Bangladesh Violence – बांग्लादेश एक बार फिर खून-खराबे की आग में जल रहा है। जुलाई 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से ढाका की गलियां शांत नहीं हुई हैं। अब उभरते छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की 12 दिसंबर को ढाका की सड़क पर दो नकाबपोशों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इस हत्या से भड़की भीड़ ने दलित हिंदू युवक दीपपू चंद्र दास को जिंदा जला डाला। पूरा बांग्लादेश आज अराजकता के गर्त में डूबता जा रहा है।
छात्र नेता की हत्या ने लगाई आग
32 वर्षीय शरीफ उस्मान हादी बांग्लादेश की राजनीति में उभरता हुआ चेहरा थे। उनकी पार्टी “इंकलाब मंच” के जरिए वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने की तैयारी में थे।
हादी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की वकालत करते थे और चुनाव कराने के पक्ष में खुलकर बोलते थे।
हत्या से पहले उन्होंने खुद कहा था कि उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। 12 दिसंबर को बीच सड़क पर दो नकाबपोशों ने उनके सिर में गोली मार दी।
सिंगापुर में इलाज के बावजूद नहीं बची जान
हादी को पहले ढाका मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। हालत में सुधार न होने पर उन्हें सिंगापुर के जनरल अस्पताल भेजा गया।
वहां एक हफ्ते तक लाइफ सपोर्ट पर रखा गया। लेकिन ब्रेन स्टेम डैमेज के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका।
उनकी मौत की खबर ने बांग्लादेश में आग लगा दी।
दीपपू चंद्र दास की दर्दनाक हत्या
हादी की हत्या से गुस्साई भीड़ ने एक दलित हिंदू युवक दीपपू चंद्र दास को निशाना बनाया। उस पर ईशनिंदा के आरोप लगाए गए और भीड़ ने उसे जिंदा जला दिया।
यह घटना बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की बिगड़ती स्थिति का भयावह उदाहरण है।
भारत में इस हत्या को लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर इसकी निंदा की और भारत सरकार से कहा कि बांग्लादेश सरकार के साथ इस मुद्दे को मजबूती से उठाया जाए।
भारतीय मिशनों पर भीड़ का हमला
17 दिसंबर को हादी की हत्या के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान ढाका, चटगांव और राजशाही में भारतीय मिशनों पर भीड़ ने हमला किया।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने तुरंत बांग्लादेश के उच्चायुक्त को बुलाकर कड़ा विरोध जताया।
हादी की मौत में भारत की भूमिका को लेकर जो फेक प्रोपेगेंडा चलाया जा रहा था, उसकी भारत ने कड़ी निंदा की। बांग्लादेश के सोशल मीडिया पर अफवाहें उड़ाई जा रहीं थीं कि हादी के हत्यारे भारत भाग गए हैं।
19 दिसंबर की रात: अखबारों के दफ्तर जलाए
19 दिसंबर की रात ढाका में हिंसा चरम पर पहुंच गई। प्रोथोम आलो और डेली स्टार जैसे बड़े अखबारों के दफ्तरों में भीड़ घुस गई।
प्रोथोम आलो के दफ्तर में “दिल्ली या ढाका” के नारे लगाए गए। भीड़ को लगता था कि ये अखबार भारत समर्थक और शेख हसीना के पक्षधर हैं।
देर रात 11 बजे कई सौ लोग प्रोथोम आलो के दफ्तर में घुसे। कई फ्लोर पर तोड़फोड़ की गई। 150 कंप्यूटर और नकदी लूटे जाने की खबरें आईं। इमारत में आग लगा दी गई।
27 साल में पहली बार प्रोथोम आलो अखबार नहीं छपा। वेबसाइट भी बंद रही।
