असहयोग आंदोलन
चंद्रशेखर आजाद की माता चाहती थी की उनका पुत्र बड़ा हो कर एक महान संस्कृत स्कॉलर (विद्वान) बने। इसी बता को ध्यान में रखते हुए 1921 में उन्होंने आजाद को पढाई के लिए बनारस के काशी विद्यापीठ भेजा था। यह वो समय था जब भारत अंग्रेजों के अत्याचार और ज्यादती से उबल रहा था। उस वक्त Non Cooperation Movement चरम पर था। 15 साल के युवा चंद्रशेखर आजाद भी इस मुहीम से जुड़ गए। तब उन्हें 20 दिसंबर को अरेस्ट कर लिया गया। इस घटना के एक सप्ताह बाद उनको पारसी डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट एम् पी खारेघाट के समक्ष पेश किया गया।
जज ने पूछा नाम क्या है ?
बोला – आज़ाद
पिता का नाम? – स्वतंत्रता
पता? – जेल
जज ने इस निडरता का इनाम 15 कोड़ों के रूप में दिया. और तभी से चंद्रशेखर तिवारी का नाम चन्द्रशेखर आज़ाद हो गया.
महात्मा गांधी से निराशा
भारत में Non Cooperation Movement एक तूफानी लहर की तरह था। इस के कारण अंग्रेजो की कमर टूट चुकी थी। लेकिन उसी दौरान देश के अलग अलग हिस्सों में हिंसा की घटनाएं तेज हुईं, खासकर 1922 की चौरीचौरा की घटना, जहाँ कुछ लोगों ने पूरे पुलिस थाने को फूंक डाला था। यह सब देख गांधीजी बहुत दुखी हुए और उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस लेने का एलान कर दिया। यही कारण था कि चंद्रशेखर आजाद और कई जोशीले युवा क्रांतिकारियों का विश्वास कोंग्रेस और मोहनदास करमचंद गांधी की विचारधारा से इस तरह कट गया कि फिर कभी न जुड़ पाया।
चंद्रशेखर आजाद का नया सफर
गांधीजी के फैसलों से मन भर जाने के बाद आजाद की मुलाकात युवा क्रांतिकारी मन्मथ नाथ गुप्ता से हुई। उन्होंने ही आजाद की मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से करवाई थी। जिन्होंने HRA (Hindustan Republican Association) का गठन किया था। भारत में यह एक बड़े क्रांतिकारी संगठन के तौर पर उभरा। चंद्रशेखर आजाद का मन HRA के साथ जुड़ गया। आनेवाले समय में वह इस संगठन के प्रवृत सदस्य बन गए और उसके लिए धन जुटाने का कार्य करने लगे, ताकि देश की आजादी की लड़ाई को बल मिल सके।
HRA संगठन की फंडिंग और काकोरी काण्ड
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का अधिकतर फंड ब्रिटिश सरकारी प्रॉपर्टीज को लूट कर इकठ्ठा किया जाता था। 1925 में “काकोरी ट्रेन रॉबरी” की प्रख्यात लूट हुई थी। इसमें भी आजाद की अहम् भूमिका रही थी। लाला लाजपतराय की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए 1928 में जॉन पी सौडर्स की हत्या में भी भगत सिंह उनके साथी और चंद्रशेखर आजाद साथ थे। इसके बाद 1929 में वोइसरॉय ऑफ इंडिया की ट्रेन जलाने का प्रयास हुआ था, इसमें भी Desh Bhakt “Chandrshekhar Azad” ने बढ़चढ़ कर भूमिका निभाई थी।
चंद्रशेखर आजाद झाँसी में…
- झाँसी से करीब 15 किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों को उन्होंने अपना ठिकाना बनाया था। यहाँ पर वह नए सदस्यों की भर्ती और उनके अभ्यास का कार्य अंजाम देते थे।
- कहा जाता है कि सतार नदी के किनारे हनुमान मंदिर के समीप उन्होंने एक झोपड़ी बनाई थी। यहाँ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी की संगत में वह लंबे समय तह रहे।
- वहां रह कर उन्होंने पास के गाँव धिमारपुरा के बच्चों को देश की आजादी की मुहिम और अंग्रेजों के अत्याचार के बारे में अवगत कराया। इस तरह उन्हें उस गाँव से अच्छाखासा सहयोग भी मिला था।
- इसके बाद बुंदेलखंड मोटर गराज, सदर बाजार से उन्होंने गाड़ी चलाना सीख लिया। इसी अर्से में सदाशिव राव मलकापुरकर, विश्वनाथ वैशम्पायान और भगवान दास माहौर उनके संपर्क में आए। आगे चल कर यह सब Azad के क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए।
