Atomic Energy Bill 2025: संसद का शीतकालीन सत्र इस बार देश के ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित होने जा रहा है। मोदी सरकार एक ऐसा कानून लाने की तैयारी में है जो भारत में बिजली उत्पादन की तस्वीर को हमेशा के लिए बदल देगा। दशकों से सरकार की मुट्ठी में कैद ‘परमाणु ऊर्जा’ (Nuclear Energy) के दरवाजे अब निजी क्षेत्र के लिए खुलने जा रहे हैं। इसे मोदी सरकार का एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है, जो भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ तकनीकी दुनिया में भी देश का कद बढ़ाएगा।
अक्सर देखा जाता है कि परमाणु ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्र पर केवल सरकार का ही एकाधिकार होता है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा साफ है—वे इस क्षेत्र में निजी कंपनियों की ताकत और निवेश को जोड़ना चाहते हैं। एटॉमिक एनर्जी बिल 2025 का मसौदा इसी सोच का परिणाम है। इसका सीधा असर यह होगा कि आने वाले समय में आपके घर तक पहुंचने वाली बिजली सिर्फ कोयले या गैस से नहीं, बल्कि परमाणु रिएक्टर्स से भी बनकर आ सकती है, और वह भी किसी निजी कंपनी द्वारा संचालित प्लांट से।
निजी कंपनियों की एंट्री से बदलेगी तस्वीर
अब तक भारत में परमाणु ऊर्जा का संचालन पूरी तरह से ‘न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (NPCIL) के हाथों में है। लेकिन यह नया बिल इस एकाधिकार को खत्म कर देगा। सरकार का उद्देश्य परमाणु ऊर्जा से जुड़ी प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाना और निजी क्षेत्र की भागीदारी को कानूनी मान्यता देना है। यह बदलाव ठीक वैसा ही क्रांति ला सकता है जैसा कुछ दशक पहले टेलीकॉम, अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों के आने से हुआ था। इससे न केवल इनोवेशन बढ़ेगा बल्कि बिजली उत्पादन की क्षमता भी कई गुना बढ़ जाएगी।
पुराने कानूनों में होगा बड़ा बदलाव
इस नए बिल के साथ-साथ सरकार ‘सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट’ (CLNDA) 2010 में भी संशोधन करने जा रही है। अब तक इस कानून के कारण निजी कंपनियां इस सेक्टर से दूर थीं। कानून का ‘सेक्शन 3’ केवल सरकारी कंपनियों को ही संवेदनशील सामग्री जैसे फ्यूल और उपकरणों के निर्माण या खरीद-फरोख्त का अधिकार देता था। सब कुछ बेहद गोपनीय था। लेकिन नए संशोधन के बाद निजी कंपनियां न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाने, मॉडर्न रिएक्टर तकनीक लाने और फ्यूल सप्लाई चेन में भी हिस्सेदारी कर सकेंगी।
100 गीगावाट उत्पादन का महात्वाकांक्षी लक्ष्य
सरकार को यह कदम उठाने की जरूरत क्यों पड़ी? इसका जवाब भविष्य की ऊर्जा जरूरतों में छिपा है। भारत अभी लगभग 7 गीगावाट परमाणु ऊर्जा बनाता है, जो देश की कुल जरूरत का बहुत छोटा हिस्सा है। सरकार का लक्ष्य इसे बढ़ाकर 100 गीगावाट तक ले जाने का है, जो बिना निजी निवेश के संभव नहीं है। पीएम मोदी की दृष्टि में आने वाले समय में दुनिया ‘स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स’ (SMRs) की तरफ बढ़ेगी। ये छोटे रिएक्टर सुरक्षित होते हैं, कम लागत में बनते हैं और इन्हें शहरों के पास भी लगाया जा सकता है।
रिलायंस, टाटा और अडानी जैसे दिग्गजों की नजर
अगर यह बिल पास हो जाता है, तो अगले एक दशक में भारत का परमाणु ऊर्जा बाजार पूरी तरह बदल जाएगा। इस क्षेत्र में रिलायंस (Reliance), टाटा (Tata), अडानी (Adani) और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) जैसी दिग्गज भारतीय कंपनियां कदम रख सकती हैं। साथ ही, विदेशी कंपनियां और टेक्नोलॉजी पार्टनर्स भी भारत में निवेश के लिए आकर्षित होंगे। इससे न केवल अरबों डॉलर के तेल-गैस आयात पर भारत की निर्भरता कम होगी, बल्कि देश को सस्ती और भरोसेमंद बिजली का एक नया और स्थाई स्रोत भी मिलेगा।
क्या है पृष्ठभूमि
दशकों से भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए कोयले और आयातित ईंधन पर निर्भर रहा है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और बढ़ती बिजली की मांग ने सरकार को साफ-सुथरी (Clean) ऊर्जा की ओर बढ़ने के लिए मजबूर किया है। परमाणु ऊर्जा इसका एक बेहतरीन विकल्प है, लेकिन भारी निवेश और तकनीकी जटिलताओं के कारण सरकारी प्रयास अब तक सीमित रहे हैं। इसी गतिरोध को तोड़ने के लिए सरकार अब निजी क्षेत्र के लिए रेड कार्पेट बिछा रही है।
मुख्य बातें (Key Points)
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शीतकालीन सत्र में सरकार एटॉमिक एनर्जी बिल 2025 पेश करेगी।
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परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी को कानूनी मंजूरी मिलेगी।
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CLNDA 2010 कानून में संशोधन कर निजी क्षेत्र की बाधाएं हटाई जाएंगी।
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सरकार का लक्ष्य परमाणु ऊर्जा उत्पादन को 7 गीगावाट से बढ़ाकर 100 गीगावाट करना है।
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स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) जैसी आधुनिक तकनीक पर जोर दिया जाएगा।






