केवल सलमान खान की उपस्थिति से ही पैसों की बरसात होने लगती है और अब जब ईद है, तो सलमान का स्टारडम कई गुना तेजी से बढ़ता है । पिछले साल, सलमान खान ने बजरंगी भाईजान से दुनियाभर में भारी सफलता देखी । और इस बार आ रही है, सबसे प्रसिद्ध प्रोडक्शन हाउस में से एक यश राज फ़िल्म्स की फ़िल्म सुल्तान- एक पहलवान के उत्थान और पतन और अपने सच्चे प्यार को वापस जीतने के लिए उसकी तलाश, की दिल को छू देने वाली कहानी। यह फ़िल्म उम्मीदों पर खरा उतरने में सक्षम है या नहीं, आईए विश्लेषण करते हैं।
सुल्तान शुरू होती है आकाश ओबरॉय (अमित साध) से, जो प्रो-टेक डाउन नाम के अपने डूबते व्यापार को, जो एक तरह की मार्शल आर्ट (मिली-जुली युद्धकला) से सम्बद्धित, फ़्री-स्टाइल कुश्ती या दंगल है, बचाने की कोशिश में लगा है। और इस कोशिश में उसे तलाश है एक ऐसे खिलाडी की जो उसके व्यापार का भाग्य बदल कर रख दे। ऐसे संकट में पड़े व्यापार को बचाने के लिए उसके पिता (परिक्षीत साहनी) उसे मिलने कि सलाह देते हैं सुल्तान से – जो अपने समय का विश्वविजेता कुश्तीबाज रह चुका है। सुल्तान को दोबारा अखाड़े में उतारने की कोशिश के दौरान, उसका रवैया देखकर आकाश, एक समय के चैम्पियन कुश्तीबाज के अतीत को कुरदने पर मजबूर हो जाता है । सुल्तान अली खान एक समय अनमने मन से केबल टीवी का कारोबार करने वाला उद्देश्यहीन आदमी था, लेकिन जो एक बेखौफ़ और निर्दलीय महिला कुश्तीबाज आरफ़ा के प्यार में पड़कर कुश्ती में अपना जुनून ढूंढने लगता है । आरफ़ा, एक प्रसिद्द पहलवान कोच, जो एक विशुद्ध और देहाती भारतीय अखाड़ा में यह खेल सिखाता है, की बेटी है। उनकी प्रेम-कहानी बहुत जल्द शादी में बदल जाती है, जैसे ही सुल्तान एक ऐसा जुनूनी कुश्तीबाज़ बन जाता है जो अपने अनूठे दावों से दुनिया को जीतने निकल पडता है और बहुत जल्द कुश्ती प्रतियोगिताएं जीतना भी शुरु कर देता है। मगर… बहुत जल्द सुल्तान का अभिमान और उसके प्यार – आरफ़ा – का उसे छोड के जाना उसकी प्रसिद्धी को धूल में मिला देता है। अपने खोये हुए प्यार और आरफ़ा की आखों मे अपने लिये इज्जत की तलाश में, सुल्तान एक बार फ़िर चुनौती स्वीकार करता है, और आकाश से हाथ मिला कर मिक्सड मार्शल आर्ट (मिली-जुली युद्धकला) के विश्व-विजेताओं से लडने के लिये तैयार हो जाता है। अपनी खोई हर उस चीज को हासिल करने के लिये वो अब किसी भी हद तक जाने के लिये तैयार है।
सुल्तान भावनाओं और एक्शन के सही मेलजोल से भरी कहानी है जो शुरू से ही आपका ध्यान खींचती है और सही समय पर सही रोचक अंश के इस्तेमाल से आपको बांध के रखती है। यहां हम उल्लेख करना चाहेंगे कि सलमान का परिचय कराने वाला सीन उनके प्रशंसकों को काफ़ी पसंद आयेगा। फ़िल्म मध्यांतर से पहले एक पहलवान के उत्थान को दर्शाती है और हास्य से भरा फ़िल्म का ये हिस्सा आपको काफ़ी मनोरंजित करता है । इस फ़िल्म में शक्तिशाली कुश्ती मैच हैं जो आपमें और ज्यादा एक्शन देखने की लालसा जगाते हैं और इसी के साथ-साथ एक प्यारी से प्रेम कहानी है जो सुल्तान के रोमांटिक पहलू पर केंद्रित है । वहीं दूसरी तरफ़, मध्यांतर के बाद फ़िल्म पहले भाग की तुलना में ज्यादा गंभीर और भावपूर्ण हो जाती है । अली अब्बास जफ़र, विफ़लता और