लेखक- पण्डित संदीप
पाँच दरिया वाले खुशहाल पंजाब में चुनावी बयार जोर शोर से बह रही है। चुनावी वैतरणी पार करने की नाव का नाम डेरा कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। डेरा बिना सब सून दल कोई भी हो, निशान, पहचान कोई भी हो डेरा से दिल लगाए बिना सत्ता का शीर्ष मिल जाएगा ये बात राजनीति का अदना सा खिलाड़ी भी नहीं सोच सकता राजनीतिक पंडित तो जानते मानते बताते हैं कि “डेरा जिसके साथ सत्ता उसके हाथ।” सत्ता का सिंहासन कहीं छूट न जाए इसी आशा के साथ डेरा के प्रति नेताओं की भक्ति चुनावी दिनों में हिलोरे मारने लगती है। डेरा यशोगान, डेरा से पुराने नाते रिश्ते, डेरा से नजदीकी का दावा करने वाले दल के रणनीतिकार जीत का जाल बुनने में मशगूल हैं पंजाब की सत्ता का ओर छोर कोर डेरा के डोर से ही बंधा है कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए। नेता जानते ज्यादा हैं बोलते कम हैं कारण साफ है उन्हें खुद कि शक्ति का एहसास और रिश्ते को रिश्ता खास बनाये रखना है।
तेरे दर पर सर रख दिया है झोली भर दे बाबा… नेताओं की जुबान पर डेरा की शक्ति, संख्या को परख सियासत की बिसात बिछाने वाले डेरा दरबारो में इन दिनों दरिया बिछाते देखे जा सकते हैं। पंजाब की लड़ाई में डेरे के आशीर्वाद बिना सत्ता सुख संभव है ये कोई सोच भी नहीं सकता। सभी दलों के केंद्र में डेरा को जोड़ने, साथ लाने, समर्थन पाने की जुगत जोड़ी जाती है कुछ सरेआम ये काम कर जाते हैं तो बहुतेरे पर्दे के पीछे गुपचुप डेरा की डोर से खुद को जोड़ने की कोशिश करने को मजबूर और मशहूर माने जाते हैं।
डेरा पंजाब के चुनाव के केंद्र में क्यों है? आखिर ऐसा क्या है डेरा की शरण में आए बिना क्यों सत्ता का शिखर छूना सियासत दानों के बूते की बात नहीं लगती। सत्ता सुख डेरा मनमोहे बिना क्यों संभव नहीं? सवाल सौ टके का है जवाब बेहद सरल पंजाब की जनसंख्या की 25% आबादी 12 हजार डेरे के घेरे में घिरी है। इतनी संख्या में विभिन्न संप्रदाय मत संतो के डेरे धरती पर नानक की जमीं के अलावा दुनिया के किसी कोने में शायद कहीं और नहीं है। कारण साफ है धर्म, सेवा, समर्पण, सहयोग, सर्वस्व अर्पण करने में पंजाब पंजाबियत से बड़ा कोई दूसरा खड़ा हो ही नहीं सकता इस पूरी दुनिया इस पूरे जहान कायनात में।
भक्ति की शक्ति जाति का भेदभाव संगठन का संरक्षण, पहचान की अभिलाषा, सम्मान का आकर्षण मुक्ति का द्वार मान डेरा का जुड़ाव पंजाब के जनमानस की खासियत बताई जाती है। 1200 में से 900 डेरे सिख समुदाय के हैं जबकि इनमें से 300 डेरे बेहद ताकतवर बड़े और मजबूत माने जाते हैं। पंजाब की विधानसभा में कुल 117 विधायक चुनकर पहुँचते हैं, इनमें से 93 पर किसी न किसी डेरे का प्रभाव जरूर है। 47 सीटों पर डेरा भक्त किसी भी राजनीतिक भक्तों के भाव गिराने चढ़ाने की निर्णायक संख्या में मौजूद हैं। 12581 गाँव की पंजाब की एक चौथाई आबादी सीधे तौर पर किसी न किसी डेरे से जुड़ी है। जिनकी संख्या एक करोड़ 13 लाख के करीब गिनाई जाती है। इतना मजबूत क्यों हुआ डेरो का दायरा, कारण साफ है जाति का धर्म पर भारी होना, गुरुद्वारों में दलितों के प्रवेश में अड़चन, भेदभाव का नजरिया, ऊंच-नीच का पहरा आखिर ऐसा बैठा कि पंजाब का बहुसंख्यक दलित जो सन् 2011 में 31.8℅ से बढ़कर सन् 2021 में लगभग 35% हो गया, मान सम्मान पहचान की चाह में किसी डेरा का हो गया।
