जाता है। यही वजह है कि सरकारें राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सब्सिडी और बाकी खर्च में कटौती करती हैं। वित्त मंत्रालय हर साल बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय करता है।