Owaisi On Babri Masjid : एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर संघ परिवार और केंद्र सरकार पर अब तक का सबसे तीखा हमला बोला है। ओवैसी ने एक वीडियो जारी कर साफ शब्दों में कह दिया है कि बाबरी मस्जिद की ‘शहादत’ को मुसलमान कभी नहीं भूलेंगे और जब तक यह दुनिया कायम है, आने वाली नस्लों को यह इतिहास बताया जाता रहेगा।
ओवैसी ने अपने बयान में सीधे तौर पर संघ परिवार को संबोधित करते हुए कहा, “सुनो संघ परिवार! हम हिंदुस्तान में बाबरी मस्जिद की शहादत का जिक्र करते रहेंगे। हम दुनिया को बताएंगे कि तुमने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया था कि मस्जिद की एक ईंट को हाथ नहीं लगाया जाएगा, लेकिन तुमने मस्जिद को शहीद कर दिया।”
‘सुप्रीम कोर्ट से किया वादा तोड़ा’
ओवैसी ने 6 दिसंबर 1992 की घटनाओं को याद करते हुए कहा कि लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत तमाम नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित वादा किया था कि मस्जिद को हाथ नहीं लगाया जाएगा। इसके बावजूद, दुनिया की आंखों के सामने और पुलिस की मौजूदगी में 550 साल पुरानी मस्जिद को गिरा दिया गया।
उन्होंने कहा कि यह वही जगह थी जहां सदियों तक नमाज अदा की गई। ओवैसी ने भावुक होते हुए कहा कि अगर उनकी “सिसकियां” बाकी रहीं, तो वे कलमा पढ़ेंगे और आने वाली पीढ़ियों से कहेंगे कि बाबरी मस्जिद की शहादत को हमेशा याद रखा जाए।
‘किसने तोड़ी मस्जिद, कोई मुजरिम नहीं?’
ओवैसी ने अदालती फैसलों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले (पेज 913-914) में माना था कि 1949 में चोरी-छिपे मूर्तियां रखना और 1992 में मस्जिद गिराना “कानून के राज का उल्लंघन” (Violation of Rule of Law) था। लेकिन, जब क्रिमिनल कोर्ट का फैसला आया, तो सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया।
ओवैसी ने सवाल दागते हुए कहा, “अगर सब बरी हो गए, तो फिर 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद किसने शहीद की?” उन्होंने केंद्र की बीजेपी सरकार पर भी निशाना साधा कि उसने इस फैसले के खिलाफ अपील क्यों नहीं की।
‘संविधान को दिया गया जख्म’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान पर जिसमें उन्होंने कहा था कि “500 साल के जख्म अब भरे जा रहे हैं,” ओवैसी ने पलटवार किया। उन्होंने पूछा कि आखिर किस जख्म की बात हो रही है? सुप्रीम कोर्ट ने खुद माना था कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई थी।
ओवैसी ने कहा, “जख्म तो वह है जो 6 दिसंबर 1992 को दिया गया। उस दिन सिर्फ मस्जिद शहीद नहीं हुई, बल्कि भारत के संविधान और ‘रूल ऑफ लॉ’ को कमजोर किया गया।”
‘आस्था की बुनियाद पर फैसला’
ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज के इंटरव्यू का जिक्र करते हुए न्यायपालिका की आलोचना की। उन्होंने कहा कि जज साहब रिटायरमेंट के बाद कह रहे हैं कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाना गलत था, जबकि जब उनके हाथ में कलम थी, तो फैसले में लिखा गया था कि मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनी।
ओवैसी ने आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद का फैसला तथ्यों पर नहीं, बल्कि ‘आस्था’ की बुनियाद पर दिया गया था। उन्होंने कहा कि अगर 6 दिसंबर को मस्जिद नहीं गिराई गई होती, तो शायद सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ और होता।
‘यह मुल्क किसी एक मजहब का नहीं’
ओवैसी ने 6 दिसंबर को ‘यौम-ए-सियाह’ (काला दिन) करार दिया। उन्होंने इसकी तुलना महात्मा गांधी की हत्या, 1984 के सिख विरोधी दंगों और 2002 के गुजरात दंगों से की।
आखिर में ओवैसी ने लोगों से अपील की कि वे एकजुट होकर अपनी इबादतगाहों की हिफाजत करें। उन्होंने कहा, “याद रखिए, इस मुल्क का कोई एक मजहब नहीं है। यह मुल्क हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी का है, जिन्होंने मिलकर इसे अंग्रेजों से आजाद कराया था। हमें उन ताकतों को पहचानना होगा जो संविधान और इंसाफ को कमजोर करना चाहती हैं।”
जानें पूरा मामला
6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी के मौके पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक वीडियो संदेश जारी किया। इस वीडियो में उन्होंने बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और वर्तमान राजनीतिक हालात पर अपनी बेबाक राय रखी है, जिसे लेकर सियासी हलकों में चर्चा तेज हो गई है।
मुख्य बातें (Key Points)
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ओवैसी ने कहा- जब तक दुनिया है, बाबरी मस्जिद की शहादत का जिक्र होता रहेगा।
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सुप्रीम कोर्ट में वादा करने के बावजूद मस्जिद गिराने को लेकर संघ परिवार पर साधा निशाना।
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6 दिसंबर को गांधी हत्या और 84 के दंगों की तरह देश के लिए ‘काला दिन’ बताया।
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आरोप लगाया कि बाबरी का फैसला तथ्यों के बजाय ‘आस्था’ के आधार पर दिया गया।






