West Bengal Voter List SIR News पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की आहट के बीच चुनाव आयोग ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने सूबे की सियासी जमीन को हिलाकर रख दिया है। आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया के दौरान करीब 58 लाख से अधिक लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काट दिए हैं। आयोग की इस बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राज्य में आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में वोटरों का कम होना सीधे चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
आंकड़ों का खेल: कहां गए 58 लाख वोटर?
चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पहले चरण में पश्चिम बंगाल में कुल मतदाताओं की संख्या 7.67 करोड़ थी, जो अब घटकर 7.08 करोड़ रह गई है। आयोग ने एसआईआर (SIR) प्रक्रिया के बाद कुल 58 लाख 20 हजार 898 वोटरों के नाम लिस्ट से हटा दिए हैं।
अचानक इतने बड़े पैमाने पर नामों के गायब होने से आम जनता और राजनीतिक दलों में खलबली मच गई है। हालांकि, यह अभी अंतिम सूची नहीं है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि फाइनल वोटर लिस्ट अगले साल 14 फरवरी 2026 को जारी की जाएगी, जिसमें कुछ बदलाव संभव हैं।
क्यों हटाए गए लाखों नाम?
चुनाव आयोग ने इन नामों को हटाने के पीछे ठोस तकनीकी कारण बताए हैं। आयोग के अनुसार, जिन लोगों के नाम काटे गए हैं उनमें मुख्य रूप से वे लोग शामिल हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है, जो स्थाई रूप से पलायन कर चुके हैं, या जिनके नाम दो जगहों पर (डुप्लीकेशन) थे। इसके अलावा, जिन्होंने गणना फॉर्म जमा नहीं किया, उन पर भी यह गाज गिरी है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में 92.4% एनुमिशन फॉर्म को डिजिटलाइज किया जा चुका है, जिसे आयोग अपनी एक बड़ी उपलब्धि मान रहा है।
हिंदी भाषियों पर सबसे ज्यादा असर?
इस खबर का सबसे संवेदनशील पहलू यह है कि रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिन लोगों के नाम काटे गए हैं, उनमें बड़ी संख्या हिंदी भाषी लोगों की है। एसआईआर (SIR) के दौरान हिंदी बोलने वाले वोटरों के नाम लिस्ट से ज्यादा गायब हुए हैं, जबकि मुस्लिम बहुल इलाकों में अपेक्षाकृत कम नाम काटे गए हैं। यह मुद्दा बंगाल की राजनीति में ‘बंगाली बनाम बाहरी’ की आग को और हवा दे सकता है।
टीएमसी का पलटवार: ‘बीजेपी का झूठ बेनकाब’
वोटर लिस्ट में इस कटौती को लेकर टीएमसी आक्रामक हो गई है। टीएमसी के महासचिव और सांसद अभिषेक बनर्जी ने इसे बीजेपी के प्रोपेगेंडा की हार बताया है। उन्होंने कहा कि बीजेपी लगातार दावा करती थी कि बंगाल में 1 करोड़ रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए रहते हैं, लेकिन चुनाव आयोग के आंकड़ों ने इस झूठ को बेनकाब कर दिया है।
बनर्जी ने आयोग के हवाले से दावा किया कि राज्य में केवल करीब 1.83 लाख फर्जी वोटर ही पाए गए हैं। उन्होंने बीजेपी से मांग की है कि वह बंगाल को घुसपैठियों का अड्डा कहकर बदनाम करने के लिए जनता से माफी मांगे। वहीं, टीएमसी प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने कहा कि ड्राफ्ट लिस्ट से साफ हो गया है कि बंगाल में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग रहते हैं, न कि बांग्लादेशी घुसपैठिए।
वरिष्ठ संपादक का विश्लेषण: चुनावी गणित पर गहरी चोट
एक वरिष्ठ पत्रकार के नजरिए से देखें तो 58 लाख वोटरों का नाम कटना कोई सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है। यह आंकड़ा कई छोटे राज्यों की कुल आबादी से भी ज्यादा है। अगर रिपोर्ट्स सही हैं कि हिंदी भाषियों के नाम ज्यादा कटे हैं, तो यह बीजेपी के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि हिंदी भाषी वोटर पारंपरिक रूप से बीजेपी का कोर वोट बैंक माने जाते हैं। दूसरी तरफ, टीएमसी इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करेगी कि ‘घुसपैठिए’ का नैरेटिव झूठा था। यह कार्रवाई 2026 के चुनाव में सीटों के समीकरण को पूरी तरह बदल सकती है।
जानें पूरा मामला
पश्चिम बंगाल में ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (SIR) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए मतदाता सूची को शुद्ध किया जाता है। इस बार की प्रक्रिया में 31 लाख 38 हजार 374 ऐसे वोटर भी सामने आए हैं, जिनका डेटा 2002 की वोटर लिस्ट से मेल नहीं खा रहा है। इन संदिग्ध मतदाताओं को अपनी नागरिकता और पहचान साबित करने के लिए सुनवाई के लिए बुलाया जाएगा। यह सुनवाई 7 फरवरी 2026 तक चलेगी।
मुख्य बातें (Key Points)
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बड़ी कटौती: बंगाल की वोटर लिस्ट से 58,20,898 लोगों के नाम हटा दिए गए हैं।
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कारण: मृत्यु, पलायन, डुप्लीकेशन और फॉर्म जमा न करना मुख्य वजहें रहीं।
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सियासी विवाद: रिपोर्ट्स का दावा है कि हिंदी भाषियों के नाम ज्यादा कटे हैं, जबकि मुस्लिम इलाकों में कम।
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अंतिम तारीख: फाइनल वोटर लिस्ट 14 फरवरी 2026 को जारी होगी।






