Allahabad HC SC Status Verdict: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि हिंदू धर्म छोड़कर ईसाई या कोई अन्य धर्म अपनाने वाला व्यक्ति अनुसूचित जाति (SC) श्रेणी के तहत मिलने वाली सुविधाओं का हकदार नहीं होगा। कोर्ट ने कहा है कि एससी श्रेणी के लाभ केवल हिंदुओं, जिनमें बौद्ध, सिख और जैन भी शामिल हैं, तक ही सीमित हैं। इस फैसले का असर सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे भारत पर पड़ने की संभावना है।
जस्टिस प्रवीण कुमार की पीठ ने 21 नवंबर 2025 को जितेंद्र साहनी मामले में यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धर्म परिवर्तन के बाद भी अगर कोई व्यक्ति सिर्फ आरक्षण का लाभ लेने के लिए अपनी पुरानी जाति का दावा करता है, तो यह संविधान के साथ धोखा (Fraud on Constitution) है। कोर्ट ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से जातिगत भेदभाव का शिकार रहे लोगों के लिए ही संविधान में आरक्षण और एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून (SC/ST Atrocities Act) जैसे सुरक्षात्मक उपाय किए गए हैं।
क्या कहा कोर्ट ने?
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई हिंदू व्यक्ति ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाता है, तो उसकी मूल जाति समाप्त हो जाती है क्योंकि इन धर्मों में जाति व्यवस्था नहीं है। ऐसे में, धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को जाति आधारित भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता और उसे आरक्षण या एससी/एसटी एक्ट का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
झूठा हलफनामा देने पर जांच के आदेश
इस मामले में याचिकाकर्ता ने खुद को हिंदू बताया था, जबकि गवाही में उसके ईसाई धर्म अपनाने की बात सामने आई। कोर्ट ने संबंधित जिलाधिकारी को आदेश दिया है कि 3 महीने में जांच पूरी कर कानूनी कार्रवाई की जाए। अगर यह साबित होता है कि याचिकाकर्ता ने झूठा हलफनामा दिया है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
क्या होगा असर?
इस फैसले से देश भर में चल रही उस बहस पर असर पड़ सकता है जिसमें ईसाई या इस्लाम अपनाने वाले दलितों को भी आरक्षण का लाभ देने की मांग की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मुद्दे पर याचिकाएं लंबित हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने पहले ही साफ कर दिया है कि धर्म परिवर्तन करने वालों को दलितों को मिलने वाले आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।
मुख्य बातें (Key Points)
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हिंदू धर्म छोड़ने वालों को एससी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
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आरक्षण और एससी/एसटी एक्ट का लाभ केवल हिंदुओं (बौद्ध, सिख, जैन सहित) के लिए है।
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धर्म परिवर्तन के बाद भी आरक्षण का दावा करना संविधान के साथ धोखा है।
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कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला दिया।
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झूठा हलफनामा देने वाले याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच के आदेश।






