नई दिल्ली (New Delhi) 20 जनवरी (The News Air): पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह (Beant Singh) की हत्या के दोषी और आतंकी संगठन बब्बर खालसा (Babbar Khalsa) के सदस्य बलवंत सिंह राजोआना (Balwant Singh Rajoana) की फांसी माफी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को समय दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर 18 मार्च तक कोई निर्णय नहीं हुआ, तो अदालत खुद मामले की सुनवाई करेगी।
1995 में हुए बेअंत सिंह मर्डर केस (Beant Singh Murder Case) में राजोआना को 2007 में चंडीगढ़ की विशेष सीबीआई अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद से यह मामला लगातार कानूनी उलझनों में रहा है।
राजोआना की दया याचिका पर क्यों है देरी? : बलवंत सिंह राजोआना, जो 29 साल से जेल में है, ने 12 साल पहले राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की थी। हालांकि, अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। राजोआना की ओर से याचिका में कहा गया कि इतने लंबे समय तक जेल में रहने और दया याचिका पर कोई फैसला न होने के कारण उसकी सजा को उम्रकैद में बदला जाना चाहिए।
क्या है सरकार की स्थिति? : 2019 में गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती के अवसर पर केंद्र सरकार ने राजोआना की फांसी को उम्रकैद में बदलने की घोषणा की थी। लेकिन, अब तक इसका औपचारिक आदेश जारी नहीं हुआ। केंद्र ने इसे पंजाब की संवेदनशील कानून व्यवस्था का मुद्दा बताते हुए कोर्ट से आग्रह किया था कि इस पर कोई आदेश न दिया जाए।
बेअंत सिंह मर्डर केस: क्या हुआ था? : 31 अगस्त 1995 को पंजाब सचिवालय (Punjab Secretariat) के बाहर दिलावर सिंह (Dilawar Singh) ने आत्मघाती बम विस्फोट कर तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 17 अन्य लोगों की हत्या कर दी थी। इस हमले में बलवंत सिंह राजोआना मुख्य आरोपी थे।
- CBI अदालत का फैसला (2007): चंडीगढ़ की अदालत ने बलवंत को फांसी की सजा सुनाई।
- SGPC का हस्तक्षेप (2012): शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee) ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और आगे का रास्ता : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि अगर 18 मार्च 2025 तक दया याचिका पर कोई निर्णय नहीं होता है, तो अदालत खुद मामले की सुनवाई करेगी। जस्टिस बी आर गवई (B. R. Gavai) की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, “कानून के अनुसार हम देरी को नजरअंदाज नहीं कर सकते।”
बलवंत सिंह राजोआना की फांसी माफी का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां एक तरफ सरकार इसे कानून व्यवस्था के लिहाज से संवेदनशील बता रही है, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर तेज़ी दिखाने का संकेत दिया है। अब देखना यह होगा कि 18 मार्च तक सरकार कोई निर्णय लेती है या नहीं।