भारत में इन दिनों डॉक्टर (Doctors) तब से काफी नाराज हैं, जब से उन्हें ब्रांडेड दवाओं के बजाय जेनेरिक दवाएं (Generic Medicines) लिखने के लिए कहा गया है। डॉक्टरों ने इस ‘केमिस्ट राज को बढ़ावा देने वाला’ फैसला बताया है। नाराज डॉक्टरों ने सलाह दी कि इससे बेहतर है कि ‘ब्रांडेड दवाएं बनानी बंद कर देनी चाहिए।’ देश की शीर्ष मेडिकल संस्था, नेशनल मेडिकल कमिशन (NMC) के नए नोटिफिकेशन के अनुसार, डॉक्टरों को ब्रांडेड दवाएं लिखने से बचना चाहिए और ज्यादातर मामलों में जेनेरिक दवाएं लिखनी चाहिए। नोटिफिकेशन में कहा गया है कि बार-बार उल्लंघन करने पर लाइसेंस को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया जाएगा।
NMC के इस नोटिफिकेशन का असल मतलब आप इस उदाहरण से भी समझ सकते हैं कि किसी भी डॉक्टर को मरीज के लिए अपने पर्चे पर ‘क्रोसिन’ ब्रांड न लिख कर केवल जनरल “पैरासिटामोल” लिखना चाहिए।
हालांकि, इस कदम से मेडिकल जगत में चिंता पैदा हो गई है कि नोटिफिकेशन से ब्रांड चुनने की शक्ति केमिस्ट या फार्मेसी दुकानों के हाथों में चली जाएगी।
उदाहरण के लिए, पेरासिटामोल 10 से ज्यादा सबसे ज्यादा बिकने वाले ब्रांड और सैकड़ों जेनेरिक ब्रांड में उपलब्ध है। नए नियम के साथ, मरीज डॉक्टर के नुस्खे (दवा जेनेरिक नामों के साथ) के साथ फार्मेसी आउटलेट में जाएगा और केमिस्ट तय करेगा कि वे कौन सा ब्रांड बेचना चाहते हैं।
नई दिल्ली के होली फैमिली हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. सुमित रे ने News18 को बताया, “ज्यादातर मामलों में, खरीदार या मरीज ये फैसला लेने में सक्षम नहीं होंगे कि वे कौन सा पैक चुनना चाहते हैं। सबसे ज्यादा संभावना है, खरीदार एक केमिस्ट की सलाह लेगा। बदले में, केमिस्ट उस ब्रांड को बेचाग, जिसमें ज्यादा फायदा है या ज्यादा मार्जिन है।”
रे ने कहा, “डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन लिख रहा है और मरीज का स्वास्थ्य और रिकवरी उसकी जिम्मेदारी होनी चाहिए, यहां केमिस्ट को अपनी पसंद या सुविधा के ब्रांड के दवा देने का अंतिम फैसला लेना है। इसलिए, अब डॉक्टर के ऊप जो जिम्मेदारी है, वो केमिस्ट के पास चली जाएगी, जिससे आखिरकार मरीजों को सशक्त बनाने का सरकार का मकसद विफल हो जाता है।”
नाराजगी जताते हुए, कई दूसरे डॉक्टरों ने News18 को बताया कि NMC के कदम को देखते हुए, केंद्र सरकार को ब्रांडेड दवाओं का निर्माण पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए।
नई दिल्ली के PSRI अस्पताल में बेरिएट्रिक और मेटाबोलिक सर्जरी के डायरेक्टर और हेड डॉ. सुमीत शाह का मानना है कि डॉक्टरों को ब्रांड न लिखने के लिए कहने के बजाय, सरकार को फार्मा कंपनियों को दवाओं पर ब्रांड नेम लिखना बंद करने और जेनेरिक बनाने के लिए कहना चाहिए।
उन्होंने कहा “यह समस्या की जड़ पर प्रहार करेगा… वे डॉक्टरों पर जिम्मेदारी क्यों डाल रहे हैं जब नियम में एक साधारण बदलाव पूरे फार्मा उद्योग को बदल सकता है?”
सोशल मीडिया पर भड़क रहे डॉक्टर
कई डॉक्टरों ने सोशल मीडिया पर अपनी चिंता जताई है। कोलकाता के जीडी हॉस्पिटल एंड डायबिटीज इंस्टीट्यूट के एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. एके सिंह इसे “प्रतिगामी कदम” कहते हैं।
सिंह ने माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म X पर एक लंबी पोस्ट में कहा कि अगर सरकार जेनेरिक दवाओं और अपने खुद की जन औषधि दवा दुकानों को बढ़ावा देना चाहती है, तो उसे भारत में बेची जाने वाली सभी दवाओं के ब्रांड नेम हटा देना चाहिए और केवल योग्य फार्मासिस्ट को फार्मेसी दुकानों पर दवाएं वितरित करने की अनुमति देनी चाहिए। .
सिंह की पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए मैक्स हेल्थकेयर में एंडोक्रिनोलॉजी और डायबिटीज के चेयरमैन अंबरीश मित्तल ने एक अहम सवाल उठाया, “अगर कोई लाइसेंस प्राप्त डॉक्टर सरकार की तरफ से अप्रूव, कानूनी रूप से उपलब्ध, ब्रांडेड दवा लिखता है, तो ये अपराध कैसे हो सकता है? इन दवाइयों को और कौन लिखेगा? अगर कोई उन्हें लिख नहीं सकता तो वे बाजार में क्यों हैं?”