दि न्यूज एयर, 5 जुलाई (The News Air)
बाँस उद्योग को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए पूरे देश में कई पहल की जा रही है। इसी कड़ी में इस बार खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने मरुस्थलीकरण को कम करने और आजीविका प्रदान करने के लिए एक बहुउद्देशीय ग्रामीण उद्योग सहायता शुरू की है।
एक स्थान पर एक दिन में सर्वाधिक बाँस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड- राजस्थान के उदयपुर ज़िले के निकलमांडावा के आदिवासी गांव में शुरू की जाने वाली “सूखे भू-क्षेत्र पर बाँस मरु-उद्यान” (बोल्ड) नाम की अनूठी परियोजना, देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है। इसके लिए विशेष रूप से असम से बाँस की विशेष प्रजातियां लाई गई हैं, जिसमें बंबुसा टुल्डा और बंबुसा पॉलीमोर्फा के 5,000 पौधों को ग्राम पंचायत की 25 बीघा (लगभग 16 एकड़) ख़ाली शुष्क भूमि पर लगाया गया है। इस तरह केवीआईसी ने एक ही स्थान पर एक ही दिन में सर्वाधिक संख्या में बाँस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है।
खादी बाँस महोत्सव के तहत 15,000 बाँस के पौधे लगाने का लक्ष्य- परियोजना बोल्ड, जो शुष्क व अर्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों में बाँस-आधारित ग्रीन बेल्ट बनाने का प्रयास करती है, देश में भूमि के कटाव को कम करने व मरुस्थलीकरण को रोकने की दिशा में प्रयास है। यह आयोजन खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित खादी बाँस महोत्सव का हिस्सा है। खादी ग्रामोद्योग प्राधिकरण इस साल अगस्त तक गुजरात के अहमदाबाद ज़िले के धोलेरा गांव और लेह-लद्दाख में भी इसी तरह की परियोजना शुरू करने वाला है। 21 अगस्त से पहले कुल 15,000 बाँस के पौधे लगाए जाएंगे।
बाँस पौधरोपण कार्यक्रम से स्वरोज़गार को बढ़ावा- खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा, “इन तीन स्थानों पर बाँस उगाने से देश की भूमि क्षरण दर को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही सत्त विकास और खाद्य सुरक्षा भी मिलेगी। वहीं सांसद अर्जुन लाल मीणा ने कहा कि उदयपुर में बाँस पौधरोपण कार्यक्रम से इस क्षेत्र में स्वरोज़गार को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की परियोजनाओं से क्षेत्र में बड़ी संख्या में महिलाओं और बेरोज़गार युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों से जोड़कर लाभ होगा।
बाँस की खासियत- गौरतलब हो कि केवीआईसी ने ग्रीन बेल्ट विकसित करने के लिए बाँस को चुना है। बाँस बहुत तेज़ी से बढ़ते हैं और लगभग तीन साल की अवधि में उन्हें काटा जा सकता है। इन्हें ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत भी नहीं पड़ती है और आजीविका की दृष्टि से भी फायदेमन्द है। बाँस की बोतल, बाँस के कप-प्लेट, चम्मच, कांटा, थाली, स्ट्रॉ जैसे उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। बाँस को पानी के संरक्षण और भूमि की सतह से पानी के वाष्पीकरण को कम करने के लिए भी जाना जाता है, जो शुष्क और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण विशेषता है।
राष्ट्रीय बंबू मिशन- वहीं बाँस उद्योग को बूस्ट देने के लिए सरकार राष्ट्रीय बंबू मिशन चला रही है। इस योजना के तहत सरकार किसानों को एक बाँस का पौधा लगाने पर 120 रुपये का अनुदान प्रदान करेगी, अगर कोई व्यक्ति इसका बिजनेस करना चाहता है, तो सरकार के द्वारा सब्सिडी के तौर पर अनुदान दिए जाने की व्यवस्था भी की गई है। बता दें कि राष्ट्रीय बाँस मिशन के अनुसार देश में इस समय 136 बाँस की प्रजातियों की खेती की जा रही है, जिनमें से 125 स्वदेशी और 11 विदेशी प्रजातियां हैं।