Quota within Quota: एक तरफ देश के संविधान और न्याय पालिका पर भरोसा करने का दावा करने वाले वर्ग के संगठन और नेता अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निशाना बनाए हुए हैं. ये फैसला आरक्षण से जुड़ा है, जिसके खिलाफ अब दलित संगठन और दलित नेता एकजुट हो रहे हैं. ये संगठन और नेता सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भेदभावपूर्ण बता रहे हैं. इतना ही नहीं कुछ दलित नेता और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर इस फैसले के खिलाफ मुहीम भी छेड़ दी है और 21 अगस्त को भारत बंद का आवाहन किया है. इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘X’ #21_अगस्त_भारत_बंद के नाम से अभियान चलाया जा रहा है. इसे ज्यादा से ज्यादा पोस्ट कर ट्रेंड कराने की कवायद की जा रही है.
बीते गुरुवार को दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी में उपवर्ग बनाने का अधिकार राज्यों को दे दिया था. इसके अलावा अदालत ने एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने का आदेश भी दिया था.
भारत बंद के पीछे क्या है तर्क
हमारा बहुजन समाज हमेशा से ही एकजुटता का प्रतीक रहा है. हमें इन विभाजनकारी तत्वों के प्रयासों को विफल करना होगा. सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही फर्जी जानकारियों और नफरत भरे संदेशों से बचें. इनकी सच्चाई जानें और अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करें. यह समय है कि हम सभी मिलकर इस मनुवादी विभाजनकारी मानसिकता का मुकाबला करें और अपने समाज की एकता और अखंडता को बनाए रखें. संविधान और हमारे अधिकारों की रक्षा के लिए हमें एकजुट होकर आवाज उठानी होगी. हम सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे समाज में कोई भी व्यक्ति विभाजनकारी नीतियों और फर्जी प्रचार का शिकार न बने। हमें सावधान रहना होगा और समाज में शांति और एकता बनाए रखने के लिए संगठित रहना होगा।
जय भीम। जय बिरसा। जय संविधान।
-हंसराज मीणा
(सामाजिक कार्यकर्ता)
#SaveReservation
#21_अगस्त_भारत_बंद
#21_अगस्त_भारत_बंद_रहेगा.”
बनवारी लाल बैरवा जो भीम आर्मी के सदस्य हैं ने ‘X’ पर पोस्ट करते हुए लिखा कि #21_अगस्त_भारत_बन्द, तैयारी कर लो इस बार मैदान में दुगनी ताकत से उतरेंगे. वक्त से छीन कर लाएंगे अपना हक फिर से. वो दौर ही क्या जो हमारा ना हुआ. एकता बनाये रखो साथियों अगर बिखरोगे तो टूट जाओगे. हौसला और हिम्मत बनाए रखो. कमजोरों को अक्सर दुनिया गुलाम बना लेती है.”
2018 में भी दलित संगठनों ने किया था भारत बंद
साल 2018 में भी दलित संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद का आयोजन किया था, जो काफी सफल रहा था. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में अनुसूचित जाति/ जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 में किए कुछ परिवर्तन का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ इस बंद का आयोजन किया गया था. इस बंद में कई जगह हिंसक घटनाएँ भी सामने आयीं थी. जिसके बाद सरकार ने संविधान संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट की ओर से किए गए बदलावों को निष्प्रभावी कर दिया था.