Indian Railways Catering News – भारतीय रेलवे ने अपनी खानपान व्यवस्था (Catering System) में एक ऐतिहासिक और बड़ा बदलाव किया है, जिसका सीधा असर करोड़ों यात्रियों की सेहत और जेब पर पड़ने वाला है। रेलवे ने धीरे-धीरे ट्रेनों और स्टेशनों पर परोसे जाने वाले भोजन की सीधी जिम्मेदारी से खुद को अलग करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अब आईआरसीटीस (IRCTC) ने अपने पुराने ‘बेस किचन’ मॉडल को बंद कर ‘क्लस्टर किचन’ और ‘क्लाउड किचन’ की नई व्यवस्था लागू कर दी है, जहां खाने की गुणवत्ता की जिम्मेदारी रेलवे की बजाय अब सीधे वेंडर की होगी।
बेस किचन हुए बंद, अब ‘क्लस्टर किचन’ का राज
रेलवे ने खानपान सुधार के नाम पर अपनी पारंपरिक ‘बेस किचन’ (Base Kitchen) व्यवस्था पर ताला लगा दिया है। अब इसकी जगह ‘क्लस्टर किचन’ (Cluster Kitchen) ने ले ली है। इस बदलाव को समझना हर यात्री के लिए जरूरी है। दरअसल, बेस किचन एक सेंट्रलाइज्ड जगह होती थी जहां बड़े स्तर पर खाना (जैसे सब्जियां काटना, मसाला तैयार करना) बनता था। लेकिन अब क्लस्टर किचन छोटे-छोटे और अलग-अलग इलाकों में बनाए जा रहे हैं। ये किचन स्टेशनों के करीब होंगे, जहां सिर्फ ‘फाइनल कुकिंग’ होगी। इसका मकसद है कि ऑर्डर आते ही खाना गर्म करके तुरंत पैक किया जाए और यात्रियों तक ताज़ा पहुंचाया जाए।
क्लाउड किचन: विकल्प तो मिला, पर सुरक्षा की गारंटी नहीं
यात्रियों को अब ‘क्लाउड किचन’ (Cloud Kitchen) के जरिए भी खाना ऑर्डर करने का विकल्प दिया गया है। यात्री ‘रेल वन’ (Rail One) ऐप या अन्य माध्यमों से बाजार से मनपसंद खाना मंगवा सकते हैं। लेकिन खबरदार! रेलवे ने साफ कर दिया है कि इस खाने की क्वालिटी की जिम्मेदारी अब रेलवे की नहीं होगी। यानी अगर क्लाउड किचन से मंगवाए गए खाने में कोई गड़बड़ी निकलती है, तो आप रेलवे को दोष नहीं दे पाएंगे। यह पूरी व्यवस्था अब बाजार के हवाले कर दी गई है।
विश्लेषण: जिम्मेदारी तय हुई या पल्ला झाड़ा? (Expert Analysis)
रेलवे का यह कदम ‘निजीकरण’ (Privatization) की दिशा में एक और बड़ा संकेत है। अधिकारियों का तर्क है कि इससे जवाबदेही (Accountability) तय होगी। पुरानी व्यवस्था में खराब खाने की शिकायत पर रेलवे और ठेकेदार एक-दूसरे पर दोष मढ़ते थे। अब चूंकि एक ही कंपनी सामान खरीदेगी, बनाएगी और परोसेगी, तो शिकायत आने पर वह बच नहीं पाएगी। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि रेलवे, जो एक सरकारी संस्था है, यात्रियों की स्वास्थ्य सुरक्षा से अपने हाथ पीछे खींच रही है। अगर क्लाउड किचन का खाना खराब निकलता है, तो एक आम यात्री चलती ट्रेन में किससे लड़ पाएगा? यह सुविधा कम और जोखिम ज्यादा लग रहा है।
हाइजीन पर रहेगी नजर: रेलवे का दावा
विवादों के बीच रेलवे प्रवक्ता दिलीप कुमार ने सफाई दी है कि जो कंपनियां खाना परोसने का काम करेंगी, वही क्लस्टर किचन में खाना तैयार करेंगी। रेलवे का दावा है कि उनके अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि खाना हाइजीनिक तरीके से बने और इसकी देखरेख रेलवे के लोग करेंगे। हालांकि, क्लाउड किचन के मामले में यह निगरानी कितनी प्रभावी होगी, यह एक बड़ा सवाल है।
जानें पूरा मामला (Background)
अब तक रेलवे में खाने की व्यवस्था इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (IRCTC) संभालती थी। IRCTC बाजार से कच्चा माल खरीदती थी और बेस किचन में खाना तैयार करवाती थी, जिसे परोसने का जिम्मा निजी ठेकेदारों का होता था। इस लंबी चेन के कारण खाने की क्वालिटी गिरने पर जिम्मेदारी तय करना मुश्किल होता था। इसी “ब्लेम गेम” को खत्म करने और डिलीवरी फास्ट करने के लिए अब क्लस्टर और क्लाउड किचन का मॉडल लाया गया है।
मुख्य बातें (Key Points)
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IRCTC ने बेस किचन बंद कर Cluster Kitchens की शुरुआत की है।
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क्लाउड किचन से खाना मंगवाने पर Quality की जिम्मेदारी रेलवे की नहीं होगी।
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क्लस्टर किचन छोटे और लोकल होंगे ताकि Delivery तेज और खाना ताज़ा मिले।
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रेलवे का उद्देश्य खराब खाने की शिकायतों पर Accountability तय करना है।
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यात्री अब ऐप के जरिए बाहरी बाजार से भी खाना ट्रेन में मंगवा सकेंगे।






