Ethiopian Volcano Ash Cloud इथियोपिया के अफार क्षेत्र में 23 नवंबर को 10,000 साल पुराना हेलीगूबी ज्वालामुखी फट गया है। इस भयानक विस्फोट से उठने वाली राख के विशाल बादल अब उत्तरी भारत की ओर बढ़ रहे हैं और दिल्ली तक पहुंच गए हैं। राख का यह गुबार करीब 130 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से फैल रहा है, जिसके कारण भारत पर खतरा मंडरा रहा है।
भारत पर क्यों है खतरा?
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राख का फैलाव: सबसे पहले, यह राख बादल भारत में पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर और जैसलमेर के ऊपर से आया, फिर धीरे-धीरे यह दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के बड़े हिस्सों में फैल गया।
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स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर: गल्फ न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक, विस्फोट के साथ बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड भी निकला है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर को लेकर चिंता बढ़ गई है। यह उन लोगों के लिए खास चिंता का विषय है, जिन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है।
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जहरीली राख: ज्वालामुखी की राख में छोटे-छोटे कांच जैसे कण होते हैं जो हवा के साथ फेफड़ों में जाकर सांस लेने में दिक्कत पैदा करते हैं। ये राख खेतों को बर्बाद कर देती है और छतों पर जमा होकर उन्हें गिरा भी सकती है।
विमानों पर अलर्ट जारी
आसमान में फैले राख की वजह से हवाई जहाजों को भी दिक्कत हो रही है। भारत के ऊपर भी राख आ रही है, इसलिए दिल्ली और जयपुर जैसे इलाकों में उड़ानों पर नजर रखी जा रही है।
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उड़ानें रद्द: ज्वालामुखी विस्फोट के कारण कोच्ची हवाई अड्डे से रवाना होने वाली दो अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दी गई हैं।
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कारण: राख के कण इंजन को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय विमानन प्रोटोकॉल के तहत सतर्कता बरती जा रही है।
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डीजीसीए गाइडलाइंस: भारत के डीजीसीए (DGCA) ने एयरलाइनों के लिए डिटेल गाइडलाइंस जारी की है, हालांकि भारत के ऊपर मौजूद राख बहुत ऊंचाई पर है, इसलिए टेक ऑफ और लैंडिंग पर फिलहाल कोई बड़ा खतरा नहीं माना जा रहा है।
इथियोपिया में विस्फोट की भयावहता
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विशाल धुआं: हेलीगूबी ज्वालामुखी में हुए विस्फोट से उठने वाला धुआं करीब 18 किलोमीटर ऊंचाई तक पहुंच गया।
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फैलने का दायरा: यह धुआं लाल सागर पार करते हुए यमन और ओमान तक फैल गया।
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भविष्य का खतरा: विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक शील्ड वोल्केनो है, जिसमें शुरुआती विस्फोट के बाद कभी-कभी दोबारा धमाके भी हो सकते हैं। अमीरात एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के चेयरमैन ने कहा है कि अगर ज्वालामुखी अचानक ज्यादा सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ रहा है, तो यह बताता है कि अंदर दबाव बढ़ रहा है और आगे और विस्फोट हो सकता है।
जानें ज्वालामुखी कैसे फटता है
ज्वालामुखी धरती की सतह पर मौजूद प्राकृतिक दरारें होती हैं। इनसे होकर धरती के आंतरिक भाग से पिघला हुआ पदार्थ जैसे मैग्मा, लावा, राख विस्फोट के साथ बाहर निकलते हैं।
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प्लेटों का टकराना: ज्वालामुखी पृथ्वी पर मौजूद सात टेक्टोनिक प्लेट्स और 28 सब-टैक्टोनिक प्लेट्स के आपस में टकराने की वजह से बनते हैं।
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मैग्मा बनना: प्लेटों की हलचल से गर्मी बढ़ती है और चट्टानी परत पिघलने लगती है। पिघली हुई चट्टानों से बना 1300 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला गाढ़ा पदार्थ मैग्मा कहलाता है।
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विस्फोट: मैग्मा में गैसें ज्यादा होने पर दबाव बढ़ता है और वह दरारों से बाहर आने लगता है, जिसे ज्वालामुखी फूटना कहते हैं, और तब मैग्मा लावा कहलाता है।
मुख्य बातें (Key Points)
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इथियोपिया के हेलीगूबी ज्वालामुखी में 23 नवंबर को विस्फोट हुआ, जिसकी राख के बादल 130 किमी/घंटा की रफ्तार से उत्तरी भारत (दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा) तक पहुंच गए हैं।
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विस्फोट से बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड निकला है, जिससे पर्यावरण और सांस संबंधी स्वास्थ्य पर असर की चिंता बढ़ गई है।
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राख के कणों के कारण कोच्चि हवाई अड्डे से दो अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दी गई हैं, और दिल्ली-जयपुर रूट पर उड़ानों पर नजर रखी जा रही है।
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ज्वालामुखी पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने से बनते हैं, जिससे अंदर का 1300 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला मैग्मा बाहर निकलता है।






