नई दिल्ली (New Delhi), 24 जनवरी (The News Air): इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की विश्वसनीयता को लेकर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का रुख किया गया है। हरियाणा (Haryana) के पूर्व मंत्री और पांच बार विधायक रह चुके करण सिंह दलाल (Karan Singh Dalal) ने EVM सत्यापन के लिए ठोस नीति बनाने की मांग की है। प्रधान न्यायाधीश सीजेआई संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) की अध्यक्षता वाली बेंच इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
याचिका में EVM सत्यापन के लिए एक स्पष्ट प्रोटोकॉल तैयार करने की बात कही गई है। साथ ही, निर्वाचन आयोग (Election Commission of India – ECI) पर ऐसी नीति न बनाने का आरोप लगाया गया है, जिससे “बर्न मेमोरी (Burn Memory)” सत्यापन की प्रक्रिया अब तक अस्पष्ट बनी हुई है।
क्या है याचिका का मामला?
करण सिंह दलाल और सह-याचिकाकर्ता लखन कुमार सिंगला (Lakhan Kumar Singla), जो अपने निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रहे थे, ने चुनाव आयोग (ECI) को चार प्रमुख घटकों—
- कंट्रोल यूनिट (Control Unit)
- बैलट यूनिट (Ballot Unit)
- वीवीपीएटी (VVPAT)
- सिंबल लोडिंग यूनिट (Symbol Loading Unit)
की “बर्न मेमोरी” और “माइक्रोकंट्रोलर” की गहन जांच के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल लागू करने का निर्देश देने की मांग की है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि EVM सत्यापन केवल मॉक पोल और वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती तक सीमित रहता है, जबकि इसकी गहन जांच की आवश्यकता है।
क्या है ‘बर्न मेमोरी’ और क्यों है यह अहम?
‘बर्न मेमोरी‘ एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्रोग्रामिंग पूरी होने के बाद डेटा को स्थायी रूप से लॉक कर दिया जाता है। इसका मतलब है कि एक बार मेमोरी लॉक हो जाने के बाद उसमें किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ संभव नहीं है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वर्तमान में जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, उसमें EVM की गहराई से जांच नहीं की जाती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के आदेश में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 5% EVM का सत्यापन करने को कहा था, लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर कोई ठोस नीति नहीं बनाई।
चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि चुनाव आयोग द्वारा जारी मौजूदा एसओपी (Standard Operating Procedure) केवल बुनियादी निदान परीक्षण और मॉक पोल तक सीमित है। इससे यह तय नहीं हो पाता कि EVM पूरी तरह से सुरक्षित और निष्पक्ष हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वर्तमान प्रक्रिया मशीनों की गहराई से जांच को रोकती है, जिससे चुनाव परिणामों की पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।
हरियाणा चुनाव और BJP की जीत पर नजर
हरियाणा में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 90 सीटों में से 48 सीटें जीती थीं। हालांकि, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनकी याचिका चुनाव परिणामों को चुनौती देने के लिए नहीं है, बल्कि EVM सत्यापन प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए है।
‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ का संदर्भ
याचिका में 2013 के उस फैसले का भी जिक्र है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) बनाम भारत संघ’ मामले में EVM सत्यापन को अनिवार्य किया था।
उस फैसले में यह कहा गया था कि चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद, दूसरे या तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों के लिखित अनुरोध पर 5% EVM का सत्यापन किया जाना चाहिए।
क्या होगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला लिया जाएगा कि चुनाव आयोग को 8 सप्ताह के भीतर EVM सत्यापन प्रक्रिया को लागू करने का निर्देश दिया जाए या नहीं।
अगर इस पर सख्त नीति बनाई जाती है, तो यह भारत की चुनावी प्रक्रिया में बड़ा सुधार होगा। यह फैसला न केवल जनता का भरोसा बढ़ाएगा, बल्कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को भी मजबूत करेगा।
EVM की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवाल भारत की चुनावी प्रक्रिया के लिए अहम हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर आने वाला फैसला, देश के लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
श्रद्धालुओं और राजनीतिक विश्लेषकों की निगाहें अब CJI खन्ना की बेंच पर हैं, जो इस मामले में बड़ा फैसला ले सकती है।