लंच के दौरान हिंदुओं के लाहौर को मुस्लिमों के पाकिस्तान को दे दिया,

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नई दिल्ली, 17 अगस्त (The News Air): ‘मुझे लगता है कि पंजाबी और बंगाली चेतना ही है जिसने अपने प्रांत के प्रति वफादारी दिखाई है। इसलिए मुझे लगा कि यह जरूरी है कि भारत के लोग विभाजन के इस सवाल का फैसला खुद करें।’ भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने एक रेडियो प्रसारण के दौरान हिंदुस्तानी आवाम से ये बातें कहीं। जब यह तय हो गया कि भारत का बंटवारा होकर रहेगा तो माउंटबेटन ने जून, 1947 में लंदन में प्रैक्टिस करने वाले एक बैरिस्टर सर सिरिल रेडक्लिफ को बंगाल और पंजाब का बंटवारा करने के लिए बने दो सीमा आयोग का चेयरमैन बना दिया। रेडक्लिफ इससे पहले कभी पेरिस के उस पार भी नहीं गए थे। माउंटबेटन के प्रस्ताव पर पहले तो सर रेडक्लिफ ने बंटवारा करने से यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें इसका कोई अनुभव नहीं है। उन्होंने कहा-मैं कोई भूगोलवेत्ता भी नहीं हूं। मगर, माउंटबेटन के जोर देने पर वह मान गए। हर कमीशन में तब कांग्रेस और मुस्लिम लीग की ओर से 4-4 प्रतिनिधि शामिल किए गए थे, ताकि विवाद न बढ़े। 17 अगस्त को आखिरकार भारत-पाकिस्तान के बीच रेडक्लिफ लाइन खींच दी गई।

इतने बड़े देश का बॉर्डर तय करने के लिए बस 5 हफ्ते का समय

सर रेडक्लिफ 8 जुलाई को लार्ड माउंटबेटन के एक पत्र के बुलावे पर ब्रिटिश प्लेन से भारत आए। उन्हें करीब 4.5 लाख वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले हिंदुस्तान और 8.8 करोड़ हिंदुस्तानियों की किस्मत के बंटवारे के लिए बस 5 हफ्ते का ही समय दिया गया। वह प्लेन से ही दोनों आयोगों के सदस्यों से मुलाकात करने के लिए तत्कालीन कलकत्ता और लाहौर गए। उन्होंने कांग्रेस नेता जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की मांग करने वाली मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मोहम्मद अली जिन्ना से मुलाकात की।

अगर 3 साल और मिलते तो मैं बंटवारा बेहतर करता

कवि डब्ल्यूएच ऑडेन ने 1966 में अपनी कविता ‘पार्टीशन’ में भारत और पाकिस्तान के विभाजन में रेडक्लिफ की भूमिका का जिक्र किया है। तब बॉर्डर कमीशन के चेयरमैन रहते सर रेड क्लिफ ने कहा था कि मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। इतने कम समय में मैं इससे बेहतर काम नहीं कर सकता था। अगर मेरे पास 2 या 3 साल होते, तो मैं अपने काम को और बेहतर कर सकता था। वह इससे पहले कभी भारत नहीं आए थे और न ही वह भारत के बारे में जानते थे।

एक सुनसान हवेली में बंद होकर दिन-रात किया काम

कविता के अनुसार, रेडक्लिफ एक सुनसान हवेली में बंद होकर पुलिस की सुरक्षा के बीच लाखों लोगों के भाग्य का फैसला करने के लिए जुट गए। भारत का मौसम गर्म था, ऐसे में उन्हें इस दौरान पेचिश भी हो गई। जब वह यह काम करके लंदन लौटे तो वह बंटवारे को जल्द भुला देना चाहते थे। रेडक्लिफ को हमेशा ये लगता था कि उन्हें गोली मारी जा सकती है।

