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मिसाइल और फाइटर प्लेन नहीं, ड्रोन बना वॉर का नया हथियार, भारत कितना तैयार?

The News Air by The News Air
बुधवार, 17 अप्रैल 2024
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मिसाइल
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3 जनवरी 2020 की आधी रात.. बगदाद एयरपोर्ट से गाड़ियों का काफिला गुजर रहा था, तभी एक जोरदार धमाका हुआ और चारों तरफ चीख-पुकार मच गई. इस हमले में मौत हुई थी एक ऐसे ताकतवर शख्स की जो ईरान की ग्लोबल मिलिट्री ऑपरेशन का सर्वोच्च कमांडर था, जिसका नाम था जनरल कासिम सुलेमानी…सुलेमानी ईरान के Quds फोर्स के कमांडर थे और उन्हें मिडिल ईस्ट का सबसे प्रभावशाली और जीनियस मिलिट्री कमांडर माना जाता था. इससे पहले भी उनके ऊपर कई बार हमले हुए, वो हर बार बच निकले, लेकिन ड्रोन के हमले से वो नहीं बच पाए. मॉडर्न वॉरफेयर में ये पहला उदाहरण था, जिसमें बिना किसी जंग के इतने बड़े मिलिट्री कमांडर को ड्रोन की मदद से मारा गया था . ताजा मामला 13 अप्रैल 2024 का है जब ईरान ने आधी रात को 300 से ज्यादा ड्रोन और मिसाइल से इजराइल पर हमला कर दिया, वहीं ड्रोन यूक्रेन और रूस वॉर में सबसे घातक हथियार बनकर सामने आया है.

ड्रोन की मदद से यूक्रेन ने किया रूस से मुकाबला

जब रूस और यूक्रेन की जंग शुरू हुई तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक छोटा सा देश रूस जैसे सुपर पावर से तीन साल तक लड़ पाएगा, इस बड़ी लड़ाई में यूक्रेन ने मुकाबला किया उस छोटे हथियार से जिसने रूस के हौसले को पस्त कर दिया है वो है ड्रोन. इस युद्ध के दौरान दोनों देशों ने ड्रोन का खूब इस्तेमाल किया. रूस के मुकाबले कमजोर होने के बावजूद यूक्रेन ने जिस चतुराई से वॉर में ड्रोन का इस्तेमाल किया, उससे रूस की मिलिट्री फोर्स को भारी नुकसान उठाना पड़ा, जिससे यूक्रेन की सेना का मनोबल बढ़ा.

यूक्रेन कैसे कर रहा है ड्रोन का इस्तेमाल?

यूक्रेन की सेना ने एक स्पेशल ड्रोन की सर्विलेंस टीम बनाई, जिसका नाम है ‘Ochi’. यूक्रेन की भाषा में ‘Ochi का मतलब होता है आंखें . रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन ने 4-4 लोगों की कई टीमें बनाई हैं, जो एक छोटे से सर्विलेंस ड्रोन से लैश हैं. ये लोग इस सर्विलेंस ड्रोन की मदद से रूसी सेना की हर गतिविधि पर मीलों दूर से नजर रखते हैं . ये Ochi’ टीमें ड्रोन की मदद से दुश्मन की लोकेशन को Starlink के इंटरनेट के जरिए अपने मिसाइल लॉन्चर को भेजती हैं, जो टारगेट पर अटैक करते हैं. यूक्रेन ने ऐसी सैकड़ों टीमें युद्ध के मैदान में तैनात कीं, जिसकी मदद से उन्हें दुश्मन की हर गतिविधि की पल-पल की खबर रहती है और साथ ही मिसाइल अटैक से रूस को नुकसान भी पहुंचता है.

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ड्रोन का 'वॉर'

छोटा ड्रोन वॉर में मिसाइल की जगह ले रहा है.

क्या होता है ड्रोन? क्या ये मिसाइल और फाइटर प्लेन की जगह ले रहा है?

