हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान भगवान सूर्य देव की पूजा-अर्चना और अर्घ्य देने का विधान है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं विधिपूर्वक करती हैं। साथ ही पुरुष भी जीवन में आने वाले संकटों को दूर करने के लिए भगवान सूर्य देव की उपासना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से सूर्य देव का आशीर्वाद मिलता है। जीवन खुशहाल होता है। इस साल छठ महापर्व 7 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। लेकिन इस पर्व की शुरुआत दो दिन पहले हो जाती है।
ऐसे में 5 नवंबर को नहाय-खाय के साथ छठ पूजा शुरुआत हो जाएगी। 5 तारीख को नहाय खाय, 6 को खरना, 7 को डूबते सूर्य को अर्घ्य और 8 की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। ये सूर्य भगवान और षष्ठी माता की पूजा का महापर्व है। व्रत करने वाले व्यक्ति को करीब 36 घंटों तक निर्जल रहना होता है। निर्जल रहना यानी व्रत करने वाले व्यक्ति को 36 घंटों तक पानी भी नहीं पीना होता है।
कब है छठ पूजा 2024
पंचांग के अनुसार, छठ पूजा के पर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है। वहीं, इस त्योहार का समापन सप्तमी तिथि पर होता है। ऐसे में छठ महापर्व 05 नवंबर से लेकर 08 नवंबर तक मनाया जाएगा। इस साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 7 नवंबर की देर रात 12.41 बजे से शुरू होगी और इसका समापन 8 नवंबर की देर रात 12.34 बजे होगा। लिहाजा 7 नवंबर, गुरुवार के दिन ही संध्याकाल का अर्घ्य दिया जाएगा। सुबह का अर्घ्य अगले दिन 8 नवंबर को दिया जाएगा। इसके बाद पारण होगा।
छठ पूजा 2024 कैलेंडर
छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय
छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024-संध्या अर्घ्य
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उषा अर्घ्य
नहाय खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है। इस दिन श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं। अगर नदी में नहाना संभव न हो ते घर पर भी नहा सकते हैं। इसके बाद व्रती महिलाएं भात, चना दाल और लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं। इस दिन शुद्ध और सात्विक भोजन किया जाता है।
खरना क्या है?
छठ पूजा के दूसरे दिन को लोहंडा या खरना कहा जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन माताएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करती है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से आग जलाकर प्रसाद बनया जाता है।
संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन, व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह छठ पूजा का सबसे अहम दिन होता है। इसके साथ ही बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ सहित अन्य सामग्री रखकर पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है।
प्रातःकालीन अर्घ्य
चौथे दिन, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं। साथ ही अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य की कामना करते हैं। इसी दिन प्रसाद वितरण किया जाता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा के दौरान सूर्यदेव को अर्घ्य देने के समय सूप का इस्तेमाल किया जाता है। इस दौरान व्रत रखने वाली महिलाएं बांस से बने सूप, टोकरी या दउरा में फल आदि रखकर छठ घाट ले जाती हैं। सूर्यदेव (सूर्यदेव मंत्र) की आराधना करती हैं। बांस के बने सूप या टोकरी की मदद से ही छठी मैया को भेंट दी जाती है। मान्यताओं के अनुसार बांस से पूजा करने से लोगों के घर में धन और संतान सुख दोनों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जीवन में आने वाली परेशानियां भी खत्म हो जाती हैं।
छठ पूजा की पौराणिक कथा
दरअसल, बिहार में छठ पूजा को लेकर कई प्रचलित कथाएं और मान्यताएं हैं। कहते हैं कि छठ पूजा का व्रत सबसे पहले माता सीता ने रखा था। प्रचलित कथाओं के अनुसार जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे। तब उन्होंने रावण के वध से यानी ब्रह्म हत्या से मुक्ति पाने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर यज्ञ करने का फैसला किया था। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया।
मुग्दल ऋषि ने आकर माता सीता पर गंगाजल छिड़कर उन्हें पवित्र किया। फिर उन्हें कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन सूर्यदेव की उपासना करने को कहा। तब माता सीता ने ऋषि मुग्दल के आश्रम में रहकर 6 दिनों तक भगवान सूर्य की उपासना की और सप्तमी तिथि के दिन सूर्योदय होने पर अनुष्ठान करके सूर्यदेव का आशीर्वाद लिया। कहते हैं कि तभी से छठ पूजा की परंपरा चली आ रही है।
महाभारत से भी है छठ का गहरा रिश्ता
एक अन्य कथा के मुताबिक, छठ पूजा का गहरा रिश्ता महाभारत से भी है। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। कर्ण कई बार घंटों पानी में खड़े रहकर सूर्यदेव की उपासना करते थे। उन्हें अर्घ्य देते थे। इसके अलावा पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए। तब द्रौपदी ने भी छठ का महाव्रत रखा था। कहते हैं कि इस व्रत को रखने से द्रौपदी की मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिला था।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। के लिए एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।