प्रसिद्दी के खो जाने से जुड़ी गहरी भावनाओं और खेल में वापसी के लिए सुल्तान की आक्रामक और व्याकुल कोशिशों को दर्शाने में सफ़ल रहे हैं , लेकिन बहुत ज्यादा भावुक दृश्यों के चलते फ़िल्म मध्यांतर के बाद काफ़ी धीमी हो जाती है । हालांकि, अपनी पिछली फ़िल्म की तुलना में अली अब्बास जफ़र का निर्देशन कौशल काफ़ी निखर के आया है । एक खास टिप्पणी, मध्यांतर के बाद शूट किए गए कुश्ती के मैच काफ़ी स्पष्ट और प्रभावशाली है ।
अभिनय की बात करें तो, यह हर सूरत में सिर्फ़ सलमान खान की फ़िल्म है । उनके हाव-भाव और हरियाणवी लहजा, प्रसिद्द पहलवान के स्तर से से नीचे गिर के एक मजबूर इंसान, जो अपनी जिंदगी को फ़िर से संजोने की कोशिश में लगा है, के स्तर तक, सलमान का रोल सुल्तान अली खान के रूप में कुश्ती की भाषा में कहें तो धोबी पछाड़ है । आरफ़ा के लिए उसका प्यार आपके दिल की धड़कन बढ़ा देगा । सलमान ने अपनी बॉडी के साथ काफ़ी मेहनत की है जिसकी वजह से एक्शन सीन काफ़ी अच्छे लगे हैं । अनुष्का शर्मा जिनका एक्शन से भरपूर प्रदर्शन, दर्शक उनकी पिछली फ़िल्म एनएच10 में पसंद कर चुके हैं, इस फ़िल्म में भी आरफ़ा की भूमिका में दिल जीत लेता है । अनुष्का ने न केवल सलमान के दमदार अभिनय के साथ कंधे से कंधा मिलाया है बल्कि आरफ़ा के रूप में उनकी उपस्थिती फ़िल्म के बेकग्राउंड में भी अपनी छाप छोड़ती है ।
कुशल महिला कुश्तीबाज के साथ-साथ एक ऐसी हरियाणवी लड़की जो कुछ अलग करने की ख्वाहिश रखती है, आरफ़ा की भूमिका में अनुष्का ने अब तक की अपनी सर्वश्रेष्ठ अभिनय का परिचय दिया है । एक मार्शल आर्टस एक्सपर्ट की भूमिका में रणदीप हुड्डा का प्रदर्शन भी उतना ही जोरदार रहा है । अपने कारोबार को संभालने की कोशिश में लगे बिजनिस टायकून आकाश ओबरॉय की भूमिका में अमित साध ने भी दमदार अभिनय किया है । कलाकारों का चुनाव उपयुक्त है और छोटी से छोटी भूमिका भी फ़िल्म में जान डालती है । सुल्तान का सपोर्ट सिस्टम बने उनके दोस्त गोविंद की भूमिका भी काबिलेतारिफ़ है ।
जहां तक संगीत की बात है फ़िल्म का संगीत काफ़ी औसत दर्जे का रह गया है जबकि अच्छे गीतों के चलते वो फ़िल्म में और जान डाल सकता था । हालांकि, बेबी को बॉस पसंद है जैसे जोशिले गाने की धुन एक चार्ट्बस्टर साबित हुई है जिसके साथ-साथ मधुर और रोमांटिक गीत जग घूमैया भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ है । आर्तुर ज़ुराव्स्की का छायांकन उत्कृष्ट है और लार्नर स्टोवल की एक्शन कोरियोग्राफ़ी भी काबिलेतारिफ़ है । ट्रेनिंग सेशन से लेकर अखाड़े में हुए असली मैच तक फ़िल्म सुल्तान कुश्ती के दांवों को काफ़ी सूक्ष्मता से दर्शाने में सफ़ल रही है ।
कुल मिलाकर, सुल्तान पूरी तरह से एक पैसा वसूल, सीटी मार और साफ़-सुथरी मनोरंजक फ़िल्म है, जो हर वर्ग के लोगों द्दारा पसंद की जाएगी । बॉक्स ऑफ़िस पर ये फ़िल्म धमाल मचाएगी क्योकिं इस के साथ किसी और फ़िल्म का रिलीज न होना, रिलीज का सही समय (त्योहार का समय) और 5 दिन का लंबा अवकाश, सुनिश्चित करता है कि ये फ़िल्म कई सारे रिकॉर्ड्स तोड़ेगी और साथ ही ये इस साल की अब तक की सबसे बड़ी हिट फ़िल्म साबित होगी । यह फ़िल्म एक ब्लॉकबस्टर साबित होगी । जाइए और देखिए ।