साथ, संगठन, सहयोग के कारण दलित मुख्यधारा से कट कर डेरा सागर के समागम की लहरें बन हिलोरे लेने लगा है। डेरा सच्चा सौदा सिरसा हरियाणा राजस्थान में तो ताकतवर है ही पर पंजाब में तो मानो उसका दिल बसता है। पंजाब के गाँव गाँव चारों ओर 10,000 से ज्यादा डेरा सच्चा सौदा की शाखाएं इस बात की तस्दीक है कि सिरसे वाले बाबा का नाम धाम काम पंजाब के कोने कोने में हर जुबान पर है। इसका परिणाम साफ है मालवा की 40 में से 46 सीटों का परिणाम डेरा सच्चा सौदा को प्रभावित करता है और 32 सीटों पर निर्णय वही होगा जो डेरा सच्चा सौदा लेगा। ऐसा होता ही आ रहा है जानकार जानते भी हैं खुलकर बताते भी हैं। यहाँ सन् 1891 से स्थापित राधा स्वामी डेरा ब्यास की शक्ति को कम कर के नहीं आंका जाता, इनका प्रभाव 10 से 12 सीटों पर माना जाता है। माझा की दो से तीन और मालवा के सात से 8 सीट पर नामधारियों का दबदबा है। दोआबा की तीन चार और माझा की पाँच छ सीटों पर दिव्य ज्योति संस्थान की पकड़ मजबूत बताई जाती है। दुनिया के 27 देशों में फैले निरंकारी संत समागम की मजबूती भी मालवा और माझा की तीन से चार सीटों पर जबरदस्त मानी जाती है, कुछ और भी डेरा हैं जो संख्या शक्ति संगठन के लिहाज से फर्क डालते हैं किंतु डेरा सच्चा सौदा सिरसा जैसा कद किसी का नहीं संगरूर, मानसा, बठिंडा, बरनाला, फरीदकोट, पटियाला के साथ-साथ मोहाली में भी किसी भी दल के दिल को दुखाने या लुभाने की जो ताकत इनके पास है वो किसी के पास नहीं।
डेरा जिस दल की डोर थामेगा उसकी उड़ान सत्ता के आसमान को छूने से कोई रोक नहीं सकता जाहिर है। ये सच है डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख कारागार में भले हैं पर पंजाब से लेकर सिरसा तक उमड़ा भक्तों का हुजूम साबित करने में सार्थक रहा कि डेरा के अनुयायियों का न भरोसा टूटा है, न एकता, न सहयोग, न सेवा। इसे शक्ति परीक्षण के रूप में देखा जा रहा था जिसमें डेरा सिरसा बहुत आगे खड़ा नजर आता है। पंजाब में 25 लाख से ज्यादा प्रेमियों का जमघट हो या सिरसा में मीलो मील का जाम, डेरा प्रेमियों ने राजनीतिज्ञों की आँखें खोल बता, समझा, जता, दिखा दिया कि डेरा शरणम् गच्छामि नहीं। कांग्रेस के बड़ बोले नेता सिद्धू की जुबान से डेरा परेशान है तो आप की झाड़ू भी डेरा के दरबार में उपस्थिति से महरूम ही दिखाई दे रही है। ऐसे में धर्म का झंडा बुलंद करने वाले फूलदल डेरा को साथ ला पंजाब का चुनावी गणित बदलने की फिराक में सबसे आगे खड़े दिखाई दे रहा है। मौक़ा भी है, वजह भी है, जरूरत, मजबूरी भी है इसलिए भी दोनों के साथ आने की संभावना बढ जाती है ये गुप्त गठजोड़ हो गया तो समझो कई दलों की बात बिगड़ जाएगी। जो डेरा शक्ति को कम आंकने की भूल कर रहे हैं और फूल को कमजोर मान रणनीति बना रहे हैं। पंजाब में सबसे ज्यादा दलित रहते हैं और दलितों का 80% झुकाव डेरा सच्चा सौदा की तरफ है, डेरा को साथ जोड़ने का मतलब दलितों का वोट पाना भी है। राजनीतिज्ञ करते कुछ हैं, दिखाते कुछ हैं, बताते कुछ और ही हैं बेशक चाल सभी चल रहे हैं कुर्सी फंसाने की लेकिन सत्ता किसके जाल में फंसेगी बताएगा दस मार्च। बातें कितनी भी बना ली जाएं पर इस बात का काट नहीं है कि डेरा की डोर से बंधी है भक्ति, शक्ति, मंत्री, संतरी, कुर्सी, ऊर्सी सब।