India Russia USA Relations: जिस वक्त रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल रहे थे, उसी वक्त वाशिंगटन में डोनाल्ड ट्रंप अपनी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी में बड़ा परिवर्तन कर रहे थे। इस 29 पन्नों के दस्तावेज ने पूरी दुनिया में हंगामा मचा दिया क्योंकि इसमें साफ लिखा गया है कि रूस अब अमेरिका के लिए कोई सीधा खतरा नहीं है। और सबसे पहले इस दस्तावेज पर मोहर किसने लगाई? क्रेमलिन ने, यानी मॉस्को ने।
अमेरिका की नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी: क्या है 29 पन्नों में?
अमेरिका ने अपनी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी में जो परिवर्तन किया है, वह अंतरराष्ट्रीय राजनीति का गेम चेंजर साबित हो सकता है। इस दस्तावेज में बहुत साफ तौर पर लिखा गया है कि रूस अब अमेरिका के लिए कोई सीधा खतरा नहीं है। इसका मतलब है कि आने वाले वक्त में अमेरिका रूस को दुश्मन भी नहीं कहेगा।
इस दस्तावेज में नाटो देशों पर भी सीधा सवालिया निशान लगाया गया है। यूरोपीय यूनियन की जरूरत क्या है? यह सवाल भी उठाया गया है। यानी इस डॉक्यूमेंट के तीन बड़े मैसेज हैं।
पहला मैसेज यह है कि रूस से दुश्मनी करके अमेरिका को कुछ भी नहीं मिलेगा, कोई लाभ नहीं होगा। दूसरा मैसेज यह है कि ट्रंप नहीं चाहते कि यूक्रेन को जितनी बड़ी तादाद में मदद की जा रही है, जो अरबों डॉलर के हथियार दिए जा रहे हैं, वह और दिए जाएं। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण मैसेज यह है कि पीस प्रोसेस में अमेरिका इस वक्त रूस के साथ खड़ा है।
रूस को साथ क्यों लाना चाहता है अमेरिका?
इस रणनीतिक बदलाव के पीछे एक बड़ी वजह है। रूस को अलग-थलग नहीं रखा जा सकता क्योंकि ऐसा करने से चीन और मजबूत हो जाएगा। चीन पर रूस की निर्भरता पहले से ही बढ़ चुकी है। तो अमेरिका की सोच है कि क्यों नहीं रूस को अपने साथ खड़ा कर लिया जाए।
इस दस्तावेज में यूरोप को एक बड़ा सबक देने की सोच भी है। पहली बार यह लिखा गया है कि यूक्रेन को लेकर अगर यूरोप को कोई चिंता है तो वह अपनी लड़ाई खुद ही लड़ ले। यह भी कहा गया कि आने वाले एक-दो दशकों में यूरोप अपनी नीतियों तले दब जाएगा और किसी ताकत के तौर पर उसका कोई अस्तित्व नहीं रहेगा।
यानी साफ संदेश है – नाटो खत्म हो, यूरोपीय यूनियन कमजोर होती चली जाए, और यूक्रेन की लड़ाई में अमेरिका यूरोप के साथ खड़ा नहीं होगा।
व्यापारिक लाभ: अमेरिका की असली चाहत
इस दस्तावेज में व्यापारिक लाभ की बात भी खुलकर की गई है। रूस और खाड़ी देशों के साथ व्यापारिक समझौते अमेरिका को चाहिए। यह इसलिए क्योंकि यहां अमेरिकी कंपनियों को बड़े-बड़े ठेके मिलेंगे।
खासतौर पर यूक्रेन में जो पुनर्निर्माण होगा युद्ध खत्म होने के बाद, उसमें अमेरिकी कंपनियों को भारी लाभ मिलेगा। तो सवाल उठता है कि यूरोप की जरूरत क्या है जब 20 साल में उसका अस्तित्व ही मिट जाएगा?
