84 साल के तापमान के मुताबिक 21 जुलाई दुनिया का सबसे गर्म दिन: C3S

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नई दिल्‍ली, 24 जुलाई (The News Air): जुलाई की 21 तारीख को विश्व का सबसे गर्म दिन होने का दावा किया गया है. ये दावा यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा ( C3S ) ने दावा किया है. दावे के अनुसार पृथ्वी ने कम से कम 84 वर्षों में अपने सबसे गर्म दिन अनुभव किया, जब 21 जुलाई को वैश्विक औसत तापमान 17.09 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया. इतना ही नहीं संसथान का दावा है कि पिछले साल जून से लेकर अब तक हर महीना रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रहा है. ये रिकॉर्ड तोड़ने वाले तापमान की श्रृंखला के बाद हुआ है. जून में लगातार 12वां महीना रहा जब वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक पहुंचा या उससे अधिक रहा. C3S के प्रारंभिक आंकड़ों से पता चला है कि 1940 के बाद 21 जुलाई 2024 सबसे गर्म दिन था, जिसने 6 जुलाई 2023 को दर्ज किये गए 17.08 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया.

पिछले एक साल में 57 दिन ऐसे रहे जो ज्यादा तापमान के मामले में पुराने रिकॉर्ड से ज्यादा रहे

सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जुलाई 2023 से लेकर अब तक के तापमान और पिछले सभी वर्षों के तापमान में महत्वपूर्ण अंतर है. जुलाई 2023 से पहले, अगस्त 2016 में स्थापित पृथ्वी का दैनिक औसत तापमान रिकॉर्ड 16.8 डिग्री सेल्सियस था. हालाँकि, 3 जुलाई, 2023 से अब तक 57 दिन ऐसे रहे हैं जब तापमान पिछले रिकॉर्ड से ज़्यादा रहा है. C3S के निदेशक कार्लो बुओनटेम्पो ने कहा कि पिछले 13 महीनों के तापमान और पिछले रिकॉर्ड के बीच का अंतर चौंका देने वाला है. उन्होंने कहा, “हम अब सचमुच अज्ञात क्षेत्र में हैं और जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती जा रही है, आने वाले महीनों और वर्षों में हमें नए रिकॉर्ड देखने को मिलेंगे.”

2015 से अब तक लगातार हो रही है तापमान में वृद्धि

विश्लेषण से पता चलता है कि 2023 और 2024 में पिछले वर्षों की तुलना में विश्व में वार्षिक स्तर पर अधिकतम दैनिक तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. उच्चतम दैनिक औसत तापमान वाले 10 वर्ष 2015 से 2024 तक के हैं.

वैश्विक स्तर पर दैनिक तापमान में वृद्धि अप्रत्याशित नहीं

वैश्विक औसत तापमान आमतौर पर जून के अंत और अगस्त की शुरुआत के बीच चरम पर होता है, जो उत्तरी गोलार्ध की गर्मियों के कारण होता है. उत्तरी गोलार्ध में भूमि द्रव्यमान दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों के ठंडे होने की तुलना में तेज़ी से गर्म हो जाता है. वैश्विक औसत तापमान पहले से ही रिकॉर्ड स्तर पर है, इसलिए दैनिक औसत तापमान का नया रिकॉर्ड पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था.

अंटार्टिका के बड़े हिस्से को ठहराया ज़िम्मेदार

C3S वैज्ञानिकों ने दैनिक वैश्विक तापमान में अचानक वृद्धि के लिए अंटार्कटिका के बड़े हिस्से में औसत से कहीं ज़्यादा तापमान को ज़िम्मेदार ठहराया है. अंटार्कटिक सर्दियों के दौरान ऐसी बड़ी विसंगतियाँ असामान्य नहीं हैं और इसने जुलाई 2023 की शुरुआत में वैश्विक तापमान रिकॉर्ड करने में भी योगदान दिया. अंटार्कटिक सागर में बर्फ का विस्तार लगभग पिछले वर्ष के बराबर ही है, जिसके कारण दक्षिणी महासागर के कुछ भागों में तापमान औसत से अधिक है.

चूंकि वैश्विक औसत तापमान आमतौर पर जून के अंत और अगस्त की शुरुआत के बीच चरम पर होता है, वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ये बढ़ेगा और 22 या 23 जुलाई, 2024 के आसपास चरम पर पहुंचेगा, उसके बाद घटेगा.

ला नीना पर निर्भर करता है 2024 के सबसे गर्म साल होने न होने पर

यूरोपीय जलवायु एजेंसी ने कहा कि 2024 अब तक का सबसे गर्म साल होगा या नहीं, ये काफी हद तक ला नीना के विकास और तीव्रता पर निर्भर करता है. हालाँकि 2024 इतना गर्म रहा है कि 2023 को पार कर जाएगा, लेकिन 2023 के आखिरी चार महीनों की असाधारण गर्मी के कारण यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि कौन सा साल ज़्यादा गर्म होगा.

जलवायु विज्ञान से जुड़ी गैर-लाभकारी संस्था बर्कले अर्थ ने पिछले सप्ताह अनुमान लगाया था कि 2024 में नया वार्षिक ताप रिकॉर्ड बनने की 92 प्रतिशत संभावना है. इसमें कहा गया है कि 99 प्रतिशत संभावना है कि 2024 में वार्षिक औसत तापमान विसंगति 1850-1900 के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगी.

पेरिस में 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में जता चुके हैं चिंता

पेरिस में 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में, विश्व नेताओं ने जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक अवधि के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता जताई थी।. हालाँकि, पेरिस समझौते में निर्दिष्ट 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा का स्थायी उल्लंघन 20 या 30 साल की अवधि में दीर्घकालिक वार्मिंग को संदर्भित करता है. वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की तेजी से बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान पहले ही लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. इस गर्मी को दुनिया भर में रिकॉर्ड सूखे, जंगल की आग और बाढ़ का कारण माना जाता है.

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