नई दिल्ली, 26 मई
देशभर में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद अब तीसरी लहर का भी खतरा बताया जा रहा है। हालांकि तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों में भी मतभेद है। इसके बावजूद बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं को तैयार किया जा रहा है। साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से भी इलाज का प्रोटोकॉल तैयार किया गया है।
इस संबंध में पीडियाट्रिक एज ग्रुप के लिए कोविड इलाज का प्रोटॉकॉल तैयार करने वाले ऑल इंडिया मेडिकल साइंसेज के डिविजन ऑफ पल्मोनोलॉजी में प्रोफेसर डॉ। राकेश लोढ़ा कहते हैं कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के डेटा को देखें तो संभावित तीसरी या कोई अन्य लहर बच्चों को ज्यादा गंभीरता से प्रभावित करेगी कहना मुश्किल है। हेल्थ अथॉरिटीज पूरी सावधानी से स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने के साथ ही इसे मॉनिटर भी कर रही हैं। डॉ। लोढ़ा कहते हैं कि कोरोना मामलों के डिनोमिनेटर प्रभाव के चलते इस बार कोरोना से युवाओं या बच्चों की मौत की संख्या बढ़ी है। जबकि प्रतिशत देखेंगे तो पहली और दूसरी दोनों लहरों में लगभग बराबर ही रहा है। इसके बावजूद अभी तक वैक्सीनेशन से वंचित इस ग्रुप के कोविड की चपेट में आने से या प्रभावित होने से इनकार नहीं किया जा सकता। लिहाजा बच्चों के इलाज के लिए इंतजाम किए जा रहे हैं।केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए प्रोटोकॉल को देखें तो चार भागों में यह बच्चों के इलाज के संबंध में निर्देशित करता है।
परिजनों या परिवार में किसी को कोरोना होने पर जो बच्चे स्क्रीनिंग में कोरोना से प्रभावित पाए जाते हैं लेकिन उनमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं रहता है तो उन्हें एसिम्टोमैटिक कहा जाता है। इन बच्चों को घर पर ही सिर्फ निगरानी की जरूरत होती है। जैसे जैसे लक्षण बढ़ते हैं उसी आधार पर इन्हें इलाज की जरूरत होती है।
माइल्ड लक्षणों वाले बच्चों में गले में दर्द, नाक बहना, गले में खराश, बिना सांस लेने में तकलीफ हुए खांसी या किसी किसी बच्चे में पेट या आंत संबंधी परेशानी भी हो सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे बच्चों को किसी अन्य जांच की जरूरत नहीं होती। इन्हें घर पर ही आइसोलेट करके ठीक किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए होम आइसोलेशन की सभी जरूरतें पूरी करके की सुविधा होनी चाहिए। देखभाल के लिए एक अभिभावक का होना भी जरूरी है। यहां तक कि इन लक्षणों में हर्ट डिजीज, क्रॉनिक लंग डिजीज या मोटापे वाले बच्चों को भी घर पर ही ठीक किया जा सकता है। प्रोटॉकॉल के अनुसार इन बच्चों को हर 4-6 घंटे में 10-15 एमजी प्रति किलोग्राम के हिसाब से पैरासीटामोल देनी होगी। कफ और गले के दर्द के लिए गरारा करना होगा। साथ ही पोषणयुक्त डायट लेनी होगी।
मॉडरेट लक्षणों वाले बच्चों को न्यूमोनिया हो सकता है। साथ ही इनका ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 90 तक आ जाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके लिए भी किसी लैब टेस्ट की जरूरत नहीं है। किसी भी कोविड सेंटर में भर्ती किया जा सकता है। इस दौरान लिक्विड डायट और इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन जरूरी है। अगर मुंह से भोजन न कर पा रहे हों तो ओरल फीड थेरेपी अपनाएं। इसके साथ ही 100।4 डिग्री फारेनहाइट या इससे ज्यादा बुखार होने पर हर 4-6 घंटे में 10-15 एमजी प्रति किलोग्राम के हिसाब से पैरासीटामोल की खुराक दी जा सकती है। अगर बैक्टीरियल इन्फैक्शन हो तो एमोक्सिलिन दिया जा सकता है। 94 फीसदी से कम ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल होने पर बाहरी ऑक्सीजन या पूरक की जरूरत होगी। साथ ही पहले से कोई बीमारी होने पर सहायक उपचार दिया जा सकता है।
90 फीसदी से कम ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल होने पर बच्चों को गंभीर लक्षणों वाले मरीज की क्षेणी में रखा जाएगा। इसमें निमोनिया, एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम, सेप्टिक शॉक, मल्टी ऑर्गन डिस्फंक्शन सिंड्रोम, साइनोसिस के साथ निमोनिया आदि हो सकता है। इसके साथ ही सीने में तकलीफ, अत्यधिक नींद, दौरे, सुस्ती आदि हो सकता है। ऐसे बच्चों को कोविड डेडिकेटेड अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी है। साथ ही बच्चों को एचडीयू या आईसीयू की जरूरतर हो सकती है। इन बच्चों को डॉक्टरों की निगरानी में डेक्सामेथासोन की खुराक तय मानकों के अनुसार दी जा सकती है। वहीं लीवर और किडनी सामान्य होने पर शुरुआती तीन दिन में रेमेडिसिविर भी दी जा सकती है।