- हम आप को बता दें कि कांग्रेस में भी कुछ ऐसे देशभक्त नेता थे जिन्हें बापू की नीतियां असरकारक नहीं लगती थीं, इस लिए उनका झुकाव चंद्रशेखर के संगठन की तरफ था। खासकर रघुनाथ विनायक धुलेकर और सीताराम भास्कर भागवत आजाद के करीब थे।
चंद्रशेखर आजाद और सरदार भगतसिंह
HRA का निर्माण राम प्रसाद बिस्मिल, जोगेश चंद्र चैटर्जी, सचिन्द्रनाथ सान्याल और सचिन्द्रनाथ बक्शी ने 1923 में किया था। लेकिन 1925 में काकोरी ट्रेन रॉबरी के कारण यह संगठन गोरों की निगाहों में चढ़ गया। इसकी कार्रवाई स्वरूप ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिरी और अशफाकउल्ला खान को मृत्युदंड की सजा हुई। उस समय आजाद, केशब चक्रवर्ती और मुरारीलाल गुप्ता फरार चल रहे थे। HRA दल पूरी तरह से टूट चुका था। फिर शिवा वर्मा और महाबीर सिंह की सहायता से आजाद ने इसमें जान फूंकने की कोशिश की।
HRA का नवीनीकरण HSRA
भगतसिंह और अन्य सहयोगी क्रांतिकारीयों की मदद से चंद्रशेखर आजाद ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोशिएशन का नवीनीकरण करते हुए 1928 में उसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन बना दिया। इस संगठन का मकसद सोशलिस्ट प्रिंसिपल के आधार पर संपूर्ण स्वराज हासिल करना था।
लाला लाजपतराय की मौत का बदला
लाहौर में साइमन कमिशन का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे क्रांतिकारियों पर अंग्रेजों ने नवम्बर 1928 में बेरहमी से लाठियां बरसाई, इसी आंदोलन में सिर पर लाठियां लगने से अग्रणी नेता लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गई। अंग्रेजों को अंदाजा भी नहीं था कि इस अमानवीय कृत्य का बदला भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और उनके सह क्रांतिकारी लेने वाले हैं।
लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए शिवराम राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव थापर की अगुआई में ब्रिटिश पुलिस सुपरिटेंडेंट जेम्स ए. स्कॉट को मारने का प्लान बनाया गया। लेकिन बदकिस्मती से वह ज़ालिम किसी तरह बच गया। यह चूक पहचान की वजह से हुई या शायद उस दिन वह मौके था नहीं। लेकिन उसकी जगह इन क्रांतिकारियों ने जॉन पी. सैंडर्स को मार दिया। वह अंग्रेज तब डिस्ट्रिक्ट पुलिस हेडक्वाटर्स से निकल रहा था, यह घटना 17 दिसंबर 1928 की है।
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु
27 फरवरी, 1931 का वह काला दिन था। उस दिन इलाहाबाद पुलिस सी.आई.डी. हेड नॉट बोवेर को देश के किसी गद्दार से यह टिप मिली की चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में मौजूद है और अपने संगठन के साथी सुखदेव राज से बात कर रहे हैं। तब नॉट बोवेर इलाहाबाद पुलिस का एक बड़ा दस्ता ले कर आजाद को गिरफ्तार करने वहां आ पहुंचे। माना जाता है कि आज़ाद के साथी रहे यशपाल और वीरभद्र तिवारी ने मुखबिरी कर दी थी।
घटना के समय पुलिस ने पार्क को सभी तरफ से घेर लिया। उसके बाद डी.एस.पी. विश्वेश्वर सिंह कुछ सिपाहियों के साथ पार्क में आगे बढ़े। वह सभी राइफलों से लैस थे। कुछ ही देर में आजाद को भनक लग गई। दोनों तरफ से गोलीबारी होने लगी।
एक अकेले चंद्रशेखर आजाद ने 3 पुलिसकर्मियों को मौत कहे घाट उतार दिया। लेकिन एक पिस्टल के सहारे वह ज्यादा देर टिक नहीं सके, उन्होंने मौके की नजाकत को देखते हुए अपनी जान दांव पर लगा कर सुखदेव राज को वहां से भाग जाने में मदद की। कवर फायर मिल जाने पर सुखदेव राज वहां से निकल भागने में सफल हुए। लेकिन तब तक आजाद बुरी तरह घायल हो गए।
घायल चंद्रशेखर आजाद यह बात समझ चुके थे की वह उस जगह से भाग नहीं सकेंगे। इसके अलावा उन्होंने प्रण लिया था कि वह कभी बंदी नहीं बनेंगे। उनका कहना था-
“दुश्मन की गोलियों का सामना हम करेंगे आज़ाद ही रहे हैं आज़ाद ही रहेंगे….”
