DigiLocker Fake App का खतरा आजकल तेजी से बढ़ रहा है। अगर आप भी अपने जरूरी दस्तावेज सुरक्षित रखने के लिए सरकारी डिजिटल लॉकर का इस्तेमाल करते हैं, तो जरा सी लापरवाही आपको बहुत भारी पड़ सकती है। साइबर अपराधी डिजिलॉकर से मिलते-जुलते फर्जी ऐप बनाकर आपकी पहचान, बैंक अकाउंट और सरकारी दस्तावेजों तक सेंध लगा रहे हैं।
क्या है असली DigiLocker?
डिजिलॉकर भारत सरकार का एक आधिकारिक डिजिटल लॉकर है, जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) और नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन मिलकर चलाते हैं। इसका मकसद कागजी दस्तावेजों का झंझट खत्म करना और फर्जीवाड़े पर रोक लगाना है।
इसमें आप आधार, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, आरसी और मार्कशीट जैसे अहम दस्तावेज सुरक्षित रख सकते हैं, जो कानूनी तौर पर मान्य भी होते हैं। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब साइबर ठग इसी भरोसे का फायदा उठाते हैं।
कैसे फंसाते हैं साइबर अपराधी?
साइबर अपराधी डिजिलॉकर के नाम से मिलते-जुलते फर्जी ऐप बनाते हैं, जो देखने में बिल्कुल असली जैसे लगते हैं। इनका नाम, लोगो और इंटरफेस हूबहू सरकारी ऐप जैसा ही होता है। कई बार नाम में ‘डिजिटल लॉकर’ या ‘जियो’ जैसे शब्द जोड़ दिए जाते हैं और तिरंगे जैसा लोगो लगा दिया जाता है।
अक्सर लोग Google Play Store पर मौजूद हर ऐप को सुरक्षित मान लेते हैं। जल्दबाजी में वे डेवलपर का नाम, डाउनलोड संख्या या मांगी गई परमिशन चेक नहीं करते और फर्जी ऐप इंस्टॉल कर लेते हैं। जैसे ही कोई इस नकली ऐप में अपना डेटा डालता है, वह सीधे ठगों के पास पहुंच जाता है।
फर्जी ऐप से होने वाले खतरे
एक बार डेटा चोरी होने के बाद पहचान की चोरी, बैंक फ्रॉड, फर्जी लोन, सिम कार्ड निकलवाना, मैलवेयर डालना और ब्लैकमेलिंग जैसी गंभीर घटनाएं हो सकती हैं।
असली DigiLocker की पहचान के 4 तरीके
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डेवलपर का नाम: सबसे पहले ऐप के डेवलपर का नाम चेक करें। असली ऐप में डेवलपर ‘नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन’ या ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया’ होगा।
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ऑफिशियल लिंक: हमेशा डिजिलॉकर की आधिकारिक वेबसाइट, डिजिटल इंडिया या MeitY के पेज पर दिए गए लिंक से ही ऐप डाउनलोड करें।
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डाउनलोड और रेटिंग: असली ऐप के डाउनलोड करोड़ों में और रिव्यू बहुत ज्यादा होते हैं। अगर डाउनलोड हजारों या लाखों में हैं, तो सतर्क हो जाएं।
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स्पेलिंग और डिजाइन: नकली ऐप्स में अक्सर स्पेलिंग की गलतियां या खराब डिजाइन देखने को मिलता है, जबकि असली ऐप प्रोफेशनल होता है।
गलती से फर्जी ऐप इंस्टॉल हो जाए तो क्या करें?
अगर गलती से फर्जी ऐप इंस्टॉल हो गया है, तो घबराएं नहीं। तुरंत उसे अनइंस्टॉल करें और चेक करें कि उसने कैमरा, माइक्रोफोन या कॉन्टैक्ट्स जैसी सेंसिटिव परमिशन तो नहीं ली थी।
इसके बाद अपने डिजिलॉकर, बैंकिंग, यूपीआई और ईमेल के पासवर्ड तुरंत बदल दें। फोन को एंटी-मैलवेयर से स्कैन करें और अगले कुछ दिनों तक बैंक स्टेटमेंट व ट्रांजैक्शन पर नजर रखें। कोई भी संदिग्ध गतिविधि दिखने पर cybercrime.gov.in पर या 1930 हेल्पलाइन पर शिकायत करें।
बचाव के आसान टिप्स
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सिर्फ नाम देखकर भरोसा न करें, रिव्यू और रेटिंग जरूर पढ़ें।
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जरूरत से ज्यादा परमिशन मांगने वाले ऐप्स से बचें।
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किसी भी अनजान ऐप में सरकारी दस्तावेज अपलोड न करें।
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एसएमएस या व्हाट्सएप पर आए अनजान लिंक्स पर क्लिक न करें।
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सभी अहम अकाउंट्स में टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन (2FA) ऑन रखें।
याद रखें, कोई भी असली सरकारी संस्था आपसे ओटीपी, पूरा पासवर्ड या कार्ड नंबर कभी नहीं मांगती। आपकी जागरूकता ही फर्जी ऐप्स से बचने का सबसे बड़ा हथियार है।
जानें पूरा मामला
डिजिटल इंडिया मुहिम के तहत सरकार ने दस्तावेजों को डिजिटल रूप में सुरक्षित रखने के लिए डिजिलॉकर की शुरुआत की है। लेकिन इसकी बढ़ती लोकप्रियता का फायदा उठाकर साइबर अपराधी इसी नाम से फर्जी ऐप बनाकर लोगों को ठग रहे हैं। यह रिपोर्ट आपको असली और नकली ऐप में फर्क करने और साइबर फ्रॉड से बचने के तरीके बताती है।
मुख्य बातें (Key Points)
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डिजिलॉकर के नाम पर फर्जी ऐप बनाकर साइबर अपराधी डेटा और पैसे चुरा रहे हैं।
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असली ऐप की पहचान डेवलपर के नाम (नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन) से की जा सकती है।
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फर्जी ऐप इंस्टॉल होने पर तुरंत पासवर्ड बदलें और साइबर क्राइम में शिकायत करें।
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अनजान लिंक्स पर क्लिक करने और थर्ड-पार्टी ऐप्स में दस्तावेज अपलोड करने से बचें।






