नई दिल्ली, 13 जुलाई (The News Air):संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है और इसमें इस साल का आम बजट भी पेश किया जाएगा. चुनावी साल होने के नाते इससे पहले सरकार ने अंतरिम बजट पेश किया था, जिससे रूटीन कामकाज के लिए धन की व्यवस्था की जा सके. इस बार के आम बजट से आम लोगों को राहत की काफी उम्मीदें हैं. ऐसे में संभावना यह भी है कि काफी हल्के-फुल्के माहौल में बजट पेश हो और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शेर-ओ-शायरी का भी इस्तेमाल करें. हालांकि, साल 2023 में अपने बजट भाषण में उन्होंने शेर या कविता को शामिल नहीं किया था.
दरअसल, आम बजट भाषण बेहद गंभीर होता है. फिर भी कई सालों से अमूमन यह देखने में आया है कि वित्त मंत्री बजट भाषण के दौरान शेर-ओ-शायरी या कविता भी सदन को सुना कर माहौल सामान्य करने की कोशिश करते हैं. यहां तक कि कम बोलने के लिए जाने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जब वित्त मंत्री थे, तब उन्होंने भी सदन में शायरी सुनाकर सदस्यों को मेज थपथपाने पर मजबूर कर दिया था. पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के तो हर भाषण में कविता या शेर को जगह मिलती थी. आम लोगों को मिलने वाली सहूलियतों के साथ ही शेर-ओ-शायरी के दौर के कारण भी बजट खूब चर्चा में रहता था.
कम में ज्यादा कहने की कोशिश
1991-92 में देश के वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह थे, जो अपनी गंभीरता के लिए जाने जाते हैं. हालांकि, तब के बजट भाषण में उन्होंने एक खास शेर पढ़ा था, यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामोनिशान हमारा. अल्लामा इकबाल के तराना-ए-हिन्द से लिए गए इस शेर को पढ़ते ही पूरा सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था. अगले ही साल यानी 1992-93 के अपने बजट भाषण में एक बार फिर से वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने शेर का सहारा लिया और विपक्ष पर निशाना साधा था. उन्होंने पढ़ा था, तारीखों में ऐसे भी मंजर हमने देखे हैं, कि लम्हों ने खता की थी,और सदियों ने सजा पाई.
विपक्ष पर निशाना साधने का हथियार
साल 2001-02 में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने बजट पेश किया था. उन्होंने अपने बजट भाषण के दौरान सरकार की नीतियों का कुछ इस तरह से बखान किया था, तकाजा है वक्त का कि तूफान से जूझो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे. यह साल 2011-12 के बजट सत्र की बात है. तब आम बजट से पहले रेल बजट पेश किया जाता था. उस साल रेल बजट तत्कालीन रेल मंत्री और वर्तमान में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पेश किया था. उस दौरान उन्होंने अपने बजट भाषण में विपक्ष पर निशाना साधते हुए शेर पढ़ा था, हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती.
बिना कविता पूरा ही नहीं होता था अरुण जेटली का भाषण
साल 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनी थी. इसके बाद 2015 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट भाषण के दौरान इन पंक्तियों से आम-ओ-खास के मन में उम्मीद जगाने की कोशिश की थी,
कुछ तो फूल खिलाये हमने
और कुछ फूल खिलाने हैं,
मुश्किल ये है बाग में
अब तक कांटें कई पुराने हैं
साल 2016 में अरुण जेटली ने ही फिर बजटे पेश किया. इस दौरान उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार पर निशाना साधते हुए हौसला बढ़ाने की कोशिश यह कहते हुए की थी
कश्ती चलाने वालों ने जब हार कर दी पतवार हमें,
लहर लहर तूफान मिले और मौज-मौज मझधार हमें,
फिर भी दिखाया है हमने और फिर ये दिखा देंगे सबको,
इन हालातों में आता है दरिया करना पार हमें
साल 2017 में वित्त मंत्री अ्ररुण जेटली का अंदाज-ए-बयां सबका दिल जीत गया था. उन्होंने पढ़ा था,
इस मोड़ पर घबराकर न थम जाइए आप
जो बात नई उसे अपनाइए आप
डरते हैं नई राह पर क्यूं चलने से
हम आगे आगे चलते हैं आइए आप
नई दुनिया है, नया दौर है, नई है उमंग
कुछ थे पहले के तरीके, तो कुछ है आज के रंग ढंग
निर्मला सीतारमण ने भी लिया सहारा
साल 2019 में आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी शेर से ही उम्मीद जगाने की कोशिश की थी. उन्होंने पढ़ा था, यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग जलता है वैसे पिछले बजट भाषण में वित्त मंत्री सीतारमण ने कोई शेर नहीं पढ़ा था. अब एक बार फिर भाजपा की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनने के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करने जा रही हैं. गौर करने वाली बात यह होगी कि अबकी वह बजट भाषण में शेर या कविता का सहारा लेती हैं या नहीं.






