Delhi Air Pollution Crisis: दिल्ली-एनसीआर में धुंध की ऐसी चादर बिछी है कि सामने की इमारतें तक धुंधली दिखाई देती हैं। आंखों में जलन और लगातार खांसी अब यहां के लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन गई है। एक तरफ जहां आम जनता सांस लेने के लिए संघर्ष कर रही है, वहीं संसद में सरकार ने जो आंकड़े पेश किए हैं, वे जमीनी हकीकत से बिल्कुल अलग कहानी बयां करते हैं।
6 महीने में फिल्टर हुआ स्याही जैसा काला
प्रदूषण की भयावहता को समझने के लिए आंकड़ों की नहीं, बस इन तस्वीरों की जरूरत है। एक ‘रेडिट’ (Reddit) यूजर ने अपने एयर प्यूरीफायर के फिल्टर की फोटो शेयर की, जो महज 6 महीने के इस्तेमाल के बाद पूरी तरह काला पड़ चुका था। यह गंदगी उसी हवा में है जो हम और आप हर पल सांस के जरिए अंदर ले रहे हैं। वहीं, एआई (AI) द्वारा बनाई गई एक तस्वीर में दिखाया गया कि अगर कोई इंसान 2 साल तक 417 एक्यूआई (AQI) में रहे, तो उसके फेफड़ों की हालत कितनी खौफनाक हो सकती है।
संसद में गूंजा ‘जहरीली सुरंग’ का मुद्दा
संसद में कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने सरकार से पूछा कि दिल्ली को ‘जहरीली सुरंग’ बनने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं? इसके जवाब में पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने दावा किया कि हालात सुधरे हैं। उन्होंने आंकड़े देते हुए कहा कि 2016 में जहां ‘अच्छे दिनों’ (Good AQI Days) की संख्या करीब 110 थी, वह अब बढ़कर 200 हो गई है।
सरकार के मुताबिक, नवंबर तक दिल्ली का औसत एक्यूआई जो 2018 में 213 था, वह 2025 में घटकर 187 रह गया है। मंत्री ने यह भी दावा किया कि 2025 के दौरान दिल्ली में एक्यूआई 450 के पार नहीं गया, ऐसा केवल तीन दिन हुआ है। उन्होंने बताया कि 2021 में ‘सीएक्यूएम’ (CAQM) के गठन और ‘ग्रैप’ (GRAP) सिस्टम लागू होने से प्रदूषण को कंट्रोल करने में मदद मिली है।
पराली नहीं, गाड़ियां हैं असली विलेन
सालों से दिल्ली के प्रदूषण के लिए पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है, लेकिन नए आंकड़े कुछ और ही इशारा कर रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के 2025 के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान ‘नगण्य’ यानी ना के बराबर रहा है। वहीं, ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (CSE) की रिपोर्ट कहती है कि गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और स्थानीय स्तर पर ईंधन का जलना ही प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह है।
अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट को भारत की ‘ना’
भले ही ‘आईक्यू एयर’ (IQAir) की रिपोर्ट में भारत को दुनिया का 5वां सबसे प्रदूषित देश और दिल्ली को सबसे प्रदूषित राजधानी बताया गया हो, लेकिन भारत सरकार इन वैश्विक रैंकिंग्स को नहीं मानती। संसद में स्पष्ट किया गया कि ‘WHO’ की गाइडलाइंस सिर्फ सलाह मात्र हैं और भारत के लिए अनिवार्य नहीं हैं। सरकार अपने खुद के मानकों के हिसाब से हवा की गुणवत्ता तय करती है।
हर दिन मर रहे 464 बच्चे
प्रदूषण का यह जहर अमीर-गरीब का फर्क नहीं देखता, लेकिन गरीब पर इसकी मार सबसे ज्यादा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी में वित्त वर्ष 2024-25 में प्रति व्यक्ति आय औसतन 18,572 रुपये है। ऐसे में 10 हजार कमाने वाला आदमी एयर प्यूरीफायर खरीदेगा या परिवार का पेट भरेगा?
‘द लांसेट’ की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में पीएम 2.5 (PM 2.5) के संपर्क में आने से 17 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई। वहीं, ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024’ की रिपोर्ट और भी डरावनी है, जिसके मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण भारत में हर दिन 5 साल से कम उम्र के 464 बच्चों की मौत हो रही है। सरकार चाहे वाटर स्प्रिंकलर चलाए या स्मॉग टावर, लेकिन मासूम जिंदगियों को बचाने के लिए ये इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं।
जानें पूरा मामला
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण अब एक मौसमी समस्या नहीं, बल्कि हेल्थ इमरजेंसी बन चुका है। जहां एक ओर सरकार आंकड़ों के जरिए स्थिति नियंत्रण में होने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर अस्पतालों में सांस के मरीजों की कतारें और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स खतरे की घंटी बजा रही हैं। यह लड़ाई अब आंकड़ों की नहीं, अस्तित्व की है।
मुख्य बातें (Key Points)
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Viral Photo: महज 6 महीने में एयर प्यूरीफायर का फिल्टर पूरी तरह काला पड़ गया, जो हवा की गंदगी दर्शाता है।
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Govt Claims: पर्यावरण मंत्री ने संसद में कहा कि दिल्ली में ‘अच्छे हवा वाले दिनों’ की संख्या बढ़ी है और औसत AQI घटा है।
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Real Cause: नए आंकड़ों के मुताबिक, पराली नहीं बल्कि वाहनों का धुआं और लोकल कम्बशन प्रदूषण की मुख्य वजह हैं।
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Deadly Impact: रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण भारत में हर दिन 5 साल से कम उम्र के 464 बच्चों की जान जा रही है।






