गिरते पड़ते वह कनक भवन के पास स्थित हज़ार पुष्प जड़ित स्तंभों से होती हुई अंदर आ पहुंची, वह बार कुछ खाने को मांग रही थी।
वहां मौजूद एक श्रद्धालु भक्त ने उसे कहा, आज भोजन अन्न दान से पाप लगता है, कल भर पेट प्रसाद मिलेगा। यह बोल कर उसने दया करते हुए उसे तुलसी का पान और थोड़ा जल दिया। कुछ समय बाद भूख की मारी वह पापिन मृत्यु को प्राप्त हुई। लेकिन अनजाने में ही उससे सीता नवमी का व्रत पूर्ण हो गया।
जिसके फल स्वरूप वह पाप मुक्त हुई, उसे स्वर्गलोक में रहने को मिला। फिर अगले जन्म वह कामरूप देश के महाराजा जय सिंह की रानी बनी। इस तरह माता सीता की असीम कृपा से उसके समस्त रोग दोष और पापों का नाश हुआ और सद्गति मिली।
Sita Navami Unknown Facts Hindi
- सीता माता के तीन रूप : क्रिया शक्ति, इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति ।
- धरा (धरती) से उत्पन्न होने के कारण देवी सीता को “भूमात्मजा” भी कहा जाता है।
- अग्नि, सूर्य और चंद्रमाँ का प्रकाश माता सीता का स्वरूप कहा जाता है
- रावण की कैद में सीता माता की परछाई कैद थी, असल सीता माता अग्नि देव के पास सुरक्षित थीं।
- वनवास के समय ऋषि अत्री के आश्रम में सीता माता को दिव्य वस्त्र सती अनसूइया ने प्रदान किये थे जो न फटते और ना ही मैले होते थे।
- रावण द्वारा सीता हरण के बाद उनकी खोज में गए वानर राज सुग्रीब और उनके दल को एक गठरी में बंधे सीता माता के आभूषण मिले थे।
रावण द्वारा वेदवती का अपमान
हिमालय की यात्रा के दौरान लंका नरेश रावण की दृष्टि वेदवती पर पड़ी, वह अत्यंत सुदर थी, फिर भी वह अविवाहित थी। रावण ने उससे इस बात का रहस्य पुछा तब वेदवती ने कहा, मेरे पिता ब्रह्मऋषि कुशध्वज चाहते थे की मेरा विवाह त्रिलोक के स्वामी विष्णु से हो, यह बात जान कर एक राक्षस क्रोधित हुआ, वह मुझसे विवाह करना चाहता था। इसी लिए उसने मेरे माता-पिता का वध कर दिया। इसी लिए मैंने अब तपस्या का रास्ता चुना है।
यह कहानी सुन कर पहले तो रावण नें वेदवती को बहलना फुसलाना शुरू किया, लेकिन वेदवती जब नहीं मानी तो उसने उसके बाल पकड़ लिए, उसी क्षण वेदवती ने अपने बाल काट लिए और शाप देते हुए कहा, की तूने इस वन में मेरा अपमान किया है, मैं सतयुग के बाद त्रेता युग में फिर आऊंगी और तेरे अंत का कारण बनूंगी।
इस तरह त्रेता युग में फिर रावण सीता के रूप में जन्मी वेदवती पर मोहित हुआ, छल से उसका हरण किया और विष्णु भगवान के रामा अवतार के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ।
देवी सीता और श्री राम का वियोग : तोते के श्राप की कहानी
बालिका सीता एकबार सहेलियों संग बगीचे में खेल रही थीं। वहीँ पेड़ पर नर-मादा तोते का जोड़ा सीता-राम के भविष्य की बात कर रहे थे, जो उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम से सुनी थी। उत्सुक बालिका सीता मादा तोते से अपने और राम के बारे में और बातें जानना चाहती थीं, लेकिन तोते के जोड़े नें उनके साथ महल जाने से मना किया, उन्होंने कहा हमें उन्मुक्त गगन में रहना पसंद आता है।
इस बात से नाराज बालिका सीता ने गर्भवती मादा तोता को जबरन अपने पास रख लिया, और नर तोता को आजाद कर दिया। ताकि वह अपने भविष्य के बारे में मादा तोता से और बातें जान सके। नर तोता अपनी साथी के वियोग में मर गया। इस बात से दुखी मादा तोता ने बालिका सीता को शाप दिया की, वह बोली… जिस तरह तुमने मुझे इस तोते से दूर किया, तुम्हे भी गर्भावस्था के समय पति वियोग सहना होगा।
बताया जाता है कि अगले जन्म में तोता वही धोबी था, जिसने माता सीता के चरित्र पर उंगली उठाई थी, जिसके बाद भगवान राम ने सीता का गर्भावस्था के दौरान त्याग कर दिया। तब माता सीता महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पहुंची और वहां उन्होंने लव-कुश को जन्म दिया।
अद्भुत रामायण अनुसार रावण मंदोदरी की पुत्री सीता