पत्रकार की दर्दनाक गुहार: “मैं सांस नहीं ले पा रही”
डेली स्टार के दफ्तर को भी भीड़ ने आग के हवाले कर दिया। उस समय करीब 30 पत्रकार इमारत के अंदर फंसे हुए थे।
बाहर से मदद को भी दफ्तर तक पहुंचने से रोका जा रहा था।
पत्रकार जाइमा इस्लाम ने अंदर से फेसबुक पर लिखा: “मैं सांस नहीं ले पा रही हूं। बहुत ज्यादा धुआं है। मैं अंदर हूं। तुम मुझे मार रहे हो।”
डेली स्टार की इमारत के बाहर बांग्लादेश एडिटर्स काउंसिल के अध्यक्ष और न्यू एज अखबार के संपादक नूरुल कबीर के साथ भी मारपीट हुई।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है।
भारत के डिप्टी एंबेसडर के घर पर भीड़
19 तारीख की रात ही ढाका में भारत के डिप्टी एंबेसडर के घर के बाहर कई सौ लोगों की भीड़ जमा हो गई।
स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़कर भीड़ को तितर-बितर किया।
यूनुस सरकार की विफलता साफ दिख रही है
मोहम्मद यूनुस कहते तो हैं कि अल्पसंख्यकों की रक्षा हो रही है और जांच जारी है। लेकिन डेढ़ साल से हालात काबू में नहीं आ रहे।
चुनाव का वादा करने वाले यूनुस सत्ता का सुख भोग रहे हैं जबकि ढाका से लेकर गांवों तक हिंसा फैल चुकी है।
नेशनल सिटीजन पार्टी के नेताओं ने धमकी भरा बयान दिया कि अगर भारत ने बांग्लादेश में अस्थिरता फैलाने की कोशिश की तो बांग्लादेश पूर्वोत्तर के इलाकों पर कब्जा कर लेगा।
आमतौर पर ऐसे बयानों को खोखले नारे माना जाता है लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए दिल्ली ने इन्हें गंभीरता से लिया है।
शेख हसीना को लेकर भारत-बांग्लादेश तनाव
14 दिसंबर को बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका में भारत के राजदूत को बुलाया। भारत में रह रही शेख हसीना और अन्य आवामी लीग नेताओं के बयानों की निंदा की गई।
बांग्लादेश ने मांग की है कि हसीना को भारत सौंप दे।
भारत ने एक रूटीन बयान जारी किया है। लेकिन इसे लेकर बांग्लादेश में गुस्सा है।
शेख हसीना को तानाशाह माना जाता है। उनके दौर में भ्रष्टाचार चरम पर था और विपक्ष का दमन बेरहमी से किया गया। इसी वजह से वहां की जनता में उनके प्रति भयंकर आक्रोश है।
जमात-ए-इस्लामी को मिल रही है बढ़त
आवामी लीग पर प्रतिबंध लग चुका है। 1971 में पाकिस्तान का समर्थन करने वाली जमात-ए-इस्लामी को बढ़त मिलने की बात कही जा रही है।
सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश जमात में अपना भविष्य देखने लगा है?
अगर इस्लामिक ताकतों का वर्चस्व बन गया तो बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन का यह आखिरी दौर होगा। उसके बाद उनकी भी आवाजें यही शक्तियां कुचल देंगी जो आज नई व्यवस्था का सपना दिखा रही हैं।
पाकिस्तान और चीन उठा रहे फायदा
बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है उससे पाकिस्तान को मौका मिल रहा है। चीन भी सक्रिय है।
बांग्लादेश और पाकिस्तान के सैनिक अधिकारियों के बीच वीजा फ्री समझौता हुआ है।
संभव है कि भारत के विरोध में इस तरह से आंधी खड़ी की जा रही हो ताकि 1971 का शानदार इतिहास पलट दिया जाए।
गोदी मीडिया बन रहा बांग्लादेश प्रोपेगेंडा का हथियार
वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी हैदर का कहना है कि भारत का मीडिया बांग्लादेश के प्रोपेगेंडा का शिकार हो रहा है। उनके प्रोपेगेंडा के काम आ रहा है।