इन बातों का खुले तौर पर जिक्र किया गया इस दस्तावेज में और पहली मोहर रूस ने लगाई। रूस ने कहा – ठीक लिखा है आपने, हमारे ही विजन के साथ आखिर में आपको खड़ा होना पड़ा।
यूक्रेन पर रूस के भयानक हमले: जेलेंस्की का खुलासा
जिस मौके पर यह दस्तावेज निकलकर आया, उसी वक्त यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने एक वीडियो जारी किया और बताया कि इस एक हफ्ते के भीतर, यानी जब रूस के राष्ट्रपति भारत की यात्रा पर थे और अमेरिका अपनी सिक्योरिटी स्ट्रेटजी पर मोहर लगा रहा था, उस वक्त रूस ने 10,600 बार हमला किया यूक्रेन पर।
इस हमले में लगभग 1,201 गाइडेड एयर बम मारे गए। 70 मिसाइल दागे गए। 240 ड्रोन के जरिए हमले किए गए। 5 बैलिस्टिक मिसाइल दागी गईं। खारसेन, खारकीव, चेरनीव जैसे तमाम शहरों पर हमले हुए।
जेलेंस्की ने यूरोपीय देशों से, नाटो देशों से और अपने पार्टनर्स से अपील की कि आप हमारी मदद कीजिए।
भारत की कूटनीति: पुतिन के बाद अब जेलेंस्की को न्योता
इस पूरी प्रक्रिया के भीतर भारत की भूमिका खुलकर सामने आ गई है। भारत की कूटनीति में रूस से निकटता है तो चीन को लेकर अभी भी सतर्कता की स्थिति है। लेकिन रूस का चीन के साथ जबरदस्त भागीदारी होना और अमेरिका का रूस के पक्ष में आकर खड़े होते दिखाई देना – यह सब एक साथ हो रहा है।
भारत की तरफ से अब डिप्लोमैटिक तरीके से यह प्रयास हो रहा है कि जेलेंस्की भारत जरूर आ जाएं। युद्ध के बाद से आठ बार भारत के प्रधानमंत्री और जेलेंस्की के बीच टेलीफोन पर बात हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चार ऐसे मौके आए जहां मुलाकात हुई और एक मौका तो खुद प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन गए।
अमेरिका ने खोले भारत के लिए तीन दरवाजे
अमेरिका तीन तरफा दरवाजों को खोल रहा है भारत के लिए।
पहला दरवाजा: ट्रेड डील को लेकर अमेरिकी अधिकारी अगले हफ्ते दिल्ली पहुंचेंगे। डिप्टी यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव रिक स्विट्जर यहां के कॉमर्स सेक्रेटरी से मुलाकात करेंगे।
दूसरा दरवाजा: क्वाड के भीतर टेररिज्म को लेकर चर्चा होगी। अमेरिका के विदेश मंत्री भारत आएंगे। जापान और ऑस्ट्रेलिया के मंत्रियों की भी मौजूदगी होगी। टेररिज्म का मुद्दा जो भारत ने अंतरराष्ट्रीय तौर पर उठाया है, उस पर क्वाड साथ खड़ा होना चाहता है।
तीसरा दरवाजा: एलिसन हुकर, जो अंडर सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर पॉलिटिकल अफेयर्स हैं, भारत पहुंच रही हैं। वे बेंगलुरु जाएंगी यानी इसरो जाएंगी। टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में समझौते होने हैं। इकोनॉमिक और कमर्शियल समझौते होने हैं। चार दिनों की इस यात्रा में वे बेंगलुरु के बाद दिल्ली आकर एक्सटर्नल अफेयर्स के बड़े नौकरशाह मिस्त्री से मुलाकात करेंगी।
अमेरिका की प्रेस रिलीज में क्या लिखा?
अमेरिका ने बाकायदा एक प्रेस रिलीज जारी करके बताया है कि 7 से 11 तक भारत की यात्रा है। इसमें लिखा गया कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को खुला और मुक्त बनाने के लिए अमेरिका प्रयासरत है।
इसमें लिखा गया कि इकोनॉमिक और कमर्शियल समझौते दोनों देशों के बीच होंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में और खासतौर से इसरो की भूमिका अंतरिक्ष को लेकर जो है उस पर भी अमेरिका समझौता करना चाहता है।
भारत ने चीन के लिए भी खोले दरवाजे
भारत ने अब दरवाजे चीन के लिए भी खोल दिए हैं। शंघाई में 32 साल के बाद इंडियन कॉन्सुलेट खोला गया है। यानी अंतरराष्ट्रीय तौर पर भारत ने यह मैसेज दे दिया है कि वह दुनिया के किसी भी देश के साथ साझीदार के तौर पर नहीं खड़ा है।
अपनी जरूरतों को लेकर हर देश के साथ कूटनीतिक तौर-तरीके, संबंध और सामरिक व आर्थिक दोनों परिस्थितियों में वह हर समझौता करने के लिए तैयार है – जहां भारत को लाभ हो।
अमेरिकी सिंगर मैरी मिलबेन की प्रतिक्रिया
अमेरिकी सिंगर मैरी मिलबेन ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को अब घर में बैठ जाना चाहिए और ब्रेड बटर खाना चाहिए। क्योंकि शांति की दिशा में जो प्रयास भारत के प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं, अगर रूस और यूक्रेन के बीच कोई शांति ला सकता है तो वह इंडियन प्राइम मिनिस्टर मोदी ला सकते हैं।
उन्होंने कहा – “प्राइम मिनिस्टर मोदी इन माय ओपिनियन द बेस्ट लीडर एंड द ओनली लीडर” जो रूस और यूक्रेन के बीच शांति ला सकते हैं।
डिफेंस डील का खेल: रूस या अमेरिका?
