नई दिल्ली, 05 नवंबर (The News Air): सनातन धर्म भी छठ पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा का शुभारंभ नहाय-खाय से होता है। इस दिन व्रती महिलाएं सात्विक प्रसाद ग्रहण करती हैं। जिसमें प्याज-लहसुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस साल छठ महापर्व की शुरुआत आज (5 नवंबर 2024) से हो गई है। छठ के पहले दिन नहाय खाय की परंपरा होती है। नहाय खाय के साथ शुरू होकर यह पर्व उषा अर्घ्य के साथ समाप्त होता है। छठ पूजा के इन चार दिनों तक व्रत से जुड़े कई नियमों का पालन किया जाता है। पूरे चार दिनों तक छठी मईया और सूर्य देव की उपासना की जाती है।
चार दिनों तक चलने वाले छठ पर्व में अलग-अलग दिनों का विशेष महत्व होता है। और ये चारों दिन धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत खास माने जाते हैं। छठ महापर्व बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। मुख्य अनुष्ठानों में डूबते और उगते सूरज दोनों की उपासना की जाती है। उपवास करने वाले व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य इस महाप्रसाद का सेवन करते हैं।
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय
नहाय खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है। इस दिन श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं। अगर नदी में नहाना संभव न हो ते घर पर भी नहा सकते हैं। इसके बाद व्रती महिलाएं भात, चना दाल और लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं। इन सभी भोजन को पवित्र अग्नि में घी और सेंघा नमक से तैयार किया जाता है। नहाय-खाय में बनने वाला कद्दू-भात का प्रसाद शरीर, मन और आत्मा के शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन शुद्ध और सात्विक भोजन किया जाता है।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना
छठ पूजा के दूसरे दिन को लोहंडा या खरना कहा जाता है। यह 6 नवंबर 2204 को मनाया जाएगा। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन माताएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से आग जलाकर प्रसाद बनया जाता है।
छठ पूजा का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य
7 नवंबर को तीसरे दिन व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह छठ पूजा का सबसे अहम दिन होता है। इसके साथ ही बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ सहित अन्य सामग्री रखकर पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है। आमतौर पर हम उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, लेकिन छठ एकमात्र ऐसा पर्व है। जिसमें डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का मकसद सूर्य देव के साथ उनकी पत्नी प्रत्यूषा को सम्मान देना है।
छठ पूजा का चौथा दिन प्रातःकालीन अर्घ्य
8 नवंबर को चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ ही छठ पर्व का समापन हो जाता है। इस दिन व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं। साथ ही अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य की कामना करते हैं। इसी दिन प्रसाद वितरण किया जाता है।