Delhi Red Fort Blast Update Dr Umar : दिल्ली के लाल किले के पास हुए बम धमाके की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे ‘वाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल’ से जुड़ी परतें खुलती जा रही हैं। सुरक्षा एजेंसियों को लगातार चौंकाने वाले खुलासे मिल रहे हैं, और इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा चर्चा में हैं अल-फलाह यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर और दिल्ली ब्लास्ट केस के आरोपी, डॉक्टर उमर।
क्या एक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को बिना किसी ठोस वजह के इतनी छूट मिल सकती है? क्या एक डॉक्टर महीनों तक अस्पताल से गायब रह सकता है और कोई सवाल नहीं पूछा जाता? अमर उजाला की जांच में डॉक्टर उमर के साथी डॉक्टरों ने जो खुलासे किए हैं, वे यूनिवर्सिटी और अस्पताल प्रशासन की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।
15 मिनट की क्लास और संदिग्ध व्यवहार
यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे और इंटर्नशिप कर रहे दो डॉक्टरों ने बताया कि डॉक्टर उमर का व्यवहार शुरू से ही सामान्य नहीं था। जहां अन्य लेक्चरार पूरी क्लास लेते थे, वहीं डॉक्टर उमर हफ्ते में सिर्फ एक या दो बार क्लास लेने आता था। और वो क्लास भी महज 15 से 20 मिनट की होती थी।
हैरानी की बात यह है कि इतना कम समय देने और क्लास खत्म करके सीधे अपने कमरे में चले जाने की उसकी आदत पर कभी किसी ने आपत्ति नहीं जताई। यह बात यूनिवर्सिटी की अकादमिक संस्कृति पर बड़ा सवाल खड़ा करती है कि आखिर एक लेक्चरार को इतने लंबे समय तक इतनी विशेष रियायत क्यों दी जा रही थी?
नाइट शिफ्ट का अजीब पैटर्न
डॉक्टरों के खुलासे में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है—डॉक्टर उमर की ड्यूटी का समय। उसे हमेशा शाम 5 बजे से रात 12 बजे तक या फिर रात 12 बजे से सुबह 8 बजे तक की ‘नाइट शिफ्ट’ ही दी जाती थी। उसे कभी भी मॉर्निंग शिफ्ट में नहीं लगाया गया, जबकि बाकी सभी डॉक्टरों की शिफ्ट रोटेट होती रहती थी।
सवाल उठता है कि प्रशासन ने उसे लगातार ऐसी शिफ्ट क्यों दी जिनमें निगरानी कम रहती है? क्या जानबूझकर उसे रात के अंधेरे में काम करने की छूट दी गई थी ताकि उसकी गतिविधियों पर किसी की नजर न पड़े?
मरीज को देखने का ‘कॉल सिस्टम’
ड्यूटी के दौरान भी उसका रवैया बेहद गैर-जिम्मेदाराना था। साथी डॉक्टरों के मुताबिक, वह अस्पताल में मौजूद होने के बावजूद मरीजों के पास खुद नहीं जाता था। जब कोई मरीज भर्ती होता और नर्सिंग स्टाफ या इंटर्न उसे फोन करते, तब ही वह आता था। वह भी सिर्फ कुछ मिनटों के लिए—मरीज को देखा, दो-चार निर्देश दिए और वापस अपने कमरे में।
डॉक्टरों का कहना है कि वह सिर्फ “कॉल पर आता था,” और ऐसा व्यवहार किसी और डॉक्टर का नहीं था। यह अस्पताल के प्रशासनिक ढांचे की पारदर्शिता पर संदेह पैदा करता है।
6 महीने का रहस्यमयी ‘गायब’ होना
सबसे बड़ा और चौंकाने वाला खुलासा यह है कि साल 2023 में डॉक्टर उमर लगभग 6 महीने तक अस्पताल से पूरी तरह गायब रहा। न कोई छुट्टी की अर्जी, न कोई सूचना। छह महीने बाद वह अचानक वापस लौटा और बिना किसी पूछताछ के उसे दोबारा ड्यूटी जॉइन करवा दी गई।
जूनियर डॉक्टर होने के नाते किसी ने सवाल नहीं पूछा, लेकिन हैरानी तब हुई जब पता चला कि सीनियर डॉक्टरों को भी नहीं पता था कि वह 6 महीने कहां था। यह इस बात का साफ संकेत है कि या तो प्रशासन की निगरानी शून्य थी, या फिर किसी स्तर पर उसे संरक्षण दिया जा रहा था। क्या यह सब किसी बड़े मॉड्यूल को बचाने के लिए एक ढाल थी? अब जांच एजेंसियां इसी ‘सस्पेंस’ से पर्दा उठाने में जुटी हैं।
जानें पूरा मामला
दिल्ली के लाल किले के पास हुए बम धमाके के बाद जांच एजेंसियों ने एक आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है। इसमें पढ़े-लिखे पेशेवरों, यानी ‘वाइट कॉलर’ लोगों की संलिप्तता सामने आई है। इसी कड़ी में अल-फलाह यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर उमर को आरोपी बनाया गया है। अब उसके साथी डॉक्टरों के बयानों से उसकी संदिग्ध गतिविधियों और उसे मिली प्रशासनिक छूटों की पोल खुल रही है।
मुख्य बातें (Key Points)
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डॉक्टर उमर हफ्ते में केवल 1-2 क्लास लेता था, वो भी सिर्फ 15-20 मिनट की।
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उसे हमेशा निगरानी से बचने के लिए शाम या रात की शिफ्ट ही दी जाती थी।
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2023 में वह 6 महीने तक बिना सूचना के अस्पताल से गायब रहा और लौटने पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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साथी डॉक्टरों के अनुसार, उसे प्रशासन से असामान्य और विशेष छूट मिली हुई थी।






