Betel Leaf Health Benefits: क्या आप जानते हैं कि पान खाना सिर्फ एक शौक या मुंह का स्वाद बदलने का जरिया नहीं है, बल्कि यह एक गहरी वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है? आयुर्वेद के अनुसार, अगर पान को सही सामग्री के साथ खाया जाए, तो यह शरीर में कैल्शियम की कमी को दूर कर बुढ़ापे तक आपको तंदुरुस्त रख सकता है।
भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक पान खाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। लेकिन आज हम आपको पान खाने का वह सही और औषधीय तरीका बताने जा रहे हैं, जिसे अपनाकर आप वात रोगों और हड्डियों के दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकते हैं।
‘देसी पान ही क्यों है फायदेमंद?’
आयुर्वेद के महान ऋषि वाग्भट के अनुसार, हमेशा गहरे हरे रंग का यानी ‘देसी पान’ ही खाना चाहिए। हल्का हरे रंग का या विलायती पान सेहत के लिए उतना फायदेमंद नहीं होता।
गहरे रंग की वस्तुओं में सूर्य की ऊर्जा और विशेष एंजाइम होते हैं। विज्ञान भी मानता है कि गहरे रंग की चीजें जैसे बैंगन, जामुन और टमाटर एंटी-कैंसरस (कैंसर रोधी) और एंटी-डायबिटिक गुणों से भरपूर होती हैं। इसलिए, कसैल स्वाद वाला गहरा हरा पान ही सेहत के लिए सर्वोत्तम है।
‘पान में क्या मिलाएं और क्या नहीं’
पान को औषधि बनाने के लिए उसमें सही चीजों का पड़ना बहुत जरूरी है। एक पान में गेहूं के दाने के बराबर (लगभग 1 ग्राम) चूना लगाना चाहिए। इसके साथ सौंफ, थोड़ी सी अजवाइन, लौंग, बड़ी इलायची और गुलाब का गुलकंद मिलाना चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पान में कभी भी Supari (सुपारी) और Kattha (कत्था) नहीं मिलाना चाहिए। कत्था केवल स्वाद के लिए होता है, लेकिन स्वास्थ्य के लिए चूना ही अमृत है। सुपारी और कत्था छोड़कर खाया गया पान ही शरीर को लाभ पहुंचाता है।
‘चूना: वात रोगों का सबसे बड़ा दुश्मन’
खाना खाने के बाद चूना लगा हुआ पान खाने वाले लोग जिंदगी भर ‘वात’ के रोगी नहीं होते। चूना दुनिया की सबसे बेहतरीन वातनाशक औषधि है। अगर आपके घुटने दुखते हैं, कमर में दर्द है या कंधा जकड़ गया है, तो चूना इन सबका रामबाण इलाज है।
चूना शरीर में कैल्शियम की कमी को पूरा करता है। आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि कैल्शियम एक ऐसा सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrient) है, जिसकी मौजूदगी में ही शरीर में बाकी विटामिन (जैसे विटामिन C, A, B, D, K) और प्रोटीन काम करते हैं। अगर शरीर में कैल्शियम नहीं है, तो बाकी पोषक तत्व भी अपना असर नहीं दिखा पाएंगे।
’45 की उम्र के बाद क्यों जरूरी है चूना?’
आयुर्वेद और विज्ञान दोनों का मानना है कि 40 से 45 वर्ष की उम्र तक हमारा शरीर भोजन (दूध, दही, फल, केला आदि) से नेचुरल कैल्शियम आसानी से पचा लेता है। लेकिन 45 की उम्र पार करते ही शरीर की पाचन क्षमता और हार्मोनल संतुलन बदलने लगता है।
खासकर महिलाओं में 45-50 की उम्र के बाद जब मासिक धर्म (Menopause) बंद होता है, तो कैल्शियम को पचाने वाला हार्मोन बनना कम हो जाता है। यही कारण है कि इस उम्र के बाद हड्डियों में दर्द और कमजोरी आने लगती है। इसलिए, 45 साल के बाद सभी पुरुषों और विशेषकर महिलाओं को अलग से कैल्शियम लेने की जरूरत होती है, और पान में लगा चूना इसका सबसे सस्ता और प्रभावी स्रोत है।
जानें पूरा मामला (Background)
यह जानकारी आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसका जिक्र ऋषि वाग्भट के ग्रंथों में मिलता है। आधुनिक खान-पान में हम अक्सर सुपारी और तंबाकू वाला पान खाते हैं जो हानिकारक है, लेकिन औषधीय मसालों और चूने वाला पान भारतीय परंपरा में स्वास्थ्य रक्षक माना गया है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और पाचन को दुरुस्त रखता है।
मुख्य बातें (Key Points)
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हमेशा गहरे हरे रंग का (देसी) पान ही खाएं, यह एंटी-कैंसरस गुणों से भरपूर होता है।
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पान में 1 ग्राम चूना, सौंफ, अजवाइन, लौंग और गुलकंद मिलाकर खाएं।
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पान में सुपारी और कत्था का प्रयोग बिल्कुल न करें।
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45 वर्ष की उम्र के बाद शरीर में कैल्शियम की पूर्ति के लिए चूना वाला पान बेहद जरूरी है।
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शरीर में कैल्शियम की कमी होने पर 50 से ज्यादा बीमारियां घेर सकती हैं।