इसीलिए उन्होंने पहले ही एक गोली अलग से रख ली थी। जब तक उनसे हो सका, उन्होंने पेड़ की आड़ लेकर अंग्रेजों से लोहा लिया। लेकिन अंत में वह समय आ गया जहाँ उनके पास केवल वही एक गोली बची। उन्होंने तब देश की मिट्टी को अंतिम बार नमन किया और उस आखरी बुलेट से अपना सिर उड़ा दिया। इस तरह भारत की मिट्टी में जन्में इस सपूत ने जन्मभूमि के प्रति अपना फर्ज़ निभाते हुए मात्र 24 साल की उम्र में अपने प्राण न्योछावर कर दिए.
चंद्रशेखर आजाद से जुड़े तथ्य | Facts about Chandrashekhar Azad in Hindi
- जीते जी अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले चंद्रशेखर “आजाद” को ब्रिटिश सरकार कभी अरेस्ट नहीं कर पाई।
- लोगों को बताए बिना चंद्रेशेखर आजाद के शव को “चोरी छिपे” रसूलाबाद रवाना कर दिया गया।
- Azad की मौत से गुस्साए लोगों ने अल्फ्रेड पार्क का घेराव किया और ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध नारेबाजी की।
- आजाद की मृत्य से पहले नेहरू जी की मुलाकात उनसे हुई थी। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि आजाद ने अपने तरीकों की निरर्थकता देखी, लेकिन अहिंसा से आजादी मिल सकती है इस बात पर भी वह सहमत नहीं थे।
- भारत माता के सपूत “आजाद” की जीवनी दर्शाती कई किताबें लिखी गई है, उनकी बायोग्राफी पर कई फिल्म्स भी बनी हैं। जैसे की – रंग दे बसंती, द् लेजेंड जॉफ भगत सिंह, शहीद, शहीद ए आज़म Etc… इन सभी कृति में उनकी लाइफ स्टोरी बताई गई है।
FAQs ( Chandrashekhar Azad Biography in Hindi )
Q – चंद्रशेखर आजाद जयंती देश में कब मनाई जाती है?
A – प्रति वर्ष 23 जुलाई के दिन चंद्रशेखर आजाद जयंती मनाई जाती है।
Q चंद्रशेखर आजाद किस क्रांतिकारी संगठन से जुड़े हुए थे।
A वह HRA (हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन) से जुड़े हुए थे।
Q HRA संगठन का नवीनीकरण नाम क्या है?
A HRA को बाद में HSRA बना दिया गया। जिसका पूरा नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन था।
Q लाला लाजपतराय की मृत्यु किस आंदोलन में हुई थी।
A वह लाहौर में अपने साथियों के संग साइमन कमीशन का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। तभी लाठीचार्ज हुआ जिसमें गंभीर रूप से घायल होने पर उनकी मौत हुई।
Q चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु किस पार्क में हुई थी ?
A उनकी मौत अल्फ्रेड पार्क में हुई, आजीवन “आजाद” रहने के प्रण के लिए उन्होंने आखरी गोली खुद को मार ली थी।
Q चंद्रशेखर आजाद के बारे में मुखबिरी करने का आरोप किस पर लगा था?
A यह घटिया काम करने का आरोप वीरभद्र तिवारी और यशपाल पर लगा था।
Q गांधीजी की विचारधारा से चंद्रशेखर आजाद सहमत क्यों नहीं थे।
A उन्हें नहीं लगता था कि अहिंसा की राह पर आंदोलन आगे बढ़ाने से अंग्रेज देश छोड़ेंगे। इसके अलावा वह असहयोग आंदोलन वापस ले लेने के पक्ष में भी नहीं थे।
Q HRA संगठन की स्थापना कब हुई और नवीनीकरण कब हुआ था?
A HRA की स्थापना 1923 में हुई और इसका नवीनीकरण (HSRA) वर्ष 1928 में किया गया।
Q चंद्रशेखर को “आजाद” (The Free) की उपमा देने वाले पारसी डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट का नाम क्या था?
A उनका नाम एम् पी खारेघाट था।
Q चंद्रशेखर आजाद का जीवनकाल कितना रहा?
A केवल 24 वर्ष की अल्प आयु में उन्होंने अपना नाम देश के शहीदों में दर्ज करा लिया। वह 23 जुलाई, 1906 को जन्मे और 27 फरवरी, 1931 को शहीद हो गए।
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चंद्रशेखर आजाद / Chandrashekhar Azad जयंती के अवसर पर प्रस्तुत यह लेख ( Chandrashekhar Azad Short Essay In Hindi ) कैसा लगा, यह कमेन्ट कर के ज़रूर बताइयेगा|
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