Emergency Press Censorship in India — इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल (Emergency) को आज भी भारत के लोकतंत्र पर एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। इस दौर में न केवल राजनीतिक विरोधियों को दबाया गया बल्कि प्रेस (Press) की स्वतंत्रता भी पूरी तरह खत्म करने की कोशिश हुई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद (Fakhruddin Ali Ahmed) द्वारा घोषित आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की सिफारिश पर 200 से अधिक पत्रकारों को जेल भेजा गया था।
मीडिया पर सख्त सेंसरशिप लागू की गई थी। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI) के सीईओ एम के राजदान (M.K. Razdan) के अनुसार, सरकार ने चार प्रमुख समाचार एजेंसियों — प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI), यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (UNI), हिंदुस्तान समाचार (Hindustan Samachar) और समाचार भारती (Samachar Bharti) को जबरन मिलाकर ‘समाचार’ (Samachar) नामक एक सरकारी एजेंसी बना दी थी। इस एजेंसी के माध्यम से समाचारों की निगरानी की जाती थी और केवल वही खबरें प्रकाशित होती थीं जो सरकार के पक्ष में होतीं।
पत्रकारों को खबरें प्रकाशित करने से पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information and Broadcasting) के अधीन पीआईबी (PIB) से मंजूरी लेनी होती थी। वरिष्ठ पत्रकार एस वेंकट नारायण (S. Venkat Narayan) ने बताया कि उन्हें हर पांडुलिपि मुख्य सेंसर अधिकारी हैरी डी’पेन्हा (Harry D’Penha) को भेजनी होती थी। इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) के कुलदीप नैयर (Kuldip Nayar) और ‘द मदरलैंड’ (The Motherland) के केआर मलकानी (K.R. Malkani) जैसे पत्रकारों को सरकार के खिलाफ खबरें छापने पर गिरफ्तार कर लिया गया।
इतना ही नहीं, महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) द्वारा स्थापित नवजीवन प्रेस (Navjeevan Press) की छपाई बंद कर दी गई। ‘हिम्मत’ (Himmat) नामक पत्रिका, जिसे राजमोहन गांधी (Rajmohan Gandhi) संपादित करते थे, को जबरन राशि जमा कराने का आदेश दिया गया। लंदन (London) से ‘द संडे टाइम्स’ (The Sunday Times) के लिए काम कर रहे नारायण के देश लौटते समय दिल्ली हवाई अड्डे (Delhi Airport) पर पुलिस उनका इंतजार कर रही थी ताकि उनके सामान की तलाशी ली जा सके।
दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग (Bahadur Shah Zafar Marg) स्थित अखबारों के कार्यालयों की बिजली काट दी गई ताकि 26 और 27 जून के संस्करण प्रकाशित न हो सकें। कई अखबारों को सरकार की आलोचना करने पर सरकारी विज्ञापन से वंचित कर दिया गया।
गोवा (Goa) के धर्मानंद कामत (Dharmanand Kamat), जो आकाशवाणी (All India Radio) में काम करते थे, ने बताया कि स्थानीय अखबार पूरी तरह से सरकारी लाइन पर चलते थे। नागपुर (Nagpur) के हितवाद (Hitavada) अखबार के दिल्ली संवाददाता ए.के. चक्रवर्ती (A.K. Chakravarty) ने बताया कि हर दिन पीआईबी से समाचार सामग्री को पास कराना अनिवार्य होता था।
आपातकाल के समय इंडियन एक्सप्रेस ने 28 जून, 1975 के अपने संस्करण में संपादकीय कॉलम को खाली छोड़कर मौन विरोध किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ने चेतावनी जारी कर दी। ‘समाचार’ एजेंसी को रामलीला मैदान (Ramlila Maidan) में हुई जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) की बड़ी रैली को मात्र कुछ पैराग्राफ में समेटने का निर्देश दिया गया, जबकि स्वतंत्र प्रेस इसे प्रमुखता से छापना चाहता था।
आपातकाल का यह कालखंड भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सबसे बड़ा हमला माना जाता है। यह वह समय था जब पत्रकारिता को झुकाने की कोशिश की गई, लेकिन कुछ निर्भीक आवाजें आज भी उस साहस की मिसाल बनी हुई हैं।