सरकार भले ही संयम बरत रही है लेकिन बांग्लादेश में गोदी मीडिया को भारत सरकार का मीडिया समझा जाता है।
ऑपरेशन सिंदूर के समय भी ऐसा ही हुआ। भारतीय सेना ने संयम दिखाया, एक-एक शब्द नापतोल कर बोला। लेकिन गोदी मीडिया में अनाप-शनाप दावे किए गए और पूरी दुनिया हंसने लगी।
100 साल पुराना जहर: सांप्रदायिक हिंसा का सिलसिला
भारतीय उपमहाद्वीप में सांप्रदायिक हिंसा का सक्रिय इतिहास 100 साल से ज्यादा पुराना है। भारत में, पाकिस्तान में और बांग्लादेश में वही बातें दोहराई जा रही हैं।
कहीं मुसलमान तो कहीं हिंदू की हत्या का सिलसिला रुक नहीं रहा।
मामला केवल हिंदू बनाम मुसलमान तक सीमित नहीं। सोनिया फेलेरो की नई किताब “द रोब एंड द स्वर्ड” (हारपर कोलिन्स) में बताया गया है कि श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और भारत में बौद्ध धर्म के आसपास भी उग्र और हिंसक राजनीति अंगड़ाई ले रही है।
गांधी का रास्ता ही एकमात्र समाधान
गांधी का राष्ट्रीय आंदोलन इस पूरे उपमहाद्वीप के लिए उदाहरण है।
गांधी खुद सांप्रदायिक हिंसा के शिकार हुए। उनकी हत्या कर दी गई। लेकिन उनका मानना था कि धर्मों के बीच इस हिंसक प्रतियोगिता से कुछ निकलने वाला नहीं।
उन्होंने अपने आंदोलन में बात कहने, सुनने और पीछे हटकर सोचने का रास्ता विकसित किया। इसी धीरज के कारण बंटवारे और हिंसा के बीच भारत की संविधान सभा एक व्यवस्था बनाने में सफल हुई।
बांग्लादेश के लिए चेतावनी
शेख हसीना के प्रति गुस्से में कहीं बांग्लादेश के लोग अपने देश को पाकिस्तान न बना दें।
सत्ता परिवर्तन होना चाहिए लेकिन हिंसा और अराजकता से व्यवस्था नहीं बनती, खत्म हो जाती है।
जमात जैसे दलों से नए बांग्लादेश का सपना कभी हासिल नहीं होगा।
शांति का रास्ता लंबा और मुश्किल है, लेकिन इसी पर चलकर नया बांग्लादेश बन पाएगा।
‘क्या है पूरी पृष्ठभूमि’
जुलाई 2024 में शेख हसीना सरकार के खिलाफ व्यापक छात्र आंदोलन हुआ। भ्रष्टाचार और विपक्ष के दमन के आरोपों के बीच हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी और वे भारत चली गईं। उसके बाद से मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी। फरवरी 2026 में चुनाव का वादा किया गया। लेकिन डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए। आवामी लीग पर प्रतिबंध लग चुका है और जमात-ए-इस्लामी जैसी धार्मिक शक्तियों को बढ़त मिल रही है। भारत में शेख हसीना की मौजूदगी को लेकर बांग्लादेश में नाराजगी है और इसे भारत विरोधी भावनाओं को हवा देने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
मुख्य बातें (Key Points)
- छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की 12 दिसंबर को ढाका में गोली मारकर हत्या; उनकी मौत के बाद देशभर में हिंसा भड़की
- गुस्साई भीड़ ने दलित हिंदू युवक दीपपू चंद्र दास को ईशनिंदा के आरोप में जिंदा जला दिया
- 19 दिसंबर को प्रोथोम आलो और डेली स्टार अखबारों के दफ्तर जलाए गए; 27 साल में पहली बार प्रोथोम आलो नहीं छपा
- भारतीय मिशनों पर ढाका, चटगांव और राजशाही में हमले; भारत ने कड़ा विरोध जताया
- जमात-ए-इस्लामी को बढ़त मिलने की आशंका; विशेषज्ञों ने चेताया कि इस्लामिक ताकतों के वर्चस्व से बांग्लादेश का भविष्य खतरे में






