चंडीगढ़, 16 दिसंबर (राज): शिरोमणी अकाली दल ने रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) के लिए नई विकसित भारत गांरटी फाॅर रोजगार के हिस्से के रूप में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को वित्त पोषित करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच 60ः40 का अनुपात स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
यहां एक प्रेस बयान जारी करते हुए अकाली दल ने कहा कि 60ः40 का लागत साझाकरण तंत्र की शुरूआत को मौलिक रूप से अस्वीकार्य मानती है क्योंकि इसने योजना की बुनियादी सार को कमजोर कर दिया है और ग्रमाीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार के माध्यम से आजीविका सुरक्षा की गारंटी देने के अपने प्राथमिक मकसद को विफल कर दिया है।
पार्टी ने इस बात पर जोर दिया कि पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में श्रमिकों होने के कारण विशेष रूप से प्रभावित होगा। ‘‘ पार्टी का मानना है कि इस योजना से राज्य की सार्वभौमिक पहुंच कमजोर होगी और यह सहकारी संघवाद की भावना के विपरीत है।’’
अकाली दल ने केंद्र से इस प्रस्ताव की तुरंत समीक्षा करने और मजदूरी के लिए 100 फीसदी केंद्रीय वित्तपोषण के साथ बुनियादी ढ़ांचे पर वापिस लौटने का आग्रह किया।
पार्टी ने जोर देकर कहा,‘‘ यह सुनिश्चित करेगा कि यह योजना राज्यों पर आर्थिक दबाव डाले बिना गांवों में गरीबी और बेरोजगारी से निपटने में अपनी अहम भूमिका निभाती रहे।’’
भविष्य के बारे में विस्तार से बताते हुए पार्टी ने कहा कि पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार पहले से ही विभिन्न योजनाओं में अपना हिस्सा देने में पहले से ही चूक कर रही है, जिसके कारण पंजाबियों को स्वास्थय लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है। पार्टी ने कहा कि कमजोर वर्गों के लिए अनुसूचित जाति छात्रवृत्ति योजना जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
इसमें कहा गया,‘‘ अगर मनरेगा के वित्तपोषण की जिम्मेदारी पंजाब सरकार पर आती है तो सबसे गरीब लोगों को दैनिक मजदूरी से भी वंचित किया जा सकता है।’’
मनरेगा को लाखों परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा जाल बताते हुए अकाली दल लीडरशीप ने कहा कि राज्यों पर पर्याप्त आर्थिक बोझ डालने से कई क्षेत्रों में योजना को अप्रभावी बनाने का जोखिम पैदा होगा।
अकाली दल ने कहा,‘‘ आर्थिक संकट से जूझ रहे राज्यों के पास लागत का 40 फीसदी योगदान करने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी है। इससे कार्यक्रम का पूरी तरह से उपयोग करने की उनकी क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है , जिससे रोजगार के अवसर कम हो जाएंगें और ग्रामीण क्षेत्रों की कमजोर आबादी को पर्याप्त सहायता नही मिल पाएगी।’’