माउंटबेटन को अपनी शर्त को पूरा करने की पड़ी थी

सर रेडक्लिफ ने 5 हफ्ते में बंटवारे पर आपत्ति जताई, मगर सभी पार्टियों का यह जोर था कि बंटवार हर हाल में 15 अगस्त से पहले हो जाना चाहिए। दरअसल, माउंटबेटन ने वायसराय का पद ही इसी शर्त पर लिया था कि वह जल्द से जल्द भारत ओर पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा तय कर दी जाए। हालांकि, राजनीतिक उठापटक के चलते यह सीमाई लकीर 17 अगस्त को ही खींची जा सकी। रेडक्लिफ ने 9 अगस्त 1947 को अपना विभाजन का नक्शा पेश कर दिया, जिसमें पंजाब और बंगाल को लगभग आधे हिस्से में विभाजित कर दिया। नई सीमाओं की औपचारिक घोषणा पाकिस्तान की आजादी के तीन दिन बाद यानी 17 अगस्त 1947 को की गई।

हिंदुओं के वर्चस्व वाले लाहौर को मुस्लिमों को दे दिया

1976 में लंदन गए चर्चित पत्रकार कुलदीप नैयर ने रेडक्लिफ से मुलाकात की थी। अपनी किताब ‘स्कूप, इनसाइड स्टोरीज फ्रॉम पार्टिशन टू द प्रेजेंट’ और किताब ‘द पार्टीशन ऑफ इंडिया एंड माउंटबेटन’ के अनुसार, रेडक्लिफ ने तब नैयर से कहा था-मुझे सीमारेखा खींचने के लिए 10-11 दिन मिले थे। उस वक्त मैंने बस एक बार हवाई जहाज से दौरा किया था। उस वक्त मेरे पास जिलों के नक्शे भी नहीं थे। मैं लाहौर को भारत को देने वाला था। मगर, मैंने देखा लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज्यादा है। उस वक्त पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर नहीं था। ऐसे में मैंने लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया। अब इसे सही कहो या कुछ और लेकिन ये मेरी मजबूरी थी। पाकिस्तान के लोग मुझसे नाराज हैं, लेकिन उन्हें खुश होना चाहिए कि मैने उन्हें लाहौर दे दिया।

फिरोजपुर पाकिस्तान जाते-जाते रह गया था

रेडक्लिफ ने बंटवारे में पंजाब के फिरोजपुर जिले को हिंदुस्तान में देना तय किया था। हालांकि, माउंटबेटन के दबाव में उन्हें ये फैसला बदलना पड़ा था। माउंटबेटन ने उन्हें लंच पर बुलाया और कई जगहों को इधर से उधर कर दिया गया। इनमें लाहौर, फिरोजपुर और जार तहसील भी शामिल थी। दरअसल, नेहरू के दबाव में माउंटबेटन ने यह दबाव डाला था कि फिरोजपुर भारत को दिया जाए।

रेडक्लिफ के सीमा बंटवारे में मारे गए 20 लाख लोग

रेडक्लिफ की वजह से दोनों पक्षों से करीब 1.5 करोड़ लोगों को जबरन बेघर होना पड़ा। इसमें से कई ऐसे भी थे, जिन्हें पता चला कि नई सीमाओं ने उन्हें “गलत” देश में छोड़ दिया है। स्वतंत्रता के बाद हुई हिंसा में करीब 20 लोगों को जान गंवानी पड़ी। सीमा के दोनों ओर हो रही तबाही को देखने के बाद रेडक्लिफ ने तब अपना 40,000 रुपए वेतन नहीं लिया। उन्हें 1948 में नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर का खिताब दिया गया था।

लार्ड कर्जन के बंगाल विभाजन से शुरू हुई थी यह कहानी

भारत के बंटवारे की असली कहानी बंगाल विभाजन के उस प्रस्ताव से शुरू हुई थी, जब लार्ड कर्जन भारत का गवर्नर जनरल बनकर आया। उसने देश में स्वदेशी आंदोलन को खत्म करने के लिए बंगाल विभाजन का प्रस्ताव दिया। हालांकि, यह कभी सफल नहीं हो सका, मगर इसने बंटवारे की नींव तो रख ही दी। डॉ. बीआर आंबेडकर ने अपनी किताब ‘थॉट्स ऑफ पाकिस्तान’ में जिन्ना की जमकर आलोचना की गई है। हालांकि, उन्होंने अपनी किताब में बताया है कि पंजाब में मुस्लिम बहुल वाले 16 पश्चिमी जिले बताए, जबकि 13 पूर्वी जिलों में गैर मुस्लिम आबादी की बात कही। इसी तरह उन्होंने बंगाल में 15 ऐसे जिले बताए जो मुस्लिम बहुल थे।

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