ड्रोन एक तरह का फ्लाइंग रोबोट होता है, जिसको रिमोट की मदद से कहीं से भी कंट्रोल किया जा सकता है. इसको UAV (Unmanned aerial vehicle) के नाम से भी जाना जाता है, इसका इस्तेमाल आजकल खासतौर पर युद्ध में किया जा रहा है. इंडियन आर्मी के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं- आज सभी शक्तिशाली देशों के पास एक से बढ़कर एक लड़ाकू विमान और लंबी दूरी की मिसाइलें हैं फिर भी ड्रोन का इस्तेमाल ज्यादा किया जाने लगा है. इसकी वजह है युद्ध की इकोनॉमी, कोई भी देश युद्ध तब तक लड़ सकता है, जब तक उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत हो. यूक्रेन अभी तक युद्ध इसलिए लड़ रहा है, क्योंकि उसे यूरोप के कुछ देशों से आर्थिक मदद मिल रही है.

युद्ध में इस्तेमाल होने वाला एक फाइटर प्लेन 500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा महंगा होता है, वहीं मिसाइलें भी करोड़ों में आती हैं. लड़ाकू विमानों और मिसाइलों का भारी मात्रा में इस्तेमाल और नुकसान देश की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ सकता है, वहीं उनके मुकाबले ड्रोन बहुत ही सस्ता होता है और दुश्मन के ऊपर उतने ही खतरनाक तरीके से वार कर सकता है, जितना फाइटर प्लेन करता है. उदाहरण के लिए, यूक्रेन द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाला एडवांस ड्रोन, बेकरतार की लागत करीब 5 करोड़ है जो कि किसी भी फाइटर प्लेन के मुकाबले में बहुत कम है.

लागत के अलावा, ड्रोन के और भी कई फायदे हैं, जैसे ये रिमोट से नियंत्रित होता है. इसमें पायलट की जरूरत नहीं होती है, इसे डिटेक्ट कर पाना रडार के लिए बहुत मुश्किल होता है और सबसे बड़ी बात 10 लाख रुपये के एक ड्रोन को मार गिराने के लिए दुश्मन को उसके ऊपर एक करोड़ रुपये से भी महंगा मिसाइल फायर करना पड़ता है. इस तरह ड्रोन हर तरह से फायदेमंद हैं और इसी वजह से सभी देश अपनी सेना में ज्यादा से ज्यादा ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

युद्ध में इस्तेमाल हो रहा है ड्रोन

नया हथियार बन गया है ड्रोन

पहली बार वॉर में ड्रोन का इस्तेमाल कब हुआ?

ड्रोन का इस्तेमाल पहली बार अमेरिका ने बड़े पैमाने पर अफगानिस्तान में टारगेट पर अटैक करने के लिए किया. 9/11 के हमले के बाद जब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में घुसी तो उसके लिए सबसे बड़ी समस्या थी, टारगेट की पहचान कर उस पर हमला करना, जिससे आम लोगों को कोई नुकसान न पहुंचे. ओसामा बिन लादेन और अलकायदा के अन्य आतंकवादियों की तलाश में अमेरिकी सेना ने बड़े पैमाने पर हथियार से लैश ड्रोन का इस्तेमाल किया था.

रूस और यूक्रेन वॉर को करीब से कवर करने वाले The Final Assault के फाउंडर और एडिटर इन चीफ नीरज राजपूत बताते हैं- साल 2020 में आर्मेनिया अजरबैजान युद्ध में भी दुनिया ने ड्रोन का इस्तेमाल देखा था. अजरबैजान ने ड्रोन अटैक से आर्मेनिया की कमर तोड़ दी थी, लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध में ड्रोन का पहली बार बड़ी तादाद में इस्तेमाल किया गया. फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो वो पारंपरिक युद्ध-शैली के जरिए था. इस दौरान रूस के टैंक, आर्मर्ड व्हीकल्स और मिलिट्री ट्रक में सैनिकों भरकर जमीनी हमले के लिए यूक्रेन में दाखिल हुए थे. यूक्रेन की सेना रूस के मुकाबले कमजोर जरूर थी, लेकिन यूक्रेन ने अमेरिका और टर्की (तुर्किए) से मिले ड्रोन के जरिए रूस की ग्राउंड फोर्सेज को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया.

