The News Air- (चंडीगढ़) पंजाब कांग्रेस में CM चेहरे की दौड़ तेज़ हो गई है। प्रधान नवजोत सिद्धू बार-बार कह रहे हैं कि पंजाब को इस बरात का दूल्हा बताना होगा। यह देख CM चरणजीत चन्नी भी सक्रिय हो गए। वह भी अब चुनाव रैलियों में लोगों से एक मौक़ा और मांगने लगे हैं। इस सबके बीच पंजाब कांग्रेस की कैंपेन कमेटी के चेयरमैन सुनील जाखड़ कह रहे हैं कि किसी एक के चेहरे पर चुनाव नहीं होगा। संयुक्त लीडरशिप में चुनाव होंगे। सिर्फ़ पिछली बार हम कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे पर लड़े थे।
चेहरा दो वरना नुक्सान होगा : सिद्धू
नवजोत सिद्धू ने कहा कि पिछले चुनाव में मैंने यह मुद्दा आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए उठाया था। मैं कहता रहा कि बरात घूम रही है लेकिन दूल्हा कहां है? इसका नुक्सान आप को हुआ। इस बार कांग्रेस में यही स्थिति है। पंजाब जानना चाहता है कि उनके लिए रोडमैप किसके पास है? कौन पंजाब को इस कीचड़ से बाहर निकालेगा? मैं आप से पूछता था, लेकिन अब लोग हमसे पूछ रहे कि पंजाब कांग्रेस की बरात का दूल्हा कौन है? सिद्धू का यह बयान उन्हें CM चेहरा घोषित करने के दबाव के लिए माना जा रहा है।
आपने सबको देखा, मुझे 2 महीने मिले, एक मौक़ा और दो : CM चन्नी
कांग्रेस हाईकमान पर सिद्धू का दबाव देख CM चरणजीत चन्नी भी कुर्सी की दावेदारी में कूद पड़े हैं। चुनाव रैलियों में सीएम चन्नी कह रहे हैं कि आपने बादल और कैप्टन को कई बार देखा लेकिन मुझे सिर्फ़ ढ़ाई महीने मिले। मैंने क्या किया, यह आप सबने देखा। अगर हमें एक मौक़ा और मिल जाए तो क्या हो सकता है, आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कर सकता हूं। चन्नी लगातार अब इस बात को दोहरा रहे हैं।
जाखड़ बोले- यह कांग्रेस की परंपरा नहीं
सिद्धू-चन्नी के दावे के बीच पंजाब में कांग्रेस के बड़े हिंदू चेहरे सुनील जाखड़ की अलग राय है। जाखड़ कहते हैं कि किसी एक के चेहरे पर चुनाव लड़ना कांग्रेस की परंपरा नहीं। 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह को छोड़ दें तो हमेशा कलेक्टिव लीडरशिप पर चुनाव हुआ। इस बार भी हाईकमान के आदेश पर मिलकर चुनाव लड़ा जाएगा। जाखड़ इसलिए अहम हैं क्योंकि CM न बनाए जाने पर वह काफ़ी वक़्त तक पंजाब में पार्टी से नाराज़ रहे।
कांग्रेस के लिए लिए फ़ायदा-नुक्सान के साथ मज़बूरी
चन्नी, सिद्धू और जाखड़ की पावर स्ट्रगल कांग्रेस के लिए फ़ायदा-नुक्सान के साथ मज़बूरी भी है। पंजाब में जातीय समीकरण कांग्रेस के लिए बड़ी दिक्क़त है। इसलिए कलेक्टिव लीडरशिप पर चुनाव नहीं लड़े तो वोट बैंक का गणित
गड़बड़ाना तय है। समझिए.. इसे कैसे देखा जा रहा..
फ़ायदा : जिनके समर्थक विधायक ज़्यादा होंगे, उनका CM की कुर्सी पर दावा ज़्यादा मज़बूत होगा। इसलिए तीनों नेता अपने समर्थकों को जिताने का ज़ोर लगाएंगे और कांग्रेस की सरकार आ जाएगी।
नुक्सान : राजनीतिक माहिर इसका नुक्सान भी मानते हैं। उनका कहना है कि पंजाब जैसे संवेदनशील बॉर्डर स्टेट में वोटर के मन पार्टी की अनिश्चितता की स्थिति कांग्रेस के लिए नुक़सानदेह साबित होगी। नेता अपने समर्थकों की जीत के साथ दूसरे के उम्मीदवारों को हराने की भी कोशिश कर सकते हैं। इसका फ़ायदा वह पार्टियां उठा सकती हैं, जो सीएम चेहरे को लेकर स्पष्ट हैं या फिर उनके यहां चेहरे को लेकर विवाद नहीं।
मज़बूरी : कांग्रेस में 32% SC वोट बैंक हैं। ऐसे में अनुसूचित जाति के पहले CM बनाने के चरणजीत चन्नी पर खेला दांव नहीं छोड़ना चाहती। वहीं, नवजोत सिद्धू पंजाब में कांग्रेस के पॉपुलर चेहरे हैं। उन्हें भी कांग्रेस नाराज़ नहीं कर सकती। पंजाब में क़रीब 38% हिंदू वोट बैंक है और कांग्रेस के पास बड़ा चेहरा सुनील जाखड़ ही हैं। अगर जाखड़ नाराज़ हुए तो फिर कांग्रेस को शहरों में नुक्सान हो सकता है। इसलिए तीनों को बराबर रखना कांग्रेस की राजनीतिक मज़बूरी है।