एक बड़ा सवाल यह भी है कि भारत ने डिफेंस डील रूस के साथ क्यों नहीं की? क्या इसीलिए क्योंकि रूस ने कच्चे तेल का रास्ता भारत के लिए खोलकर रखा?
अमेरिका से अगर तेल आएगा तो भारत को महंगा पड़ेगा – ना सिर्फ कीमत को लेकर बल्कि उस तेल को भारत तक लाने में भी बहुत कॉस्टली होगा। तो ऐसे में डिफेंस डील का रास्ता अमेरिका के लिए खुला छोड़ दिया गया।
यानी पूरी दृष्टि को समझें तो एक बाजार और टैरिफ की परिस्थितियां हैं, लेकिन अमेरिका तीन फ्रंट पर काम कर रहा है – टैरिफ डील, क्वाड की बैठक, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में समझौते।
भारत के सामने तीन बड़ी चुनौतियां
पुतिन की यात्रा के बाद भारत के सामने तीन बड़े सवाल चुनौती के रूप में खड़े हैं।
पहली चुनौती: ट्रंप जिस लिहाज से बदलते हैं उसमें जो उन्होंने नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी बनाई है, रूस पर निशाना साधना बंद करने का अंदेशा दिया है। लेकिन भारत का कॉर्पोरेट, भारत की इकॉनमी रूस या चीन के आश्रय से नहीं चल सकती। यह एक सच है और अमेरिका भी इसे जानता है।
दूसरी चुनौती: अगर अमेरिका की रणनीति सामरिक दृष्टिकोण से पाकिस्तान के पक्ष में चली गई तब क्या होगा? पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच जो युद्ध की आशंकाएं गहरा रही हैं, उसमें अफगानिस्तान की जरूरत चीन को भी है और पाकिस्तान की जरूरत अमेरिका को भी।
तीसरी चुनौती: अगर चीन पाकिस्तान के साथ उसी तर्ज पर खड़ा हो जाए जैसे वह ऑपरेशन सिंदूर के वक्त खड़ा था, तब भारत को लेकर रूस की कौन सी भूमिका होगी? क्योंकि इस वक्त रूस की इकॉनमी को अगर कोई संभाल रहा है तो वह चीन है।
अमेरिका की स्ट्रेटजी में भारत का जिक्र नहीं
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस स्ट्रेटजी के पेपर में भारत का जिक्र नहीं है। रूस का जिक्र है, यूरोप का जिक्र है, नाटो का जिक्र है, यूरोपीय यूनियन का जिक्र है, यूक्रेन के साथ युद्ध का जिक्र है, गाजा पट्टी का जिक्र है, इजराइल का जिक्र है – लेकिन भारत का जिक्र नहीं है।
तो सवाल यह है कि क्या इन तीन दरवाजों के आसरे अमेरिका भारत को अब भी परख रहा है?
क्या है पृष्ठभूमि?
पुतिन की दिल्ली यात्रा के बाद अंतरराष्ट्रीय परिवर्तन ने दुनिया की निगाहों में भारत को लाकर खड़ा कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति को अंतरराष्ट्रीय विश्व व्यवस्था के केंद्र में ला दिया गया है।
एससीओ की बैठक में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री मोदी चीन गए। ब्रिक्स नई करेंसी नहीं लाएगा – इसको लेकर भारत ने पहल की और माना गया कि ब्रिक्स डॉलर को काउंटर करने के लिए कोई नई करेंसी नहीं लाएगा।
यह यात्रा सिर्फ एक शुरुआत है। जो अभी तक रुका हुआ था उसमें एक रवानगी आई है। लेकिन यह राहत है या मुश्किल परिस्थितियों की शुरुआत है – शायद इन दोनों के बीच भारत खड़ा है।
मुख्य बातें (Key Points)
- अमेरिका की नई स्ट्रेटजी: रूस अब अमेरिका के लिए सीधा खतरा नहीं, नाटो और यूरोपीय यूनियन पर सवाल उठाए गए।
- यूक्रेन पर हमले: एक हफ्ते में 10,600 बार रूसी हमले, 1201 गाइडेड बम, 70 मिसाइल, 240 ड्रोन अटैक।
- भारत के लिए तीन दरवाजे: ट्रेड डील, क्वाड बैठक, और टेक्नोलॉजी-AI समझौतों के लिए अमेरिकी अधिकारी भारत आ रहे हैं।
- 32 साल बाद शंघाई में कॉन्सुलेट: भारत ने चीन के लिए भी दरवाजे खोले, कूटनीतिक संतुलन बनाया।






