आज भी पिंजड़े का तोता ही है सीबीआई? सुप्रीम कोर्ट में प. बंगाल और केंद्र के बीच जोरदार बहस

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सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 3 मई (The News Air) : केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच खींचतान कोई नई बात नहीं है। अब यह सिलसिला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। पश्चिम बंगाल सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से शिकायत की है कि सीबीआई उसकी आम सहमति के बिना राज्य के मामलों में जांच आगे बढ़ा रही है। प. बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि चूंकि प्रदेश ने पहले ही सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली, इसलिए उसके पास अब राज्य सरकार की अनुमति लिए बिना जांच का अधिकार नहीं रह गया है। ममता सरकार ने अपनी शिकायत में साफ तौर पर आरोप लगाया है कि दरअसल सीबीआई केंद्र सरकार का मुखौटा है। एजेंसी सिर्फ और सिर्फ केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के इशारे पर काम कर रही है और ऐसी प्रवृत्तियों पर रोक लगनी चाहिए। केंद्र सरकार ने इस शिकायत को पूरी तरह निराधार बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि प. बंगाल की याचिका को तुरंत खारिज किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में जारी इस बहस ने सीबीआई की स्वायत्तता को लेकर दशकों पुराने प्रश्न को फिर से सामने खड़ा कर दिया है। प्रश्न यह कि क्या सीबीआई आज भी पिंजड़े बंद वह तोता है जिसे केंद्र सरकार अपने इशारे पर नचाती है?

तब रिजीजू ने कहा था- अब पिंजड़े का तोता नहीं है सीबीआई

केंद्र की बीजेपी नीत एनडीए सरकार का तो कहना है कि सीबीआई पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। यूपीए सरकार के दौर में यही बीजेपी सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन कहा करती थी। 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजड़े में बंद तोता बता दिया तो बीजेपी ने सीबीआई के दुरुपयोग को लेकर यूपी सरकार पर हमला बढ़ा दिया। लेकिन जब बीजेपी सत्ता में आई और कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा तो दोनों के नैरेटिव उलट हो गए। तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने 3 अप्रैल, 2022 को कहा कि सीबीआई अब ‘पिंजरे में बंद तोता’ नहीं है और देश की शीर्ष अपराधिक जांच एजेंसी के रूप में अपना कर्तव्य निभा रही है।

तब रिजिजू ने ट्वीट कर सीबीआई के जांच अधिकारियों के पहले सम्मेलन में एक दिन पहले दिए गए अपने संबोधन का एक छोटा वीडियो भी साझा किया। रिजिजू ने अपने संबोधन में कहा, ‘मुझे अच्छी तरह याद है कि एक समय था, जब सरकार में बैठे लोग कभी-कभी जांच में बाधा बन जाते थे।’ उन्होंने कहा कि आज एक ऐसा प्रधानमंत्री है जो खुद भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में मुख्य भूमिका निभा रहा है। हालांकि, एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल के पाला बदलकर एनडीए एनडीए घटक दल में शामिल होने के आठ महीने बाद सीबीआई ने उनके खिलाफ मामलों की क्लोजर रिपोर्ट फाइल की तो विपक्ष ने इसे केंद्र सरकार का कदम ही बताया।

सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल ने केंद्र को घेरा

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में प. बंगाल के वकील कपिल सिब्बल की दलील है कि अगर सीबीआई स्वायत्त संस्था है तो फिर संसद में उससे जुड़े सवालों के जवाब केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के राज्य मंत्री देते हैं। उधर, मामले में केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘सीबीआई भारत सरकार के नियंत्रण में नहीं है।’ मेहता ने कहा कि सीबीआई की निगरानी का हक भारत सरकार के पास नहीं है। उन्होंने कहा, ‘केंद्र न तो अपराध के रजिस्ट्रेशन की निगरानी कर सकता हूं, न ही जांच की निगरानी कर सकता हूं और न ही यह निगरानी कर सकता हूं कि वह मामला कैसे बंद करेगी, या आरोप पत्र कैसे दाखिल करेगी, दोषसिद्धि कैसे होगी या दोषमुक्ति कैसे होगी।’

केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में जोरदार दलील

सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि भारत सरकार ने कोई केस दर्ज नहीं किया है बल्कि सीबीआई ने किया है।’ उन्होंने कहा कि प. बंगाल ने याचिका में जिन मामलों का उल्लेख किया है, उनमें वे मामले भी शामिल हैं जिन्हें कलकत्ता हाई कोर्ट ने दर्ज करने का आदेश दिया था। सिब्बल ने मेहता की दलील का विरोध किया और कहा कि उन्होंने कहा कि जब राज्य ने अपनी सहमति वापस ले ले तो सीबीआई राज्य में प्रवेश कर जांच नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि जब किसी राज्य में सीबीआई आती है तो वहां ईडी भी आ जाती है और इसका देश की राजनीति पर बड़ा असर पड़ता है। सिब्बल ने कहा कि सीबीआई कोई वैधानिक प्राधिकरण नहीं है और यह एक जांच एजेंसी है।

इस पर जजों की बेंच ने पूछा, ‘इसे वैधानिक प्राधिकरण क्यों नहीं माना जा सकता?’ जवाब में सिब्बल ने कहा, ‘सीबीआई सरकार की जांच शाखा है।’ उन्होंने डीएसपीई अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख किया जिसमें विशेष पुलिस प्रतिष्ठानों के संचालन और प्रशासन से संबंधित धारा 4 भी शामिल है। सिब्बल ने कहा, ‘भारत संघ के प्रशासनिक ढांचे में पुलिस प्रतिष्ठान की देखरेख कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के पास है।’ सिब्बल ने कहा कि जब संसद में सीबीआई के बारे में सवाल पूछा जाता है तो इसका जवाब कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के राज्य मंत्री देते हैं।

अनुच्छेद 131 के तहत प. बंगाल ने दर्ज करवाया केस

दरअसल, पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक मूल मुकदमा दायर किया है जिसमें आरोप लगाया गया है कि सीबीआई प्राथमिकी दर्ज कर रही है और अपनी जांच आगे बढ़ा रही है जबकि राज्य ने अपने अधिकार क्षेत्र में संघीय एजेंसी को मामलों की जांच के लिए दी गई आम सहमति वापस ले ली है। पश्चिम बंगाल सरकार ने सीबीआई को जांच करने अथवा राज्य में छापे मारने के संबंध में दी गई आम सहमति 16 नवंबर, 2018 को वापस ले ली थी। अनुच्छेद 131 केंद्र और एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद में उच्चतम न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र से जुड़ा है। एसजी तुषार मेहता ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ को बताया कि संविधान का अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय को प्रदत्त ‘सर्वाधिक पवित्र अधिकार क्षेत्र में से एक’ है और इस प्रावधान के दुरुपयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती।

मेहता ने दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम 1946 का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल का मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि भारत संघ के विरुद्ध कोई मामला नहीं बनता है। मेहता ने कहा कि इसी तरह का मामला और यही प्रश्न पहले से ही एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) के तहत कोर्ट में सुनवाई के लिए लंबित है और इस तथ्य का राज्य के वाद में जिक्र नहीं है और इस आधार पर इसे खारिज किया जाए। इस मामले में बहस अधूरी रही और यह 8 मई को भी जारी रहेगी।

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