अद्भुत रामायण अनुसार रावण नें कहा, जब भूल वश में अपनी पुत्री से प्रणय की इच्छा करु तब मेरी मृत्यु आए। इसी ग्रंथ में कहा गया है कि एक समय गृत्स्मद नामक ब्राह्मण लक्ष्मी को पुत्री स्वरूप में पाने के लिए एक कलश में कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चार के साथ दूध की बूंदे प्रवाहित किया करते थे। एक दिन वहां राक्षस राज रावण आया और उसने वहां सभी मुनियों को मार कर उनका थोड़ा थोड़ा रक्त उस कलश में भर लिया, फिर वह उसे ले कर अपनी रानी मंदोदरी के पास पहुंचा, उसने कहा, इसमें बहुत तीक्षण विष है, इसे संभाल कर रखना।
अपने दुराचारी पति की उपेक्षा से त्रस्त मंदोदरी ने अकेले में वह सारा रक्त विष जान कर पी लिया। इसी से वह गर्भवती हो गई। उसे समझ नहीं आया की वह क्या करे, रावण को क्या जवाब दे।
जब रावण सह्याद्रि पर्वत पर गया तो गर्भवती मंदोदरी तीर्थ यात्रा को निकल गई। वह कुरु क्षेत्र पहुंची जहां उसने अपने गर्भ को एक घड़े में रख दिया। और घड़ा ज़मीन में दफ़न कर दिया। उसके बाद वह सरस्वती नदी में स्नान कर के वापिस लंका नगरी लौट आईं।
कहा जाता है कि वही घड़ा, जनक राजा को हल चलाते समय मिला, जिसमें से सीता माता प्रकट हुईं, और रावण की कही बात अनुसार वह उसके मृत्यु का कारण भी बनी।
सीता नवमी के दिन सुख शांति के उपाय
विवाह : शादी संबंध में विघ्न आ रहे हैं तो श्री राम और सीता दोनों की पूजा करनी चाहिए, ऐसा करने से यह विघ्न अति शिग्र समाप्त होगा।
इच्छा : अगर किसी अच्छे काम की आस है और वह किसी भी तरीके से परिपूर्ण नहीं हो रहा है तो, शाम के समय रुद्राक्ष माला से “श्री जानकी रामाभ्यां नमः” का जाप करने से कार्य सिद्ध होता है।
कलेश निवारण : दंपत्ति में आयेदिन जगड़े होते रहते हैं तो घर में राम-सीता की छवि या बड़े चित्र लगवाएं। ऐसा करने स पति पत्नी के रिश्तों में चमत्कारिक सुधार देखने को मिलेगा।
गरीबी निवारण : अगर घर में पैसों की किल्लत बनी रहती है तो, सीता नवमी की शाम को रामायण का पाठ करें, यह अनुष्ठान सुख-समृद्धि दायक है।
रक्षा : जिन महिलाओं को किसी भी कारण से पति की चिंता सताती रहती है उन्हें जानकी नवमी के दिन शाम को माता सीता की मांग (छवि में) 7 बार सिंदूर लगाना चाहिए फिर उसे अपनी मांग से छुआएं।
पतिव्रत : भगवान श्री राम ने एक पत्नी व्रत लिया था, उनकी कोई और रानी नहीं थी, इस लिए अच्छे पति की कामना करने वाली कन्याओं को सीता नवमी के दिन व्रत अवश्य रखना चाहिए।
मूर्ति : धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी सीता की मूर्ति गंगा नदी की मिट्टी से बनाई जाए तो अधिक फल मिलता है, यह संभव न हो पाए तो तुलसी के पेड़ की मिट्टी का उपयोग भी कर सकते हैं।
FAQ – Q&A : Sita Navami Kab Hai। जानकी जयंती कब है
Q – वर्ष 2023 में सीता नवमी कब पड़ती है ?
A – इस वर्ष सीता नवमी 29 अप्रैल, 2023 के दिन है।
Q – सीता माता किस राजा की पुत्री हैं ?
A – वह जनक राजा की पुत्री हैं।
Q – सीता माता के अलग अलग नाम कौनसे हैं ?
A – भूमि, सिया, जानकी, मृणमयी, लक्षाकी, वैदेही, मैथीली
Q – सीता स्वयंवर में श्री राम नें किस भागवान का धनुष तोड़ दिया था ?
A – सीता स्वयम्वर में श्री राम नें शिव भगवान का धनुष तोड़ा था।
Q – जानकी माता का हरण कर के रावण ने उन्हें कहाँ बंदी बना कर रखा था ?
A – रावण नें उन्हें लंका नगरी में अशोक वाटिका में बंदी बना कर रखा था।
Q – देवी सीता का जन्म कौनसे युग में हुआ था ?
A – उनका जन्म द्वापर युग में हुआ और वह अयोध्या के राजा राम की भारिया बनी।
Q – श्री राम द्वारा त्यागे जाने पर सीता माता किस ऋषि के आश्रम में रहीं, उनके पुत्रों के नामा क्या है ?
A – सीता माता के दो पुत्र लव और कुश थे, पति द्वारा त्यागे जाने के बाद वह महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रही थीं।
Q – सीता जयंती व्रत से क्या फल मिलता है ?
A – घर में सुख समृद्धि आती है, कलह समाप्त होता है, पतिव्रता नारी के कंथ (पति) का जीवन लंबा होता है।
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सीता जयंती / Sita Navami Jayanti के अवसर पर प्रस्तुत यह लेख ( Short Essay on Goddess Sita In Hindi ) कैसा लगा, यह कमेन्ट कर के ज़रूर बताइयेगा।
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