नई दिल्ली,11 सितंबर,(The News Air): आज 11 सितंबर, बुधवार को भारत के महान ऋषि महर्षि दधीचि की जयंती मनाई जा रही है। आइए यहां जानते हैं उनके बारे में 10 बड़ी विशेष बातें।
1. महर्षि दधीचि का जन्म भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था, इसीलिए इस दिन दधीचि जयंती मनाई जाती है। वे एक वैदिक ऋषि थे।
2. महर्षि दधीचि प्राचीन काल के एक परम तपस्वी है। उनके पिता अथर्वा जी थे, जो कि एक महान ऋषि थे। महर्षि दधीचि की माता का नाम शांति था।
3. महर्षि हमेशा दूसरों का हित करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। जिस वन में वे रहते थे, वहां के सभी पशु-पक्षी तक उनके व्यवहार से बहुत संतुष्ट थे।
4. महर्षि दधीचि ख्यातिप्राप्त महर्षि, वेद-शास्त्रों के ज्ञाता, परोपकारी और दयालु स्वभाव के थे।
5. महर्षि दधीचि इतने परोपकारी थे कि उन्होंने असुरों का संहार के लिए अपनी अस्थियां तक दान में दे दी थी।
6. वे भगवान भोलेनाथ के बहुत बड़े भक्त थे। जब वे शिव जी की स्तुति कर रहे थे, तब उनके सम्मुख भगवन शिव प्रकट हुए थे।
7. ऋषि दधीचि ने अपना आश्रम मिसरिख, नैमिषारण्य के पास (उत्तर प्रदेश, लखनऊ) में स्थापित किया था।
8. वे ब्राह्मण वंश के थे, उनकी पत्नी का नाम स्वार्चा और पुत्र का नाम पिप्पलदा था।
9. माना जाता है कि ऋषि दधीचि ने दक्षिण भारत में प्रसिद्ध भजन ‘नारायण कवचम’ की रचना की थी, जिसे शक्ति और शांति के लिए गाया जाता था। ऋषि दधीचि का यह बलिदान इस बात का प्रतीक है कि बुराई से रक्षा करने में यदि कोई त्याग करना पड़े तो, कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
10. महर्षि दधीचि ने वृत्र को पराजित करने के लिए अपनी हड्डियों का दान करके देवताओं को असुरों को हराने में उनकी मदद की थी। उनके इसी निस्वार्थता के कारण वे श्रद्धा के पात्र बन गए।
ऋषि दधीचि जानते थे कि यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसे मिट्टी में ही मिल जाना है। उनका यह बलिदान हमें यही सीख देता है कि बुराई से रक्षा करने में यदि कोई त्याग करना पड़े तो, कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। अत: मानव कल्याण के लिए अपनी अस्थियों का दान करने वाले महर्षि दधीचि ही थे।
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