नीरज राजपूत आगे बताते हैं रूस और यूक्रेन के युद्ध के शुरुआती हफ्तों में रूस की सेना को ज्यादा नुकसान हुआ था, यूक्रेन को जो नुकसान हुआ था वो लॉन्ग रेंज वेपन यानि मिसाइल से ज्यादा हुआ था. रूस को जैसे ही अन-कन्वेंशनल वॉरफेयर की भनक लगी, आनन फानन में ईरान से शहीद ड्रोन मगाएं गए. खबर तो यहां तक आई कि चीन और उत्तर कोरिया ने भी रूस की गुपचुप मदद की. रूस की सेना यूक्रेन के मुकाबले काफी बड़ी और मजबूत थी, ऐसे में ड्रोन की ताकत मिलने से रूस की सेना बेकाबू हो गई और आज की तारीख में रूस ने यूक्रेन पर सैन्य तौर पर बड़ी बढ़त बना रखी है. फिर भी यूक्रेन के मेरीटाइम-ड्रोन लगातार रूस की ब्लैक-सी फ्लीट के जंगी जहाज और क्रीमिया पोर्ट और सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर को लगातार निशाना बनाते रहते हैं. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि अगर यूक्रेन ने किसी डोमेन में रूस पर बढ़त बनाई तो फिर वो ड्रोन-वॉरफेयर ही है.

क्या पारंपरिक युद्ध में आ रहा है बदलाव?

इंडियन एयरफोर्स के एक वरिष्ठ बताते हैं कि पहले युद्ध जल्दी खत्म हो जाते थे, लेकिन अब सालों तक चलते हैं, बड़े महंगे फाइटर प्लेन की जगह ड्रोन ने ले लिया है. इसका एक फायदा ये भी है कि इससे जान माल का नुकसान भी कम होता है, फाइटर प्लेन को उड़ाने के लिए पायलट को भी अपनी जान जोखिम में नहीं डालनी पड़ता है. भारत भी पिछले कई सालों से ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है. खासतौर पर जम्मू कश्मीर में आंतकवाद को रोकने के लिए इसकी मदद ली जा रही है. ड्रोन का इस्तेमाल भारतीय सेना बड़े पैमाने पर कर रही है, ड्रोन की मदद से एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन भी चलाए जा रहे हैं. ड्रोन से आतंकवादियों पर नजर रखने के साथ-साथ जरूरत पड़ने पर उन्हें टारगेट भी किया जा सकता है.

नीरज राजपूत बताते हैं- रूस यूक्रेन युद्ध में ड्रोन की बड़ी भूमिका के बाद पारंपरिक युद्ध में दुनियाभर में बड़े बदलाव नजर आ रहे हैं, पहले आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध और फिर पिछले दो साल से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनियाभर की सेनाओं को बड़ी सीख ये दी है कि पारंपरिक युद्ध-शैली से जंग जीतना थोड़ा मुश्किल होगा. लेकिन यूक्रेन युद्ध ने ये भी सिखाया है कि अकेले अन-कन्वेंशनल वॉरफेयर से आप युद्ध नहीं जीत सकते. ड्रोन और एसिमिट्रिक वॉरफेयर से आप दुश्मन पर बढ़त बना सकते हैं, लेकिन जंग नहीं जीत सकते. ऐसे में अगर आप की सेना पारंपरिक युद्ध-शैली को ड्रोन और दूसरी डिस्ट्रक्टिव टेक्नोलॉजी के साथ आगे बढ़ती है तो जंग में जीत निश्चित है.

दुनिया के 5 बेस्ट वॉर ड्रोन कौन कौन से हैं ?

पहले नंबर पर आता है यूएस का एमक्यू-9 प्रीडेटर ड्रोन (रीपर ड्रोन). भारत ने एमक्यू-9बी के सी-गार्जियन और स्काई गार्जियन वर्जन के लिए अमेरिका से करार करने जा रहा है. दूसरे पर आता है टर्की का बायरेक्टर (टीबी2 ) ड्रोन जिसका इस्तेमाल रुस-यूक्रेन युद्ध में हो रहा है. ये खबर भी पक्की मानी जा रही है कि पाकिस्तान ने भी ये तुर्किए से टीबी2 यूएवी ले लिया है. तीसरे पर है इजरायल का हेरोन मार्क-2 ड्रोन (भारत ने हाल ही में ये ड्रोन इजरायल से लिए हैं, जिन्हें जरुरत पड़ने पर आर्म्ड किया जा सकता है).

चौथे पर है चीन का विंग-लोंग (डब्लूएल-2). इस ड्रोन के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं थी. लेकिन पिछले साल नाइजीरिया ने आतंकी संगठन बोको हरम के जिस ठिकाने पर एरियल अटैक कर 100 से ज्यादा आतंकियों को ढेर करने का दावा किया था, वो यही चीनी यूएवी माना जा रहा है. ऐसे में चीन के यूएवी की साख अचानक से दुनिया में बढ़ गई है. पांचवें नंबर पर उत्तर कोरिया के सीक्रेट यूएवी है जो देखने में बिल्कुल अमेरिकी एमक्यू-9 प्रीडेटर ड्रोन की तरह दिखते हैं. दुनिया को इनका असल नाम भी नहीं पता है. पिछले साल रुस के रक्षा मंत्री के उत्तर कोरिया के दौरे के दौरान किम जोंग उन ने अपने डिफेंस प्रदर्शनी में इन ड्रोन को प्रदर्शित किया था. माना जा रहा है कि उत्तर कोरिया ने गुपचुप तरीके से इन ड्रोन को रूस को सप्लाई किया है. हालांकि, रूस ने कभी ये स्वीकार नहीं किया है.

ड्रोन

दुनिया के सभी ताकतवर देश बना रहे हैं ड्रोन

क्या भारत को भी काउंटर ड्रोन स्ट्रेटजी पर काम करने की जरूरत है?

नीरज राजपूत बताते हैं- ”अगर आप ड्रोन वॉरफेयर में पारंगत होना चाहते हैं तो काउंटर-ड्रोन टेक्नोलॉजी भी इसका हिस्सा होना चाहिए. क्योंकि जब आप ड्रोन और यूएवी का इस्तेमाल करते हैं तो आपका दुश्मन भी उनका इस्तेमाल कर सकता है या करता है. ऐसे में काउंटर-ड्रोन टेक्नोलॉजी और रणनीति भी बेहद जरूरी है. छोटे ड्रोन (और यूएवी) के लिए भारत के सबसे बड़े रक्षा संस्थान डीआरडीओ ने काउंटर ड्रोन वेपन ईजाद किया है, जो लेजर-तकनीक पर आधारित है. लेकिन इसके साथ- साथ भारत की कई प्राईवेट कंपनियों ने हार्ड-किल तकनीक भी ईजाद की है, जिसमें ड्रोन को जाम करने के साथ -साथ उसे जमीन पर भी गिराया जा सकता है. एमक्यू-9 रीपर और टर्की के बायरेक्टर ड्रोन को मार गिराने के लिए पारंपरिक एयर-डिफेंस मिसाइल का ही इस्तेमाल किया जाता है. रक्षा मंत्रालय स्टार्टअप और प्राईवेट कंपनियों को एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी को तैयार करने के लिए काफी प्रोत्साहित कर रही है.

वॉर ड्रोन की तकनीक भारत में किस स्तर पर है?

नीरज राजपूत बताते हैं भारत का फिलहाल कोई स्वदेशी कॉम्बेट ड्रोन नहीं है. ऐसे में भारत ने अमेरिका की जनरल-एटोमिक्स कंपनी के साथ करार कर 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने का फैसला किया है. इसमें से 15 भारतीय नौसेना को मिलेंगे और 8-8 थलसेना और वायुसेना को. हाल ही में अडानी कंपनी ने इजराइल की एक प्राइवेट कंपनी के साथ मिलकर हैदराबाद में स्टारलाइनर (दृष्टि) यूएवी बनाने का काम शुरू कर दिया है. डीआरडीओ का प्रोजेक्ट तपस करीब ठंडे बक्से में चला गया है.

फिलहाल भारत बड़े पैमाने Heron और IAI Searcher ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है. गलवान की घटना के बाद भारतीय सेना बड़े पैमाने पर एडवांस ड्रोन को भी अपने हथियारों में शामिल कर रही है, जिससे न सिर्फ चीन की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है, बल्कि जरूरत पड़ने पर टारगेट भी किया जा सकता है.

भारत ने 1990 में अपना ड्रोन प्रोजेक्ट शुरू किया था. निशांत UAV ड्रोन बनाए गए, लेकिन ये संतोषजनक नहीं रहा. इसलिए भारत इजराइल से Heron UAV इंपोर्ट कर रहा है.

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